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करतबी केपलर के कमाल

१८ फ़रवरी २०११

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के केपलर मिशन ने पृथ्वी के आकार के ऐसे पहले पिंड खोज निकाले हैं, जो ग्रह कहलाने के उम्मीदवार हो सकते हैं.

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तस्वीर: AP

अंतरिक्ष के एक नए रहस्य के खुलने से वैज्ञानिक चकाचौंध हैं. पांच संभावित ग्रह हमारी पृथ्वी के आकार के हैं और हमारे सूर्य की तुलना में छोटे, अधिक ठंडे सितारों के आवासयोग्य इलाकों में परिक्रमा कर रहे हैं. केपलर को छह ऐसे पिंडों का भी पता चला है, जिनके ग्रह होने की पुष्टि कर ली गई गई है और जो सूर्य की तरह, केपलर-11 नाम के सितारे के गिर्द चक्कर काट रहे हैं. यह हमारे सौर मंडल से बाहर किसी एक ही सितारे की परिक्रमा करने वाले छह ग्रहों की एक मात्र खोजी गई प्रणाली है.

Zuwachs im Sonnensystem
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

पृथ्वी से लगभग 2000 प्रकाश वर्षों की दूरी पर स्थित केपलर-11 अब तक खोजे गए ग्रहों में सबसे नजदीक प्रणाली है. इसके सभी पुष्ट ग्रहों की कक्षाएं शुक्र ग्रह से छोटी हैं और उनमें से पांच की कक्षाएं बुध ग्रह से भी छोटी हैं. वैज्ञानिकों के अनुमान में ये छह ग्रह चट्टान और गैसों का मिश्रण हैं-शायद इनमें पानी भी है.

सभी उम्मीदवार ग्रह पृथ्वी से बड़े हैं. सबसे बड़ा आकार में लगभग यूरेनस और नेप्च्यून के बराबर है. सितारे के सबसे निकट ग्रह केपलर 11-बी पृथ्वी की तुलना में अपने सूर्य के दस गुना अधिक निकट है.

प्रकृति का अनूठा उपहार

नासा और केपलर के वैज्ञानिकों ने सौर मंडल से बाहर के कुल मिलाकर 1200 से अधिक ग्रहों और उम्मीदवार ग्रहों की खोज की जानकारी दी है.

इन ग्रहों के खोजी वैज्ञानिक इसे प्रकृति का एक अनूठा उपहार बता रहे हैं. हमारे सौर मंडल से बाहर पृथ्वी के आकार के दर्जनों ग्रहों की इस नई खोज से नासा के केपलर टेलीस्कोप ने ब्रह्मांड में पृथ्वी के स्थान की और पृथ्वी के अलावा कहीं और जीवन की तलाश की हमारी समझ और जानकारी में एक क्रांति पैदा कर दी है. नासा के वैज्ञानिक जैक लिसौर के शब्दों में, "हम ग्रहों की कक्षाओं, उनके द्रव्यमानों, आकारों के बारे में इतना कुछ जान रहे हैं. और यह अभी शुरुआत भर है. केपलर अब भी ब्योरा भेजना जारी रखे हुए है और हम अपनी आकाशगंगाओं के सितारों के गिर्द मौजूद ग्रहों की विविधता के बारे में अद्भुत स्तर तक जानकारी हासिल करने जा रहे हैं."

और ये खोज अंतरिक्ष के एक छोटे से हिस्से पर निगाह डालने वाले इस सशक्त टैलीस्कोप के केवल शुरू के कुछ महीनों में जुटाई गई जानकारी पर आधारित है – मई 2009 से लेकर सितंबर, 2009 तक की खोज पर.

सफलता निश्चित है

इस ऐतिहासिक खोज का जिक्र करते हुए केपलर के प्रमुख जांचकर्ता बिल बौरूकी ने बताया, "हैं तो ये उम्मीदवार ही, लेकिन मेरा विश्वास है कि आने वाले महीनों और वर्षों में उनमें से अधिकतर के ग्रह होने की पुष्टि हो जाएगी. ये अब तक खोजे गए ग्रहों की तुलना में सबसे बड़ी संख्या है."

ग्रह की पदवी के इन उम्मीदवारों में 68 पृथ्वी के आकार के हैं. 288 अन्य को पृथ्वी से बड़े आकार का, 662 को नैप्च्यून ग्रह के आकार के और 165 को जुपिटर यानी वृहस्पति के आकार का बताया जा रहा है. इनमें से अधिकतर उम्मीदवार हमारे सूर्य की तरह के सितारों की परिक्रमा करते हैं.

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि इन उम्मीदवारों में से 54 अपने मेजबान सितारों के आवासयोग्य इलाको में हैं. उनमें से 5 पृथ्वी के आकार के हैं. अंतरिक्ष के, पानी और पर्यावरण के हालात वाले किसी आवास योग्य क्षेत्र में हल्के नीले रंग के धब्बे का - या कहें एक और पृथ्वी का मिलना, जहां जीवन संभव हो, विज्ञान के एक दुर्लभ स्वप्न का साकार होने के बराबर है. पृथ्वी के आकार के पानी वाले ग्रह जीवन प्रकारों की रचना और क्रमविकास की सबसे अधिक संभावना वाले हैं. जीवन के जिस रूप को हम जानते हैं, उसके वजूद के लिए पानी का होना एक अनिवार्य शर्त है.

खोजी कैपलर की जारी खोज

केपलर पृथ्वी के आकार के ग्रहों के, उनके जन्मदाता सितारों वाले आवासयोग्य इलाके में होने का पता लगाने वाला नैसा का पहला मिशन है. उद्देश्य है पता करना कि हमारे सूर्य की तरह के सितारों के आवासयोग्य इलाके में परिक्रमा करने वाले ऐसे ग्रह ब्रह्मांड में कितने है. और यह संभव हुआ है टेलीस्कोप केपलर की अनोखी क्षमता के बल पर.

कैपलर के करतब का जिक्र करते हुए बोरुकी कहते हैं, "यह उपकरण बहुत कुशलता से काम कर रहा है. वह इससे पहले किसी के भी द्वारा दिए गए व्यौरे की तुलना में 100 गुना अधिक बेहतर व्यौरा मुहैया कर रहा है. वह अंतरिक्ष के एक नए हिस्से की खोज कर रहा है, ब्रह्मांड के एक ऐसे नए भाग की, जिसके रहस्यों को ऐसी कुशलता और लाघव के बिना नहीं समझा जा सकता था. तो वह बहुत ही ग़ज़ब तौर पर व्यौरा उपलब्ध कर रहा है. हम सितारों के रूप की ऐसी विविधता देख रहे हैं, जैसा कि पहले कभी नहीं देखा गया है. हम ऐसे अपेक्षाकृत छोटे ग्रहों की खोज कर रहे हैं, जो इससे पहले कभी नहीं देखे गए. इसलिए कि केपलर के ब्योरे का स्तर बहुत ही अच्छा है."

केपलर ग्रहों के होने का पता सितारों के उजलेपन में आने वाली उस कमी के आधार पर चलाता है, जो उनके सामने से गुजरने वाले ग्रहों के कारण होती है. ग्रहों का पता लगाने की इस तकनीक को ट्रांज़िट यानी पारगमन तकनीक का नाम दिया जाता है.

रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वाशिंगटन

संपादनः एमजी