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कान से देखेंगे आंखों से लाचार

२० मई २०१२

आंखों से लाचार व्यक्ति के लिए एक नायाब तकनीक है, इकोलोट. एक ऐसी तकनीक जिससे नेत्रहीन रास्ते और अड़चनों की दूरी सुन सकते हैं. ठीक वैसे ही जैसे डॉल्फिन और चमगादड़ सुनते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb

चाहे दीवार हो या पेड़. या फिर बस स्टॉप की बेंच एक क्लिक पर पता चल जाता है कि दूरी कितनी है. रास्ते में गड्ढा तो नहीं. नेत्रहीनों के लिए बनी लाठी पर बस एक क्लिक किया और आवाजें इको होकर पहुंचती हैं. हर प्रतिध्वनि अलग होती है.

इको से दूरी कैसे पता लगती है इसके लिए वैज्ञानिकों ने दिमाग पर नजर रखी. इसके लिए टेस्ट के दौरान लोगों के कान में छोटे से माइक्रोफोन लगाए गए. ताकि क्लिक करने की आवाज और उससे होने वाला इको दोनों सुनाई दें. कनाडा की वेस्ट ओंटारो यूनिवर्सिटी में शोध कर रही जर्मन लोरे थालर ने बताया, "न्यूक्लियर स्पिन में हमने छात्रों को यह सुनवाया और उनके मस्तिष्क में होने वाली हलचल को जांचा. फिर वैज्ञानिकों ने इको के साथ और उसके बिना मस्तिष्क की गतिविधियों को मिलाया." उन्हें पता लगा, "इको के दौरान दिमाग के उस हिस्से में हलचल देखी गई जो देखने का काम करता है. जैसे ही नेत्रहीन इको सुनते, उनके दिमाग का देखने वाला हिस्सा सक्रिय हो जाता. न कि वह जो सुनने का काम करता है."

Indien Blinder ließt in Hyderabad Blindenschrift
ब्रेल के बाद अब इकोलोटतस्वीर: AP

इस इको तकनीक का फायदा सिर्फ आंखों से लाचार लोगों को नहीं सामान्य लोगों को भी हो सकता है. लोरे थालर ब्रिटेन के डरहैम शहर में हो रहे एक और शोध में काम कर रहे हैं.

इकोलोट से सतह और आकार का पता लगा जा सकता है. प्रतिध्वनि कैसी है इससे पदार्थ का पता चलता है. क्योंकि सीमेंट की दीवार और पौधे या पेड़ से आने वाली प्रतिध्वनि अलग अलग होती है. इतना ही नहीं गोलाई, कोनों, किनारों की आवाज भी अलग होती है. इस तरह से नेत्रहीन अपने आस पास के माहौल, कमरे का आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं. यह लाठी इस तरह से बनाई गई है कि चलते समय रास्ते में कोई अड़चन आ जाए तो लाठी का एक हिस्सा कांपने लगता है और आंखों से लाचार लोगों को खतरे की आहट मिल जाती है. इतना ही नहीं इस तकनीक की मदद से नेत्रहीन लोग पहाड़ पर चढ़ सकते हैं और साइकल भी चला सकते हैं.

रिपोर्टः गुडरुन हाइसे (आभा मोंढे)

संपादनः ए जमाल

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