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समाज

करोड़पतियों की लंबी होती फेहरिस्त देखेंगे या गरीबों के हाल

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ जनवरी २०१९

भारत में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है. भारत के शीर्ष एक फीसदी अमीरों की संपत्ति वर्ष 2018 के दौरान रोजाना 2200 करोड़ रुपए बढ़ी. पूरे साल की दौरान उनकी संपत्ति 39 फीसदी बढ़ गई.

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Indien Kluft zwischen Armen und Reichen wird größer
किरन कहते हैं कि देर सबेर उन्हें अपनी दुकान बंद करनी ही पड़ेगीतस्वीर: DW/P. Tewari

 

दूसरी ओर, नीचे से 50 फीसदी आबादी की आय में महज तीन फीसदी का इजाफा हुआ. ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में चेताया गया है कि अगर इस खाई को पाटने की दिशा में ठोस उपाय नहीं किए गए तो इससे देश की सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी.

नहीं सुधरी गरीबों की हालत

केंद्र सरकार के तमाम दावों और वादों के बावजूद देश में गरीबों की हालत में कोई खास अंतर नहीं आया है. उनकी आय में बीते साल के दौरान जहां बेहद मामूली वृद्धि हुई वहीं खर्च उसके मुकाबले कई गुना ज्यादा बढ़ गया.

दक्षिण कोलकाता में एक लांड्री चलने वाले हीरा लाल बताते हैं, "बीते कुछ साल से कोयले और बिजली की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. लेकिन हम उस अनुपात में कपड़ों पर इस्त्री की कीमत नहीं बढ़ा सकते. पहले हम एक कपड़े का पांच रुपए लेते थे. लेकिन बीते दो साल के दौरान इसमें महज एक रुपए वृद्धि हुई है. ज्यादा वृद्धि करने की स्थिति में ग्राहक टूट जाएंगे." वह बताते हैं कि आय के मुकाबले खर्च बढ़ने की वजह से उनका मुनाफा लगातार कम हो रहा है. ऐसा आखिर कब तक चलेगा?

Indien Kluft zwischen Armen und Reichen wird größer
हीरालाल की मुश्किलें बढ़ रही हैंतस्वीर: DW/P. Tewari

कोलकाता में ही रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की दुकान चलाने वाले किरण का भी यही रोना है. वह बताते हैं, "20 साल से दुकान चला रहा हूं. इसी से दो बेटों समेत पूरे परिवार का खर्च चलाया और बेटों को पढ़ाया-लिखाया. लेकिन अब तो लागत निकालनी भी मुश्किल हो रही है. चीजें लगातार महंगी हो रही हैं. ऊपर से ज्यादातर मोहल्लों में शापिंग मॉल खुलने की वजह से लोग वहीं से खरीददारी करने लगे हैं.”

इस धंधे में घटते मुनाफे की वजह से ही किरण ने बेटों को टैक्सी चलाने के काम पर लगा दिया है. वह कहते हैं, "पुरखों की यह दुकान जब तक चलेगी, चलाऊंगा. देर-सबरे तो इसे बंद करना ही होगा.”

हीरा लाल और किरण की हालत देश में अमीरों और गरीबों की बीच साल-दार-साल चौड़ी होती खाई का सबूत है. देश में कुछ लोगों की संपत्ति जहां दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है वहीं ज्यादातर लोग रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी जूझ रहे हैं. ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट से भी हालात की तस्वीर साफ है.

मिलिए जर्मनी के गरीबों से

ऑक्सफैम की रिपोर्ट

ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति पचास फीसदी गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है. स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक से पहले जारी इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर के अरबपतियों की संपत्ति में बीते साल रोजाना 12 फीसदी यानी ढाई अरब डालर की वृद्धि हुई है.

दूसरी ओर,  दुनियाभर में मौजूद गरीबों की 50 फीसदी आबादी की संपत्ति में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. इसके मुताबिक, भारत में रहने वाले 10 फीसदी सबसे गरीब आबादी के 13.6 करोड़ लोग वर्ष 2004  से ही कर्ज में डूबे हैं. इसमें कहा गया है कि वर्ष 2018 के दौरान देश में 18 नए अरबपति बने और उनकी तादाद 119 तक पहुंच गई. ऑक्सफैम ने अनुमान जताया है कि वर्ष 2018 से 2022 के बीच भारत में रोजाना 70 नए करोड़पति बनेंगे.

चिंताजानक तस्वीर

विशेषज्ञों और ऑक्सफैम के अधिकारियों ने देश की इस हालत पर गहरी चिंता जताई है. ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानिमा रिपोर्ट में कहती हैं, "यह नैतिक रूप से क्रूरता है कि भारत में जहां गरीब दो वक्त की रोटी और बच्चों की दवाओं के लिए जूझ रहे हैं वहीं कुछ अमीरों की संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है.” वह चेतावनी के लहजे में कहती हैं कि अगर एक फीसदी अमीरों और देश के बाकी लोगों की संपत्ति में यह अंतर बढ़ता गया तो इससे देश की सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी.

ये है बेघर लोगों का गांव

ऑक्सफैम इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ बेहर कहते हैं, "सर्वेक्षण से इस बात का पता चलता है कि किस तरह राज्य और केंद्र सरकारें स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं पर कम खर्च कर असमानता को बढ़ा रही हैं. दूसरी ओर, कंपनियों और अमीरों पर कम कर लगाए जा रहे हैं. सरकार कर चोरी रोकने में भी नाकाम रही हैं.” उनका कहना है कि आर्थिक असमानता का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर हो रहा है.

जाने-माने अर्थशास्त्री विष्णुपद आचार्य कहते हैं, "तस्वीर का यह रुख बेहद चिंताजनक है. गरीबों और पिछड़ों के हित में केंद्र व राज्य सरकार की तमाम परियजोनाओं और लंबे-चौड़े दावों के बावजूद उनकी हालत में खास सुधार नजर नहीं आ रहा है. दूसरी ओर, अमीर तेजी से और अमीर हो रहे हैं. इसकी वजहों का विश्लेषण कर उनको दूर करने की दिशा में ठोस पहल जरूरी है.”

समाजशास्त्री सुधीर मोहंती कहते हैं, "अमीरों और गरीबों के बीच लगातार बढ़ती खाई की वजह से सामाजिक विसंगतियां भी बढ़ रही हैं. इसकी वजह से सामाजिक संघर्ष तेज हो रहा है. इस हालत पर जल्दी अंकुश के उपाय नहीं किए गए तो आने वाले दिनों में हालात बेकाबू होने का अंदेशा है.”

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