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कम नॉनवेज खाएं, पर्यावरण बचाएं

२० जून २०१२

रियो में टिकाऊ विकास पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है तो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूनेप के प्रमुख आखिम श्टाइनर ने पर्यावरण रक्षा के लिए कम मांस खाने की अपील की है.

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तस्वीर: DW

श्टाइनर का यह प्रस्ताव खाद्य पदार्थों में कमी और उनके उत्पादन में पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने पर लक्षित है. श्टाइनर ने कहा, "ऐसा नहीं है कि हमें भविष्य में शाकाहारी हो जाना चाहिए, लेकिन एक परिवार हर दिन दो बार मीट खाने के बदले सप्ताह में तीन बार मीट खा सकता है." उन्होंने कहा कि लोगों को उपभोक्ता के रूप में सजग होना होगा.

संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन एफएओ के अनुसार दुनिया भर में मीट की खपत बढ़ने के कारण कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है. इसके अलावा जानवरों का चारा उपजाने के लिए खेतों की जरूरत बढ़ती जा रही है और खाद्य पदार्थों की कमी होती जा रही है. रियो दे जनेरो में हो रहे सम्मेलन में रहन सहन और अर्थव्यवस्था में टिकाऊपन लाने के उपायों पर चर्चा होगी.

Currywurst Pommes
तस्वीर: Fotolia/koi88

टिकाऊ विकास शब्द का प्रयोग पहली बार बीस साल पहले रियो के पर्यावरण सम्मेलन के दौरान किया गया था. इसका तात्पर्य विकसित और विकासशील देशों के लिए अर्थव्यवस्था के एक ऐसे मॉडल से है जो समृद्धि, न्याय और पर्यावरण में सामंजस्य स्थापित करे. उस समय कहा गया था कि धरती का दोहन बंद होना चाहिए ताकि हमारे बच्चे साफ हवा में सांस ले सकें. लेकिन उस प्रण के बीस साल बाद भी धरती का दोहन जारी है.

यूनेप प्रमुख श्टाइनर ने खाद्य पदार्थों के उत्पादन, संसाधन और ट्रांसपोर्ट में कुशलता लाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि इस समय दुनिया भर में 40 फीसदी अनाज खेत से किचन में पहुंचने तक बर्बाद हो जाता है. छोटे किसानों द्वारा आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल न होने के कारण भारत में भी अनाज का बड़ा हिस्सा खेल से खलिहान लाने में रास्ते में गिर कर बर्बाद हो जाता है. श्टाइनर का कहना है कि जल्द ही 9 अरब की आबादी वाला समाज ऐसी बर्बादी सहन नहीं कर सकता.संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख ने जर्मनी में सस्ते होते खाद्य पदार्थों पर भी चिंता व्यक्त की है और सस्ता नीति में बदलाव की अपील की है. उपभोक्ताओं को सस्ता खाद्य पदार्थ बेचने के लिए सुपर बाजार लगातार किसानों पर दबाव बढ़ा रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें उत्पादन की कीमत भी नहीं मिल रही है. खाने के सामान को सस्ता करने की होड़ में उसका स्तर भी गिरा है और पर्यावरण पर बोझ बढ़ा है.

Symbolbild Sieb mit Gemüse
तस्वीर: Fotolia/Africa Studio

एमजे/एएम (एएफपी)

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