1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कितना महत्वपूर्ण है हमारे लिए पर्यावरण संरक्षण

महेश झा
३० नवम्बर २०१८

कोई कह रहा है कि जलवायु परिवर्तन हमारी धरती को विनाश की और ले जा रहा है, तो कोई कहता है कि जलवायु परिवर्तन हो ही नहीं रहा. लेकिन एक बात तय है कि लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.

https://p.dw.com/p/39Cid
Symbolbild Klimawandel
तस्वीर: AFP/Getty Images/O. Sierra

सोमवार से पोलैंड के काटोवित्से में वार्षिक जलवायु सम्मेलन हो रहा है. दो साल पहले पेरिस में हुए सम्मेलन के फैसलों से अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पीछे हट गए हैं और जब दुनिया का सबसे बड़ा प्रदूषक ही कुछ करने को तैयार नहीं, तो दूसरे देशों में भी गंभीर कदम उठाने का दबाव कम होता दिख रहा है. अमेरिका में नियमित रूप से आने वाली बाढ़ या तूफान हो, या भारत में विभिन्न शहरों में लगातार बढ़ता स्मॉग, लोग बातें तो कर रहे हैं लेकिन फौरन कुछ करने की तत्परता नहीं दिखती. जर्मनी भी 2020 तक के अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएगा.

जलवायु परिवर्तन का एक असर जैव विविधता पर भी हो रहा है. ठंडे इलाके गर्म होते जा रहे हैं. इटली के सिसिली में मौसम ऐसा बदला है कि किसान आम लगाने लगे हैं. दूसरी ओर गर्म होते इन इलाकों में मच्छरों का प्रकोप बढ़ रहा है जो पहले होते ही नहीं थे. किसानों को बदलते मौसम के अनुरूप फसल लगानी पड़ रही है. लोग इस बदलाव के संकट को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं, इसकी एक मिसाल पिछले दिनों दिखाई दी. दो हफ्ते से मिस्र के शर्म अल शेख में संयुक्त राष्ट्र का जैव विविधता सम्मेलन हो रहा था, इंटरनेट में सर्च कर देखिए कहीं कोई खबर नहीं मिलेगी.

हालांकि इस सम्मेलन में धरती पर जीवन के आधारभूत मुद्दों पर बहस हुई, वर्षावनों में नियमित रूप से लगती आग, कोरल रीफों का नष्ट होना और नियमित रूप से आते सूखे के कारण पानी वाले इलाकों की सुरक्षा, लेकिन 196 देशों के सम्मेलन पर शायद ही किसी का ध्यान गया. कहीं कोई आर्थिक सम्मेलन हो या जलवायु सम्मेलन हो, तो राजनेताओं के अलावा  हजारों पत्रकार भी उन सम्मेलनों में भाग लेते हैं, लेकिन जैव विविधता सम्मेलन नजरअंदाज हो गया.

पश्चिमी देशों में अकसर जलवायु संरक्षण को आर्थिक स्थिति के साथ जोड़कर देखा जाता है. रोजगार और कारोबार बचाने को पर्यावरण की सुरक्षा से ज्यादा मह्तव दिया जाता है. गरीब देश तो संसाधनों का इतना कम इस्तेमाल कर रहे हैं कि उनके लिए सब कुछ आजीविका से जुड़ा है. तटीय इलाके यदि समुद्र के जलस्तर के बढ़ने से डूब रहे हों, या गर्मी के कारण हर साल आने वाली बाढ़ इलाकों को डुबो रही हो, तो लोगों की रोजीरोटी और घर मकान तो जाते ही हैं, उन्हें विस्थापित भी होना पड़ता है. धनी देशों में आने वाली बाढ़ और तूफान में भी यही होता है, लेकिन वे गरीब देशों के मुकाबले इसके परिणामों का बेहतर सामना करने की स्थिति में है. इस बीच ब्राजील जैसे देश भी हैं जो उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वर्षावनों को काट रहे हैं.

सम्मेलन के नतीजे परेशान करने वाले हैं. संयुक्त राष्ट्र के देशों ने 2010 की जैव विविधता संधि में पर्यावरण सुरक्षा के जो 20 बड़े लक्ष्य तय किए थे उनका 2020 तक पूरा होना असंभव है. धरती के 17 प्रतिशत जमीन और पानी वाले इलाके को संरक्षित क्षेत्र घोषित करने में तो सफलता मिली है लेकिन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सरकारी सबसिडी को खत्म करने का लक्ष्य अधूरा है. खेती में नाइट्रेट के इस्तेमाल में तो वृद्धि ही हुई है. अंतरराष्ट्रीय समुद्र में बड़े संरक्षित क्षेत्र बनाने के प्रयासों को भी कामयाबी नहीं मिली है. चीन, रूस और ब्राजील जैसे देश अपने समुद्री इलाकों को इसमें शामिल करने को तैयार नहीं.

काटोवित्से में होने वाला जलवायु सम्मेलन पर्यावरण संरक्षण की नई दिशा दिखा सकता है. अगर वहां शामिल होने वाले राजनेता पर्यावरण सुरक्षा के प्रति गंभीरता दिखाते हैं, तो इन देशों को जैव विविधता के संरक्षण को भी गंभीरता से लेना होगा. 2020 तक के लिए तय लक्ष्य तो पूरे नहीं हो रहे हैं, लेकिन उसके बाद इस दिशा में क्या होगा, इसका फैसला चीन में 2020 में होने वाले सम्मेलन में होगा.

सूखे की ऐसी तस्वीरें जैसे कोई पेंटिंग हो 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें