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कितने प्रभावशाली होते हैं आर्थिक प्रतिबंध?

विनम्रता चतुर्वेदी
२३ अक्टूबर २०१८

आप खबरों में पढ़ते होंगे कि अमेरिका ने किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. आखिर यह आर्थिक प्रतिबंध क्या होते हैं और क्यों लगाए जाते हैं? क्या इनका आम लोगों पर असर होता है?

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Symbolbild Verhältnis USA Russland
तस्वीर: Colourbox/alexlmx

किसी देश के व्यापार पर बंदिश, अलग अलग अंतरराष्ट्रीय शुल्कों में बढ़ोतरी, बैंकों के माध्यम से होने वाले वित्तीय लेन-देन पर रोक, कंपनी और व्यक्तिगत खातों को सील किया जाना आर्थिक प्रतिबंध होता है. इस तरह से उस देश की वित्तीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की जाती है. शक्तिशाली देश अकसर इस उपाय को अपनाते हैं. मसलन सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक महाशक्ति अमेरिका ने क्यूबा, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे देशों पर समय-समय पर प्रतिबंध लगाए हैं.

प्रतिबंध का वैश्विक असर

दरअसल आधुनिक युग में शक्तिशाली राष्ट्र अपने कूटनीतिक उद्देश्यों और महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किसी दूसरे देश को सबक सिखाने के उद्देश्य से सैन्यबल का उपयोग करने में कतराने लगे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो आज शक्तिशाली देश समझ रहे हैं कि युद्ध समस्या का समाधान नहीं है और इसलिए सैन्य शक्ति के उपयोग से हटकर आर्थिक प्रतिबंधों का इस्तेमाल बेहतर है.

USA, Washington: Trump hält eine Kabinettssitzung im Weißen Haus
तस्वीर: Reuters/K. Lamarque

आर्थिक प्रतिबंध लगने से न सिर्फ छोटे देश प्रभावित होते हैं बल्कि उसके साथ व्यापार कर रहे दूसरे देश भी चपेट में आ जाते हैं. उदाहरण के लिए ईरान के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौते से पीछे हटते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 180 दिन में ईरान पर पुनः प्रतिबंध प्रभावी होने का ऐलान कर दिया था. इस प्रतिबंध का असर भारत पर भी पड़ेगा क्योंकि ईरान से तेल खरीदना मुश्किल हो गया. भारत ईरान का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार देश है, जबकि भारत के लिए ईरान तीसरा सबसे बड़ा तेल बेचने वाला देश है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुगतान मोटे तौर पर डॉलर में किया जाता है. ऐसे में अगर प्रतिबंध लगे तो भुगतान में मुश्किलें आती हैं और खरीदारी नहीं हो पाती है. 

क्यों दूसरे देश होते हैं प्रभावित?

भारत के कुल आयात का 86 प्रतिशत भुगतान डॉलर में होता है जबकि भारत के कुल आयात में मात्र पांच प्रतिशत हिस्सेदारी ही अमेरिका की है. दूसरी तरफ भारत के कुल निर्यात का 86 प्रतिशत डॉलर में होता है और कुल निर्यात में मात्र 15 फीसदी ही अमेरिका को जाता है. सभी देशों के केंद्रीय बैंक भी विदेशी मुद्रा भंडार में सर्वाधिक डॉलर ही रखते हैं. ऐसे में जब अमेरिका किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है तो इसका सीधा संदेश होता है कि दूसरे देश उसके साथ कारोबार न करें क्योंकि जब वे लेन-देन करेंगे तो यह डॉलर में होगा. यह लेन-देन अमेरिकी बैंकिंग तंत्र से गुजरेगा. अमेरिका उस लेन-देन को ट्रैक कर सकता है और प्रतिबंध लगे होने की स्थिति में उस भुगतान को रोक सकता है.

