1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
शिक्षा

लोन लेकर उच्च शिक्षा का सपना पूरा कर रहे हैं भारतीय

क्रिस्टीने लेनन
१७ जनवरी २०१९

शिक्षा ऋण के प्रति भारत में भी छात्रों में जागरूकता बढ़ रही है. यह उन प्रतिभाशाली छात्रों के लिए वरदान साबित हो रहा है जिनके परिवार की आर्थिक सेहत ठीक नहीं है. लेकिन सबके लिए कर्ज चुकाना आसान नहीं होता.

https://p.dw.com/p/3Bj5V
Ausländische Studierende in Deutschland
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Christian Charisius

भारत में क़र्ज़ लेकर पढाई करने की प्रवृत्ति नहीं रही है. पर बदलते हालात में खासतौर पर महंगी हो रही शिक्षा की वजह से शिक्षा ऋण की भूमिका काफी अहम हो गई है. शिक्षा ऋण की उपलब्धता के चलते उच्च शिक्षा की अभिलाषा रखने वाले मध्यम वर्गीय परिवारों के छात्रों के लिए चुनौती पहले के मुकाबले काफी कम हो गई है. प्रोफेशनल पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए शिक्षा ऋण काफी मददगार साबित हो रहा है. इसके बावजूद रोजगार की अनिश्चितता के चलते अधिकतर छात्र अभी भी शिक्षा ऋण का जोखिम नहीं उठाना चाहते.

स्टडी लोन की मांग

महंगी शिक्षा के चलते मेडिकल, इंजीनियरिंग, फार्मेसी और मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों में पढ़ाई कर रहे छात्रों के बीच शिक्षा ऋण की मांग सबसे अधिक है. बैंक से ऋण लेने वाले अधिकतर छात्र मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं. तीन चौथाई शिक्षा ऋण स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए लिया जाता है. अधिकांश ऋण इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के छात्र ही लेते हैं.

आजकल विदेश में पढाई का चलन भी जोर पकड़ रहा है. अनिकेत LLM की पढाई के लिए ऑस्ट्रेलिया जाना चाहते हैं और इसके लिए बैंक से लोन की जानकारी जुटा रहे हैं. अनिकेत का कहना है, "परिवार पर बोझ डालने की बजाय बैंक लोन के जरिए पढाई करना ज्यादा अच्छा है.” एमएम एडवाइजरी सर्विस की रिपोर्ट के अनुसार विदेश में पढ़ने को इच्छुक छात्रों की संख्या में हर साल वृद्धि हो रही है. 2015 के आंकड़ों के अनुसार साढ़े तीन लाख से अधिक छात्र पढ़ने के लिए विदेश गए. इनमें से एक तिहाई छात्र ऋण के सहारे ही अपने सपने को साकार कर पाते हैं.

सबके लिए नहीं है आसान

आर्थिक रूप से मध्यम वर्गीय परिवार के छात्रों के लिए शिक्षा ऋण हासिल करने में कोई विशेष दिक्कत नहीं आती लेकिन गरीब परिवारों के छात्रों के लिए चुनौती अब भी बरकरार है. चार लाख तक के ऋण अगर भारत में ही रह कर पढ़ने के लिए हो तो इसके लिए गारंटर की जरुरत नहीं होती, लेकिन विदेश में पढाई करने जाने वाले छात्रों के लिए सह-आवेदक का होना अनिवार्य है. विश्व की जानी मानी संस्थाओं में प्रवेश लेने वाले छात्रों को दस्तावेजी सबूत देने के बाद बैंक अधिक ऋण दे सकते हैं. बस जमानत के रूप में संपत्ति के पेपर बैंक अपने पास रख लेता है.

Flash-Galerie Studenten auf dem Campus der Universität in Kalkutta.
तस्वीर: picture alliance/dpa

जिन छात्रों के अभिभावकों के पास संपत्ति नहीं है उसके लिए सपने देख पाना मुमकिन नहीं. आमतौर पर 11 से 14 फीसदी तक की दरों पर ऋण मिलते हैं. बेटे को बैंक लोन के जरिए बीटेक की पढ़ाई कराने वाले आशीष शर्मा का कहना है कि बैंक भले ही इसे सस्ता कहते हों लेकिन ये छात्रों के लिए अधिक है. आशीष कहते हैं, "कई बैंकों में कार और होम लोन, एजुकेशन लोन से भी आसान शर्तों और कम दर पर उपलब्ध है.”

बेरोजगारी की मार

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी का अध्ययन बताता है कि 2018 रोजगार के मामले में काफी बुरा रहा है. देश में बढ़ती बेरोजगारी उन युवा छात्रों के लिए मुश्किल हालात बना रही है जिन्होंने बैंक ऋण के जरिए अपनी पढ़ाई की है. हजारों छात्र कर्ज और रोजगार के चक्रव्यूह में फंस चुके हैं. ऋण भुगतान के लिए अधिकतम 15 वर्ष तक की अवधि मिलती है. इसमें छात्र पढ़ाई खत्म होने के बाद और नौकरी शुरू करने के एक साल बाद ऋण अदायगी शुरू कर सकता है.

लेकिन बढती बेरोजगारी के चलते कई छात्र ऋण अदा करने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं. RTI कार्यकर्त्ता मनीष शर्मा कहते हैं, "पढ़ाई में जो खर्च आया वह नौकरी के अभाव में सिरदर्द बन गया है.” उनका कहना है कि सरकार को उन छात्रों का शिक्षा ऋण माफ़ कर देना चाहिए.

बढ़ता एनपीए

पिछले तीन साल में शिक्षा ऋण का एनपीए यानी डूबा हुआ ऋण 6 हजार करोड़ रूपये से अधिक का हो गया है. यह कुल ऋण का लगभग नौ फीसदी है. एनपीए के बढ़ते आंकड़ों के बाद बैंकों ने अधिक सावधानी बरतना शुरू कर दिया है. सरकार के अनुसार बढ़ते एनपीए के बाद भी इस साल सबसे ज्यादा 14 अरब रुपये शिक्षा ऋण बांटा गया है. पिछले साल की अपेक्षा यह लगभग 28 फीसदी अधिक है. हालांकि ऋण लेने वाले छात्रों की संख्या में गिरावट आई है.

क्रेडिट ब्यूरो सीआरआईएफ हाईमार्क की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2018 में शिक्षा ऋण लेने वाले छात्रों की संख्या में 7 फीसदी तक गिरावट आई है. आंकड़ों से स्पष्ट है कि बढ़ते रोजगार संकट ने शिक्षा ऋण लेने वालों के मनोबल को प्रभावित किया है. बैंक का ऋण न चुका पाने की आशंका में कई छात्र कर्ज लेकर पढ़ाई का जोखिम नहीं उठा पा रहे हैं.

जर्मनी के ये खास विश्वविद्यालय