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कभी हरा-भरा दिखता था, अब लाल हो गया है मैडागास्कर द्वीप

१७ मार्च २०२२

कभी हरी भरी और उपजाऊ रही दक्षिणी मैडागास्कर जमीन अब लाल हो गई है, खेतों से लेकर गांवों और सड़कों तक बस लाल रेत ही नजर आती है. उन बच्चों की आखों में भी, जो राहतकर्मियों से मिलने खाने के पैकेट का रास्ता देख रही हैं.

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दक्षिणी मैडागास्कर की मीन लाल हो गई है
दक्षिणी मैडागास्कर की मीन लाल हो गई हैतस्वीर: Alkis Konstantinidis/REUTERS

चार साल का सूखा और उस पर चारकोल बनाने या फिर खेती के लिए जंगलों को काटने की वजह से यह इलाका धूल से भर गया है.

सात बच्चों की मां तारीरा आनजेकी बेयानतारा में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की एक सुदूर चौकी पर खड़ी हैं. यहां बच्चों में कुपोषण की जांच की जाती है और फिर उन्हें खाना मिलता है. तारीरा कहती हैं, "यहां उगाने को कुछ भी नहीं है. यही वजह है कि हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं और हम भूखे मर रहे हैं."

दक्षिणी मैडागास्कर के 10 लाख से ज्यादा लोग भूख मिटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के तहत मिलने वाले खाने पर निर्भर हैं.

तारिरा अपने साथ चार साल के बेटे अवोराजा को भी ले कर आई हैं. इस बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है. यहां उसे मूंफली से बने प्लंपी के पैकेट मिलते हैं. इसका इस्तेमाल कुपोषित बच्चों के इलाज में होता है. तारिरा बताती हैं, "सात बच्चे हैं तो पर्याप्त खाना नहीं है. प्लंपी भी इसके लिए पर्याप्त नहीं है."

मक्के के सूखे पौधे दिखाती एक स्थानीय महिला
मक्के के सूखे पौधे दिखाती एक स्थानीय महिलातस्वीर: Alkis Konstantinidis/REUTERS

खाने के लिए कैक्टस

इलाके में रहने वाले दूसरे लोगों की तरह ही तारिरा और उनके परिवार के पास कैक्टस की एक प्रजाति के अलावा खाने को कुछ नहीं होता. स्थानीय लोग इसे राकेटा कहते हैं जो यहां खूब उगता है. लेकिन इसमें बहुत कम पोषण होता है. तारिरा ने बताया कि उसे खाने पर पेट में दर्द भी होता है.

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मैडागास्कर दुनिया का चौथा सबसे बड़ा द्वीप है. अपने बेहद जटिल इकोसिस्टम के साथ ही हजारों पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए जाना जाता है. मैडागास्कर का नाम सुन कर एक हरे भरे प्राकृतिक स्वर्ग की छवि मन में उभरती है. लेकिन इसी स्वर्ग के कुछ हिस्सों की जमीनी सच्चाई एकदम बदल गई है.

दक्षिणी इलाके आंद्रोय के गवर्नर सोजा लारिमारो सिमानडिलात्से कहते हैं, "हम मैडागास्कर को हरा द्वीप कहते थे लेकिन यह बहुत दुखद है कि अब यह ज्यादातर लाल द्वीप हो गया है."

जलवायु परिवर्तन से भुखमरी

इस इलाके में भोजन का संकट पिछले कई सालों में बढ़ा है. स्थानीय अधिकारी और सहायता एजेंसियां बताती हैं कि इसका संबंध आपस में जुड़ी कई चीजों से है. जैसे कि सूखा, जंगलों की कटाई, पर्यावरण को नुकसान, गरीबी, कोविड-19 और आबादी में वृद्धि. 

करीब 3 करोड़ की आबादी वाले मैडागास्कर की पहचान मौसमों के मिजाज में बढ़ती तीव्रता की वजह से बदल रही है. हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक, बार-बार और ज्यादा तीव्रता के साथ आती मुश्किलों का कारण इंसानी गतिविधियों से होने वाला जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़ोतरी है.

यहां चार साल से लगताार सूखा पड़ रहा है
यहां चार साल से लगताार सूखा पड़ रहा हैतस्वीर: Alkis Konstantinidis/REUTERS

संयुक्त राष्ट्र के आईपीसीसी क्लाइमेट चेंज पैनल का कहना है कि मैडागास्कर में पहले से ही सूखा बढ़ता दिख रहा है और आने वाले दिनों में इसके और ज्यादा बढ़ने की आशंका है. दक्षिण की ओर खाने का संकट बढ़ते देख कर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने चेतावनी दी है कि यह द्वीप "दुनिया में पहली बार जलवायु परिवर्तन के कारण भूखमरी" का सामना करने का जोखिम झेल रहा है.

दक्षिणी मैडागास्कर में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम चलाने वाले थियोडोर मबाइनाइसेम बताते हैं कि नियमित मौसम का चक्र बदलने के बाद हाल के वर्षों में गांव के बुजुर्ग यही नहीं समझ पा रहे हैं कि फसल कब लगाएं और कब काटें.

आपात स्थिति से उबरे

मबाइनाइसेम ने बताया कि कई महीनों तक वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और दूसरी सहायता एजेंसियों समेत स्थानीय अधिकारियों की मदद से भोजन संकट का सबसे बुरा दौर अब बीत चुका है. उनका कहना है कि बच्चों में गंभीर कुपोषण की दर कुछ महीने पहले जो 30 फीसदी थी अब घट कर 5 फीसदी पर आ गई है. उन्होंने कहा, "अब आप गांवों मे देखें तो बच्चे इधर-उधर खेलते नजर आते हैं. पहले ऐसा नहीं था."

समुदाय और सहयाता संगठन आपात स्थिति से उबरने के बाद अब भविष्य के लिए योजनाएं बनाने में जुटे हैं. इसमें तटवर्ती शहर में पेड़ लगा कर रेत के टीलों को एक जगह स्थिर करने के प्रयास बड़े पैमाने पर किए जा रहे हैं. 

बारिश के लिए प्रार्थना

हालांकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग अब भी बेहद गरीबी में हैं. जिन वजहों से संकट पैदा हुआ था, वे कमोबेश अब भी मौजूद हैं.

20 साल के फेलिक्स फितियावान्त्सोआ की हाल ही में शादी हुई है. वो एक जंगली इलाके को जला कर खत्म कर रहे हैं ताकि वहां खेती कर सकें. जंगल हटाने से लंबे समय में क्या नुकसान होगा इसकी उन्हें इतनी चिंता नहीं है. फिलहाल उनकी सबसे बड़ी जरूरत है अनाज उगा कर अपने परिवार का पेट पाल सकें. उनकी सबसे बड़ी चिंता है कि जल्दी बारिश हो, ताकि वो खेती शुरू कर सकें. फितियावान्त्सोआ ने कहा, "अगर बारिश नहीं हुई तो मुझे नहीं पता कि हम क्या करेंगे. हम भगवान से प्रार्थना करेंगे."

एनआर/आरएस (रॉयटर्स)

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