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कम है एशियाई पोप की संभावना

१३ मार्च २०१३

वैटिकन के सिसटीन चैपल में रोमन कैथोलिक चर्च के 115 कार्डिनल नए पोप का चुनाव कर रहे हैं. एशिया और उन इलाकों के कैथोलिक, जहां चर्च तेजी से बढ़ रहा है, चाहते हैं कि नया पोप उनके इलाके से हो.

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तस्वीर: Reuters

उनका कहना है कि नए पोप का चयन में कैथोलिक चर्च के बदलते चेहरे को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. यूरोप में कैथोलिक धर्मावलंबियों की संख्या घट रही है, जबकि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में उसका तेजी से विस्तार हो रहा है. लेकिन विकसित दुनिया में प्रार्थना सभाओं में आने वाले लोगों की संख्या में कमी के बावजूद पोप का चुनाव के अधिकार वाले जो 115 कार्डिनल सिसटीन चैपल में हैं, उनमें दो तिहाई यूरोप और उत्तरी अमेरिका के हैं.

Vatikan Papstwahl 2013 Konklave
नए पोप का इंतजारतस्वीर: Reuters

एशिया के लिए स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. वोट करने वाले कार्डिनलों में एशिया के सिर्फ 9 प्रतिनिधि हैं. इतना ही नहीं वैटिकन में शासन करने वाले हलके में भी उनकी संख्या बहुत कम है. फिलीपींस के कार्डिनल लुइस अंटोनियो टैगल अपने देश के 8 करोड़ कैथोलिकों और एशिया की उम्मीद लेकर रोम पहुंचे हैं. मनीला के आर्कबिशप पोप के पद के लिए साहसिक चुनाव होंगे क्योंकि 55 साल की उम्र के साथ वे पोप जॉन पॉल द्वितीय से तीन साल छोटे हैं. पोप जॉन पॉल जब 1978 में पोप चुने गए थे तो वे 58 साल के थे.

कैथोलिक न्यूज एजेंसी एशिया न्यूज के संपादक फादर बैर्नार्डो कैरवेलेरा का कहना है कि एशिया वैटिकन के शक्तिशाली निहित स्वार्थ वाले तबकों को चुनौती देना चाहता है. "एशिया के चर्च ज्यादा अधिकार चाहते हैं. उनका कहना है कि वैटिकन की कूटनीति में स्थानीय संवेदनशीलताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता." कैरवेलेरा का कहना है कि आर्कबिशप टैगल की अच्छी बात यह है कि वे कैथोलिक परंपरा के हैं लेकिन खुद को आधुनिक समय के अनुरूप ढाल सकते हैं, "यह उन्हें अच्छा उत्तराधिकारी बनाएगा."

Konklave 2013 Nachfolge Papst Kandidaten Luis Antonio Tagle
कार्डिनल टैगलतस्वीर: JAY DIRECTO/AFP/Getty Images

पोप चुनने वाले कॉन्क्लेव में 9 एशियाई कार्डिनलों में भारत के पांच कार्डिनल हैं. हालांकि हिंदू बहुल देश में कैथोलिक धर्माबंबलियों की संख्या सिर्फ दो प्रतिशत है. लेकिन संख्या के मामले में वहां पौने दो करोड़ कैथोलिक हैं . एशियाई देशों में सिर्फ फिलीपींस में भारत से ज्यादा कैथोलिक हैं.

मुंबई के आर्कबिशप ओस्वाल्ड ग्रेसियास ने इस बात पर गंभीर संदेह व्यक्त किया है कि कोई एशियाई पोप चुना जाएगा, लेकिन वे इस पर जोर देते हैं कि उम्मीदवार का जन्मस्थान कार्डिनलों के फैसले की वजह नहीं होना चाहिए. उन्होंने कैथोलिक न्यूज सर्विस को बताया, "मेरे लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि वे किस महादेश से आते हैं. हम ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जो इस काम के लिए सबसे उपयुक्त है, इस महती जिम्मेदारी के लिए सबसे उपयुक्त है, वह व्यक्ति जिस तक हमें पवित्र आत्मा ले जाएगी."

Vatikan Papstwahl 2013 Wahl Messe Odilo Pedro Scherrer und Norberto Rivera Carrera
कार्डिनल शेरर (बाएं)तस्वीर: GABRIEL BOUYS/AFP/Getty Images

एशियाई कार्डिनलों में श्रीलंका के मैल्कम रंजीत को महत्वपूर्ण माना जाता है. परंपरावादी रंजीत को पोप बेनेडिक्ट ने 2005 धार्मिक रीति रिवाजों का प्रभारी बनाया था. इससे पहले वे इंडोनेशिया और पूर्वी तिमोर में पोप के दूत रह चुके हैं. यदि कार्डिनलों का बहुमत फैसला करता है कि किसी एशियाई को पोप बनाने का समय आ गया है तो 65 वर्षीय रंजीत की उम्र और उनकी विचारधारा टैगल के मुकाबले ज्यादा असरदार होगी.

जबकि इस साल के निर्वाचन में एशिया के मौके कम लगते हैं, विश्व की 30 प्रतिशत कैथोलिक आबादी के साथ लैटिन अमेरिका के पास साओ पाउलो के आर्कबिशप ओडिलो शेरर के रूप में पोप के पद का गंभीर दावेदार है. जर्मन माता-पिता की संतान शेरर का एक फायदा यह भी है कि यूरोप और उत्तर अमेरिका के बाहर के कार्डिनलों में वे वैटिकन इनसाइडर हैं. वे सात साल तक बिशप सम्मेलन के अधिकारी रह चुके हैं और इसकी वजह से वैटिकन की सोच को समझते हैं.

एमजे/ओएसजे (एएफपी)

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