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समाज

कबूतरबाजों पर भारी पड़ गई थोड़ी होशियारी

३० अगस्त २०१८

अगर आप कबूतरबाजी के मुकाबले को जीतना चाहते हैं तो जान लीजिए की बुलेट ट्रेन, कबूतरों से तेज चलती हैं. चीन में इस मुकाबले को जीतने के लिए दो व्यक्तियों ने एक प्लॉट तैयार किया, पर बुलेट ट्रेन की स्पीड नही समझ पाए.

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Berlinale 2018 | Türkische Filme |  Güvercin | The Pigeon
तस्वीर: Anagraf Films/Ali Guleryuz

शंघाई में हुए इस मुकाबले में नियम के मुताबिक वही कबूतर भाग ले सकते थे जो एक साल की उम्र तक शंघाई में पले हो. रेस के लिए इन कबूतरों को शंघाई के पश्चिमोत्तर में बसे हेनान प्रांत के शांइची से छोड़ जाता. शांइची का फासला रोड से 743 किलोमीटर है. लेकिन बूतरों के लिए ये हवाई दूरी 651 किमी है. लेकिन मुकाबला जीतने का सपना देख रहे दो चीनी युवकों ने एक अलग ही प्लान बनाया. दोनों ने अपने कूबतरों को ऐसे पाला ताकि उन्हें एहसास दिलाया जा सके कि उनके दो घर हैं. कबूतरों को छुप-छुपाकर शंघाई की जगह शांइची में भी पाला जाता रहा.

जब मुकाबला शुरू हुआ तो शंघाई पिजन ऐसोसिएशन ने सारे कबूतरों को ले जाकर शांइची में छोड़ दिया. जिसके बाद सभी कबूतरों ने शंघाई की ओर अपनी यात्रा शुरू की. लेकिन खास ट्रेनिंग पाए ये चार कबूतर शंघाई जाने के बजाय शांइची में अपने घर की तरफ लौट आए. फिर इनके मालिकों ने इन्हें पकड़ा और दूध के डब्बों में डालकर बुलेट ट्रेन से शंघाई ले आए. चीन में जिंदा पशुओं को बुलेट ट्रेन से ले जाने पर प्रतिबंध है इसलिए यह काम गुप्त रूप से किया गया.   

फिर क्या, जैसे ही ये दोनों व्यक्ति शंघाई पहुंचे इन्होंने कबूतरों को छोड़ दिया. कबूतर भी फौरन शंघाई में बनी अपनी अटरिया पर वापस लौट गए. ऐसा लगने लगा मानो ये कबूतरबाजी का मुकाबला जीत ही गए. लेकिन बवाल इनके वापस लौटने का साथ ही शुरू हो गया.

दरअसल इस प्लॉट को गढ़ने वालों से बस इतनी गलती हो गई कि इन्होंने कबूतरों को थोड़ा पहले उड़ा दिया और इनकी स्पीड का ध्यान नहीं रखा. आमतौर पर शंघाई से शांइची को फासला करीब आठ घंटे में पूरा होता है. वहीं कबूतरों को इसमें और समय भी लगता है. लेकिन बुलेट ट्रेन ने महज यह यात्रा 3 घंटे और 18 मिनट में पूरी करा दी. अन्य कबूतरबाजों ने जब इस तेजी पर सवाल उठाए तो पूरी पोल-पट्टी खुली और मामला अदालत तक पहुंच गया.

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कोर्ट ने कहा कि इन दोनों ने सबूतों को मिटा दिया और कबूतरों को भी मार डाला. लेकिन दोनों ने मुकाबला जीतने का दावा करते हुए इनाम की राशि नहीं ली. अदालत ने कहा कि अगर ये इनाम राशि ले लेते तो इसे अधिक गंभीर अपराध माना जाता और इन्हें लंबा जेल जाना पड़ता.

अदालत ने इन दोनों को दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई, लेकिन नरमी दिखाते हुए फैसले को निलंबित भी कर दिया. साथ ही कहा कि अगर ये किसी अन्य अपराध में दोषी पाए गए तो इन्हें जेल भेजा जाएगा.

घरेलू कबूतरों के ये मुकाबले आज से कई सौ साल पहले काफी मशहूर हुआ करते थे. भारत में चेन्नई को आज भी कबूतरबाजी का मक्का कहा जाता है. घरों में बनी अटरियों पर कबूतरों को पाला जाता और फिर कहीं दूर ले जाकर छोड़ दिया जाता. जो कबूतर अपने घर सबसे पहले वापस आता है उसे मुकाबले में विजेता का खिताब मिलता.

छोटी फासले को तय करने के लिए कबूतर 160 किमी प्रति घंटे की उड़ान भरते हैं. वहीं अगर दूरी लंबी होती है तो कबूतर 140 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से कई दिन तक उड़ते रहते हैं.

एए/ओएसजे (एएफपी)