अमेरिका की ओर से प्रतिबंध की घोषणा के बाद से ही भारत सरकार के स्तर पर यूरोपीय देशों से इस बारे में बातचीत हुई ताकि ईरान से तेल खरीदने का कारोबार आगे भी चलता रहे. हालांकि अब तक इस दिशा में सफलता के संकेत नहीं मिले हैं. भुगतान की वर्तमान व्यवस्था के हिसाब से अगस्त के आखिर से ही ईरान से तेल खरीदना प्रभावित हो चुका है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अब तक जर्मनी स्थित यूरोपीय-ईरानी हैंडल्सबैंक एजी के जरिये यूरो में ईरान को भुगतान किया है. एसबीआई ने साफ कर दिया है कि नवंबर के बाद से यूरो में भुगतान करने का रास्ता खुला नहीं रहेगा. 

प्रतिबंध से फलता-फूलता राष्ट्रवाद

जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया तब रूस को सबक सिखाने के मकसद से अमेरिका समेत दूसरे पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा कर दी. दुनिया की महाशक्तियों में तनाव दिखा लेकिन युद्ध संभव नहीं था. जब उत्तरी कोरिया ने परमाणु और मिसाइल परीक्षण किया तो प्रतिबंध लगे. इसके बावजूद उत्तर कोरिया ने 500 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल का परिक्षण कर दुनिया को हैरान किया.

ऐसा कई बार देखा गया है कि आर्थिक प्रतिबंध लग जाने से प्रभावित देश की कमर तो टूट जाती है लेकिन इसी के साथ राष्ट्रवाद और मजबूत होता चलता है. रूस की अर्थव्यवस्था दबाव में तो आई लेकिन राजनीतिक दृष्टि से देखें तो पुतिन और मजबूत हुए. आम लोगों में राष्ट्रीय भावना जाग गई और लोग अपनी सरकार के साथ खड़े दिखे. बाद में रूस ने जवाबी कार्रवाई की और उन देशों से खाद्य पदार्थों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिए जिन्होंने रूस पर प्रतिबंध लगाए थे. यही नहीं, रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध ने चीनी सरकार और चीनी कंपनियों को रूसी बाजार में घुसने का मौका दे दिया और पश्चिमी देशों की कंपनियां की बाजार पर पकड़ कमजोर होती चली गई.  इसके बाद अमेरिका ने चीन पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगाए और वहां भी सरकार व लोगों में स्वावलंबी बनने की भावना जागी. राजनीतिक स्तर पर ईरान और उत्तर कोरिया को भी इसका फायदा मिला.

जब भारत पर लगे प्रतिबंध

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के काल में जब परमाणु परीक्षण हुए तो भारत पर कई देशों ने आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की थी. लेकिन यह प्रतिबंध बेअसर रहा क्योंकि भारत की जनता इससे प्रभावित नहीं रही. इसके उलट नुकसान उन देशों को हुआ जिन्होंने प्रतिबंध लगाए और भारतीय बाजारों में अपने सामान बेच नहीं पाए. भारत के बाद जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया और वहां भी आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा हुई. इसका कोई बड़ा असर वहां भी नहीं दिखा और पाकिस्तान की जनता  सरकार के साथ खड़ी दिखी. 

आर्थिक प्रतिबंधों का असर सीधे तौर पर आम जनता पर असर भले ही न दिखाई दे लेकिन यह कई चीजों पर भारी असर डालता है जिसमें दवाएं शामिल हैं. प्रतिबंधों के साथ ही मुद्रा में गिरावट देखने को मिलती हैं और इससे विदेशी दवाएं दुर्लभ हो जाती हैं और उनकी कीमतों में भारी इजाफा हो जाता है. इन सबके बीच दिलचस्प यह है कि इन प्रतिबंधों का छिपते-छिपाते उल्लंघन भी होता है. इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के पूर्व संपादक और अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता पॉल वोल्कर की रिपोर्ट  ''ऑयल फॉर फूड'' का जिक्र करते हुए कहते हैं कि रिपोर्ट में प्रतिबंधों के उल्लंघन के बारे में बताया गया है.

बहरहाल अमेरिका और चीन के बीच चल रहे कारोबारी युद्ध व इन आर्थिक प्रतिबंधों का अंत कब और कहां जाकर होगा, यह कहना मुश्किल है. हालांकि यह जरूर है कि इस बीच दुनिया की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंच चुका होगा.

इन देशों पर अमेरिका ने लगा रखे हैं प्रतिबंध 

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