कामयाब है जर्मनी तकनीकी शिक्षा को लोकप्रिय बनाने में
१२ अप्रैल २०१८कच्चे माल के मामले में निर्धन जर्मनी अंतरराष्ट्रीय व्यापार के चैंपियनों में शामिल है. तकनीकी कुशलता की वजह से जर्मनी सालों से चोटी के निर्यातक देशों में है, लेकिन लगातार विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कामगारों की कमी का सामना कर रहा है. तथाकथित स्टेम विषयों (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथेमैटिक्स) में उच्च शिक्षा के लिए सीटों की सीमा नहीं है, लेकिन बहुत से छात्र पढ़ाई पूरी नहीं करते. हालांकि इन विषयों के ग्रैजुएट को दूसरे ग्रैजुएटों की तुलना में ज्यादा तनख्वाह मिलती है फिर भी उद्योग जगत सवा लाख से ज्यादा विशेषज्ञों की कमी का सामना कर रहा है.
भविष्य की अर्थव्यवस्था का विकास विज्ञान व तकनीक के विकास के साथ निकट रूप से जुड़ा है. जर्मन अर्थव्यवस्था की अब तक की कामयाबी का राज भी देश में अच्छा व्यावसायिक प्रशिक्षण, उच्च तकनीकी शिक्षा और सतत प्रशिक्षण है. विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में विदेशों से कामगारों की भर्ती के अलावा ज्यादा छात्रों को इन विषयों के लिए आकर्षित करने और उनके प्रशिक्षण पर भी ध्यान दिया जा रहा है. औद्योगिक देशों के संगठन ओईसीडी के अनुसार प्राकृतिक विज्ञान और तकनीक के विषयों में प्रशिक्षण के मामले में जर्मनी की स्थिति न सिर्फ सुधरी है, वह बहुत ही अच्छा प्रदर्शन कर रहा है.
विभिन्न स्तरों पर सरकारी प्रयासों की वजह से उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला ले रहे छात्र स्टेम विषयों को प्राथमिकता दे रहे हैं. 2015 के एक आंकड़े के अनुसार जर्मनी में 40 प्रतिशत छात्रों ने पढ़ाई के लिए विज्ञान और तकनीकी विषयों का चुनाव किया जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये आंकड़ा 27 प्रतिशत है.
जर्मनी की समस्या स्टेम विषयों में महिलाओं की भागीदारी है. स्कूली शिक्षा पास करने वाली सिर्फ 25 प्रतिशत लड़कियां स्टेम विषयों में पढ़ाई करना चाहती है. यही हाल डबल डिग्री वाले कोर्सों में भी जहां व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ साथ ग्रेजुएशन करने की भी संभावना होती है. जर्मन नियोक्ता संघ के थॉमस साटेलबर्गर की शिकायत है कि यदि आप्रवासी जरूरत को पूरा न करें तो उद्यमों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़े.
जर्मनी में हर साल स्कूल पास करने वाले छात्रों का 60 प्रतिशत यूनिवर्सिटी में दाखिला लेता है. इसके अलावा बड़ी संख्या में विदेशी छात्र भी जर्मन विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं. पिछले सालों में जर्मन शिक्षा संस्थानों ने भारत सहित दुनिया भर के महत्वपूर्ण देशों में रोड शो का सहारा लेकर और ज्यादा विदेशी छात्रों को आकर्षित करने की कोशिश की है. जर्मनी की दोहरी शिक्षा व्यवस्था के तहत यूनिवर्सिटी और उद्यमों के निकट सबंध हैं और यही वजह है कि छात्रों को न सिर्फ व्यावहारिक ज्ञान मिलता है, उद्यमों को भावी कामगार भी मिलते हैं. जर्मनी में रोजगार के लिए अयोग्य ग्रेजुएट जैसी समस्या तो नहीं ही है, युवा लोगों में बेरोजगारी की दर भी 4.2 प्रतिशत के स्तर पर काफी कम है.
भावी जरूरतों के लिए तैयार रहने के लिए हर स्तर पर प्रतिभाओं को आकर्षित करने और उनके लिए सुविधाएं मुहैया कराने पर जोर दिया जा रहा है. व्यावसायिक प्रशिक्षण के कोर्सों में लड़कियों को आकर्षित करने के लिए हर साल प्रशिक्षण देने वाले हर उद्यम में गर्ल्स डे का आयोजन किया जाता है जहां स्कूली लड़कियां पेशे से जुड़ी जानकारियां हासिल कर सकती हैं और इंटर्नशिप या प्रशिक्षण की संभावनाओं के बारे में पूछ सकती हैं. यूनिवर्सिटी के स्तर पर भी इंजीनियरिंग या आईटी पेशों में आए बदलाव के बारे में जानकारी ने लड़कियों को इन पेशों के लिए आकर्षित किया है. कोई शक नहीं है कि पिछले सालों में पास होने वाले इंजीनियरिंग ग्रेजुएटों की संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है.
अणु, परमाणु, न्यूरो बायोलॉजी या जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों में स्कूली छात्रों की रुचि जगाने और प्रतिभाशाली छात्रों को प्रोत्साहन देने के लिए कई यूनिवर्सिटी समर यूनिवर्सिटी का आयोजन करते हैं जिसमें 10वीं के बाद छात्र हिस्सा ले सकते हैं और छुट्टियों के दौरान एक हफ्ता यूनिवर्सिटी के क्लासरूम और प्रयोगशालाओं में बिता सकते हैं. पहले समर यूनिवर्सिटी का आयोजन बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी ने 40 साल पहले 1979 में महिलाओं के लिए किया था, यह महिलाओं के मुद्दों पर शोध के लिए थिंक टैंक बन गया. इस बीच कई शहरों में समर यूनिवर्सिटी का आयोजन किया जा रहा है ताकि प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया जा सके. पूर्वी जर्मनी में इलमेनाऊ की तकनीकी यूनिवर्सिटी ने तो स्कूली बच्चों के लिए एक नया शोध केंद्र ही खोल दिया है. हैम्बर्ग में भी ऐसा एक शोध केंद्र खोला जा रहा है.
शिक्षा की गुणवत्ता जर्मनी में भी बहस का विषय है. जर्मन इंजीनियरिंग संघ के लार्स फुंक का कहना है कि जर्मन इंजीनियर अभी भी दुनिया भर में अव्वल हैं, उनका नाम है, लेकिन विश्विद्यालयों की शिकायत है कि विज्ञान और तकनीक के विषयों में स्कूलों की शिक्षा का स्तर एक जैसा नहीं है. इस अंतर को कॉलेज शिक्षा के दौरान पाटना बड़ी चुनौती है. स्कूलों में अब इस कमी को पूरा करने की कोशिश की जा रही है. सरकार भी विभिन्न स्तरों पर मदद करने की कोशिश कर रही है. जर्मनी अपने राष्ट्रीय उत्पाद का 4.2 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है, जो ओईसीडी देशों के औसत से करीब 1 प्रतिशत कम है लेकिन फिर भी 135 अरब यूरो के बराबर है. फिर भी शिक्षा से जुड़े लोग और उद्यमों के प्रतिनिधि इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.