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समाज

अमेरिकी सैन्य कानून में लैंगिक भेदभाव

७ जून २०२१

अमेरिका में सिर्फ पुरुषों को सेना में अनिवार्य सेवा देने के लिए पंजीकरण कराने के कानून को बदलने की मांग हो रही है. वैसे आखिरी बार अनिवार्य भर्ती वियतनाम युद्ध के समय हुई थी, लेकिन इस कानून के होने के और भी कई मायने हैं.

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USA Weibliche Rekruten bei den US Marines
तस्वीर: Patrick T. Fallon/AFP

मिलिट्री सेलेक्टिव सर्विस कानून के तहत पुरुषों को 18 साल की उम्र का होते ही सेना में सेवा देने के लिए पंजीकरण कराना होता है. अब सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचीका दायर कर अदालत को फैसला करने के लिए कहा गया है कि यह लैंगिक भेदभाव है या नहीं. वैसे तो इसे एक ऐसे सवाल के रूप में भी देखा जा सकता है जिसका कोई खास व्यावहारिक असर नहीं है. पिछली बार सेना में अनिवार्य भर्ती वियतनाम युद्ध के समय हुई थी और उसके बाद से आज तक सेना में सब अपनी मर्जी से आते हैं.

लेकिन पंजीकरण की अनिवार्यता उन आखिरी बचे खुचे नियमों में से है जो पुरुषों और महिलाओं में भेदभाव करते हैं. महिला अधिकार समूह उन समूहों में से हैं जिनका मानना है कि इसे बरकरार रखना नुकसानदायक है. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियंस वीमेंस राइट्स प्रोजेक्ट की निदेशक रिया तबाक्को मार भी इस अपील में शामिल हैं. वो कहती हैं कि पुरुषों के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने से "उन पर एक ऐसा गंभीर बोझ डाला जा रहा है जो महिलाओं पर नहीं डाला जा रहा है."

जो पुरुष पंजीकरण नहीं करवाते वो विद्यार्थी लोन और सरकारी नौकरी की पात्रता खो सकते हैं. पंजीकरण नहीं करवाना एक बड़ा जुर्म भी है जिसकी सजा 2,50,000 डॉलर तक का जुर्माना और पांच साल तक की जेल है. लेकिन तबाक्को मार कहती हैं कि इस अनिवार्यता के और भी असर हैं. वो कहती हैं, "यह एक अत्यधिक हानिकारक संदेश भी देता है कि महिलाएं अपने देश की सेवा करने के लिए पुरुषों के मुकाबले कम फिट हैं."

USA Weibliche Rekruten bei den US Marines
महिला अधिकार समूहों का कहना है कि इस कानून के जैसे स्टीरियोटाइप पुरुषों और महिलाओं दोनों को नीचा दिखाते हैंतस्वीर: Mike Blake/REUTERS

संसद के दायरे में

तबाक्को मार यह भी कहती हैं, "यह कानून यह भी संदेश देता है कि किसी सशस्त्र संघर्ष के समय घर रह कर परिवार का ख्याल रखने में पुरुषों महिलाओं से कम लायक हैं. हमें लगता है कि इस तरह के स्टीरियोटाइप पुरुषों और महिलाओं दोनों को नीचे दिखाते हैं." तबाक्को मार इस कानून को चुनौती देने वाले नैशनल कोअलिशन फॉर मेन और दो और पुरुषों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.

सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों का एक समूह और नैशनल आर्गेनाईजेशन फॉर वीमेन फाउंडेशन ने भी अदालत से इस मामले पर सुनवाई करने की अपील की है. अगर अदालत सुनवाई करने की मांग को मान लेती है तो वो यह फैसला नहीं ले रही होगी कि महिलाओं को भी पंजीकरण करवाना होगा या नहीं. अभी अदालत सिर्फ इतना तय करेगी कि मौजूदा सिस्टम संवैधानिक है या नहीं.

अगर यह असंवैधानिक करार दिया जाता है तो यह संसद के ऊपर होगा कि वो सबके लिए पंजीकरण अनिवार्य करने का कानून लागू करेगी या पंजीकरण की अनिवार्यता को ही खत्म कर देगी. यह मामला पहले भी अदालत में आ चुका है लेकिन यह तब की बात है जब अमेरिकी सेना में महिलाएं सक्रीय रूप से लड़ाई की भूमिका में नहीं जा सकती थीं. लेकिन सेना के नियम अब बदल चुके हैं.

2013 में महिलाओं को भी लड़ाई की भूमिका में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गई और उसके दो साल बाद सेना में हर भूमिका को महिलाओं के लिए खोल दिया गया. अमेरिकी सरकार सुप्रीम कोर्ट के जजों से अपील कर रही है कि वो इस मामले पर सुनवाई ना करें और इस पर संसद को फैसला लेने दें. 

सीके/एए (एपी)

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