1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

कश्मीर में मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट

११ दिसम्बर २०१९

विशेष दर्जा हटाने के समय की गई सुरक्षा कार्रवाई के दौरान बड़ी संख्या में कश्मीर की मस्जिदों को बंद करवा दिया गया था. आज भी हालात वही हैं. इससे मुसलमानों के बीच काफी आक्रोश है. जानिए वहां के लोग क्या कहते हैं?

https://p.dw.com/p/3UbsD
Indien Kaschmir Opferfest
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand

रोमी जान जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े शहर श्रीनगर में रहती हैं. बीते तमाम सालों से उनके दिन की शुरुआत मस्जिद के अजान की आवाज से होती चली आ रही थी. आवाज सुनकर उन्हें अल्लाह से नजदीकी का एहसास होता था. लेकिन बीते कुछ महीनों से सब बदल गया है. पिछले चार महीने से जामिया मस्जिद से दिन में पांच बार निकलने वाली और श्रीनगर में गूंजने वाली आवाज सुनाई देनी बंद हो गई है. ऐसा भारत सरकार द्वारा मुस्लिम बहुल क्षेत्र का विशेष दर्जा हटाने और वहां कड़ी सुरक्षा कार्रवाई करने के बाद हुआ है.

जान कहती हैं, "मस्जिद का बंद होना मेरे और मेरे परिवार के लिए काफी पीड़ादायक है. मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती लेकिन फिलहाल असहाय महसूस कर रही हूं." जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने से पहले भारत सरकार ने पूरे राज्य में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाबलों की तैनाती कर दी थी. सुरक्षा कार्रवाई के तहत प्रमुख मस्जिदों को बंद कर दिया गया. नागरिकों के अधिकारों को सीमित कर दिया गया. मोबाइल और इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई. हजारों लोग गिरफ्तार किए गए.

हालांकि कई महीनों बाद हालात में थोड़े बदलाव हुए हैं. प्रतिबंधों में छूट दी गई है. लेकिन अभी भी कुछ मस्जिदें या तो बंद हैं या फिर वहां लोगों की पहुंच को सीमित कर दिया गया है. मुसलमानों का कहना है कि ऐसा कर उनके धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को कम और उनके अंदर भारत विरोधी भावना को गहरा किया जा रहा है

श्रीनगर स्थित जामिया मस्जिद सैकड़ों साल पुरानी है जिसे ईंट और लकड़ी से बनाया गया है. करीब 12 लाख की आबादी वाले इस शहर में 96 प्रतिशत मुस्लिम हैं. जब मस्जिद खुला हुआ था, हजारों लोग यहां नमाज अदा करने के लिए इकट्ठा होते थे. रोमी हर दिन अपने दो बच्चों को वहां लेकर जाती और जब वे खेलते तो वह परिसर के अंदर बैठ जाती. वे कहती हैं, "मैं अपने सारे दुखों को वहीं भूल जाती थी." अब जब उनके बच्चे पूछते हैं कि वे मस्जिद क्यों नहीं जा सकते तो उनके चेहरे पर एक खामोशी छा जाती है. वे कहती हैं, "मेरे घर की खिड़कियां मस्जिद की ओर ही खुलती है. मैं खिड़कियां खोल अपने बच्चों को मस्जिद के बाहर तैनात सैनिकों को दिखाती हूं."

Indien Kaschmir Opferfest
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand

अधिकारियों के लिए मस्जिदों को लक्ष्य बनाना कोई नई बात नहीं है. कश्मीर में हिंसक संघर्षों और मस्जिदों में शुक्रवार की नमाज के बीच का पुराना रिश्ता है. इसके आसपास के इलाके अकसर ऐसे होते हैं जहां प्रदर्शनकारी भारत विरोधी नारे लगाते हैं और सुरक्षाबलों के साथ उलझते हैं. अधिकारी पहले भी 2008, 2010 और 2016 में अशांति के दौरान विशेष अवधि के लिए मस्जिद में नमाज अदा करने पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि इन तीन सालों में कम से कम 250 दिन तक मस्जिद को बंद रखा गया.

पिछले 55 सालों से 70 वर्षीय मोहम्मद यासिन बांगी जामिया मस्जिद से अजान दे रहे हैं. वे कहते हैं कि आज जो हालात हैं, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया. वे कहते हैं, "पहले के बंदी के दौरान हमें कभी-कभी शाम के अजान के लिए इजाजत मिलती थी. लेकिन इस दफा एक बार भी इसकी इजाजत नहीं मिली है. मस्जिद के बंद होने से मेरी शांति छीन गई है. मुझे आध्यात्मिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है."

शहर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर कहा कि पिछले महीने शुक्रवार को मस्जिद को नमाज के लिए फिर से खोलने का फैसला अधिकारियों ने लिया था कि लेकिन मस्जिद प्रबंधकों ने मना कर दिया. मस्जिद के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन्हें विरोध-प्रदर्शन की आशंका थी. उन्होंने इस वजह से इनकार कर दिया क्योंकि अधिकारी आश्वासन चाहते थे कि भारतीय शासन के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन या भाषण नहीं होना चाहिए. कश्मीर सरकार के मुख्य प्रवक्ता रोहित कंसल ने इस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया. नई दिल्ली स्थित गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी.

भारत के संविधान में धर्म की स्वतंत्रता निहित है. इसमें नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन करने और स्वतंत्र रूप से इसका पालन करने की अनुमति मिलती है. संविधान यह भी कहता है कि राज्य किसी भी धर्म के मामले में भेदभाव, संरक्षण या मध्यस्थता नहीं करेगा. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कश्मीर में मौजूदा सुरक्षा कार्रवाई से पहले भी भारत के मुसलमानों के लिए स्थितियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत खराब हो रही हैं. जून महीने में अमेरिकी विदेश विभाग ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में वर्ष 2018 में गिरावट जारी है. हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया.

Indien Kaschmir Opferfest
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand

अगस्त महीने में इस्लामिक सहयोग संगठन ने कश्मीर में भारत के बंद को लेकर चिंता जताई और अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि कश्मीरी मुस्लिम अपने धार्मिक अधिकारों का उपयोग कर सकें. कश्मीर में प्रतिबंधों की वजह से मुस्लिम धर्मस्थलों और धार्मिक त्योहारों पर होने वाले समारोहों पर भी प्रभाव पड़ा है. अगस्त महीने में मुस्लिम धर्म गुरुओं से कहा गया था कि वे बड़े-बड़े समारोहों की बजाय छोटी-छोटी मस्जिदों के अंदर ईद-उल-अजहा के त्यौहार के लिए नमाज अदा करें. वह भी बिल्कुल सामान्य तरीके से. सितंबर महीने में अधिकारियों ने मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया था.

नवंबर महीने में पैगंबर मुहम्मद की जयंती के वार्षिक उत्सव के दौरान अधिकारियों ने दरगाह हजरतबल के लिए जाने वाले सभी मार्गों को बंद कर दिया था. दरगाह हजरतबल क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित मुस्लिम धार्मिक स्थल है. सिर्फ कुछ हजार लोगों को ही वहां जाने की इजाजत दी गई थी. लेकिन बीते सोमवार को अधिकारियों ने श्रीनगर में एक सूफी मजार में वार्षिकोत्सव के दौरान हजारों लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति दी. इस तरह के समारोहों पर प्रतिबंध विशेष रूप से कश्मीरी मुसलमानों के लिए दुखद है. ये मुसलमान लंबे से शिकायत कर रहे हैं कि सरकार कश्मीर में अमरनाथ तीर्थ यात्रा को बढ़ावा और संरक्षण देने के नाम पर कानून-व्यवस्था के बहाने उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाती है.

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर में इंटरनेशनल लॉ और ह्यूमन राइट के प्रोफेसर शेख शौकत का कहना है कि इस तरह की नीतियों से यह साफ संदेश मिलता है कि सरकार विभिन्न धर्मों के प्रति निष्पक्ष नहीं है. कश्मीर के लोगों को अलग-थलग कर दिया जाता है. वे कहते हैं, "यह शांति बनाने के प्रयास के लिए सही नहीं है. यह कट्टरता को बढ़ावा दे या न दे लेकिन लोगों के बीच अपनी सुरक्षा को लेकर गुस्सा जरूर पैदा करता है. इससे एक बड़ा समूह शासन के खिलाफ हो सकता है."  

आरआर/आरपी (एपी)

__________________________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी