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फैलता शहर सिकुड़ते कब्रगाह

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ मार्च २०१८

तेजी से फलते कोलकाता में कब्रगाहों के सिकुड़ने का सिलसिला लगातार तेज हो रहा है. नई पीढ़ी को भी इनके महत्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

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Indien Kalkutta - Friedhöfe
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari

भारत की आजादी से पहले लंबे अरसे तक ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय और अंग्रेजों की राजधानी रहे कोलकाता महानगर की इमारतों की तरह शहर के भीतर बने कब्रिस्तान भी काफी पुराने हैं. महानगर के विभिन्न इलाकों में फैलती कंक्रीट की इमारतों के बीच गुमशुम पड़ी कई कब्रगाह तो अपने आप में इतिहास समेटे हुए हैं. बीते पांच दशकों के दौरान महानगर का नक्शा तेजी से बदला है और इसके साथ ही ऐसी कई कब्रगाह नक्शों से गायब हो गई हैं. अब ऐतिहासिक महत्व की कुछ कब्रगाहों को संरक्षित करने की कोशिशें जरूर शुरू हुई हैं. लेकिन यह नाकाफी ही हैं.

सात समंदर पार से अब भी कई लोग अपने पूर्वजों की कब्रें तलाशने नियमित रूप से इन कब्रगाहों में पहुंचते रहते हैं. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मारे गए कई विदेशी फौजी अफसरों के शव भी इन कब्रगाहों में दफन हैं. महानगर के विस्तार का इन कब्रगाहों पर प्रतिकूल असर पड़ा है. अब तक यहां पहुंचने वाले रास्ते तो संकरे हो ही गए हैं, कई कब्रगाहों का तो नामोनिशान तक मिट गया है. लेकिन अब भी ऐसी कई क्रबगाह महानगर की भीड़भाड़ और शोरगुल के बीच शांति से पसरी हैं. इनके अलावा सदियों पुराने कई मजार भी महानगर में मौजूद हैं.

Indien Kalkutta - Friedhöfe
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari

कोलकाता के दक्षिण में रबींद्र सरोवर नामक एक विशालकाय झील के इर्द-गिर्द नजरुल मंच अब संगीत और सांस्कृतिक आयोजनों के परिसर के तौर पर मशहूर है. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि यहां कई अंग्रेजों की कब्रें भी बनी हैं. इस झील की खुदाई वर्ष 1920 में की गई थी. यहां झील बनने से पहले क्या था, इसकी जानकारी अब बहुत कम लोगों को ही है. यहां मुसलमानों की एक कब्रगाह थी. लेकिन अब यहां महज एक ही कब्र बची है. बाकी कब्रों पर समय की धूल चढ़ती रही और वे गायब हो गईं. मौजूदा इकलौती कब्र पर कुछ लिखे नहीं होने की वजह से इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि वह किसकी कब्र है और उसे अब तक सुरक्षित क्यों रखा गया है.

कोलकाता के एक कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर रहे नबारुण माइती कहते हैं, "कोलकाता की इमारतों की तरह यहां पसरे कब्रिस्तान भी ऐतिहासिक धरोहर से कम नहीं हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि किसी भी सरकार ने इस धरोहर के संरक्षण पर खास ध्यान नहीं दिया." वह बताते हैं कि इन कब्रिस्तानों में ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर की कई मशहूर शख्य्सियतों को दफनाया गया था. लेकिन नगर निगम के पास उनका कोई सिलसिलेवार रिकार्ड नहीं है.

महानगर के नारकेलडांगा रेलवे ब्रिज के नीचे स्थित पीर बाबा के दरगाह का मामला अनूठा है. पुराने नक्शों से साफ है कि यहां पहले एक कब्रगाह थी जिस पर बाद में रेलवे की पटरियां बिछाई गई थीं. लेकिन उसके निर्माण के दौरान सड़क पर बना एक ब्रिज बार-बार टूट जाता था. तब स्थानीय लोगों ने बताया कि उस जगह पर एक पीर बाबा की कब्र है. जब तक उनकी यादों को सुरक्षित नहीं किया जाएगा तब तक ब्रिज पूरा नहीं हो सकता. उसके बाद इंजीनियरों ने ब्रिज के नीचे सुरंग में पीर बाबा के मजार का निर्माण किया और हैरत की बात यह है कि उसके बाद ब्रिज आज तक कभी नहीं टूटा. दिलचस्प बात यह है कि यहां हिंदू देवताओं की भी तस्वीरें लगी हैं. मान्यता है कि यहां दुआ मांगने वालों की मन की मुरादें पूरी हो जाती हैं. 15 जुलाई को सालाना उर्स के समय यहां हर धर्म के लोगों की भारी भीड़ जुटती है.

कोलकाता से दिल्ली-मुंबई नेशनल हाइवे की ओर जाते समय सड़क के बीचोबीच बनी एक कब्र लोगों का ध्यान खींचती है. मरहूम शेख इशाक अली की कब्र पर लगे शिलालेख से पता चलता है कि उनका निधन 15 सितंबर, 1972 को हुआ था. इस हाइवे के निर्माण के दौरान स्थानीय लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए राज्य सरकार ने इसे वहीं रहने दिया था. पहले यह एक संकरी सड़क थी. लेकिन 1992 में हुगली पर विद्यासागर सेतु नामक नया ब्रिज बनने के बाद ट्रैफिक बढ़ने की वजह से इसे चौड़ा बनाया गया था.

Indien Kalkutta - Friedhöfe
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari

कोलकाता के पूर्वी छोर पर तोपसिया इलाके में भी सैकड़ों साल पुरानी एक कब्रगाह है जहां पहले सिर्फ हिंदुओं को जलाया जाता था. इसी वजह से इसका नाम भी ऐसा ही रखा गया था. लेकिन अब यहां तक जाने वाले रास्ते बेहद संकरे हो चुके हैं. आसपास के नए लोगों को भी इसके इतिहास के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है. कोलकाता नगर निगम ने अब यहां एक शवगृह और अंतिम संस्कार के लिए बिजली के चूल्हे लगाए हैं. इसके बगल में ही एक मुस्लिम कब्रगाह है जो सिर्फ बच्चों के लिए बनाया गया था. तोपसिया स्थित कब्रगाह से कोई सौ मीटर दूर अपनी दुकान चलाने वाले 84 साल के मोहम्मद मूसा कहते हैं, "पहले बस्ती के लोगों को काफी सहूलियत थी. लेकिन धीरे-धीरे आबादी का दबाव बढ़ने और पुराने मकानों के बहुमंजिली इमारतों में बदलने की वजह से यहां शवों को दफनाने का काम लगभग बंद हो गया है."

वर्ष 1767 में महानगर के पॉश कहे जाने वाले पार्क स्ट्रीट इलाके में बनी इस कब्रगाह में 1600 से ज्यादा कब्रें हैं. इनमें से ज्यादातर कब्रें अंग्रेजों की हैं. इसकी गिनती महानगर के सबसे पुरानी कब्रगाहों में होती है. यहां कई मशहूर हस्तियों की कब्रें हैं. जगह की कमी की वजह से 1840 में इसे बंद कर दिया गया था. अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) हेरिटेज साइट के तौर पर इसकी देखभाल करता है. यहां अब भी अक्सर कई विदेश नागरिक अपने पूर्वजों की कब्रों की तलाश में पहुंचते हैं. इसे कोलकाता का सबसे भूतहा कब्रगाह भी कहा जाता है.

पार्क स्ट्रीट स्थित कब्रिस्तान से कोई सौ मीटर दूर अपनी बेकरी चलाने वाले फारुख भी माइती की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "किसी दौर में इस कब्रिस्तान का जलवा था. तमाम खानदानी लोगों में बुजुर्गों के शवों को यहीं दफनाया जाता था. लेकिन लंबे अरसे से उपेक्षित रहने की वजह से यह जंगल में बदल गया है." फारुख कहते हैं कि इस कब्रिस्तान की अहमियत इसी से साबित होती है कि किसी दौर में इसी की वजह से पार्क स्ट्रीट को ब्यूरियल ग्राउंड रोड कहा जाता था. अब क्रिश्चियन ब्यूरियल बोर्ड ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की सहायता से इसके जीर्णोद्धार का काम शुरू किया है. बोर्ड के सचिव असीम कुमार विश्वास बताते हैं, "इस ऐतिहासिक धरोहर को उसके पुराने स्वरूप में लाने की योजना पर काम हो रहा है. हमारा मकसद एसे एक पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित करना है."

कोलकाता के मशहूर कालीघाट मंदिर के पास आदिगंगा के किनारे बसा यह श्मसान बेहद पुराना और सबसे बड़ा है. यह अपने आप में इतिहास समेटे है. महानगर की तमाम जानी-मानी हस्तियों को निधन के बाद अंतिम संस्कार के लिए यहीं लाया जाता है. इनमें सत्यजित रे से लेकर सुनील गंगोपाध्याय तक सैकड़ों नाम शामिल हैं. दुनिया भर में मशहूर कालीघाट मंदिर के पास होने की वजह से इसकी खासी अहमियत है.

अब हाल में इनमें से कई कब्रगाहों की मरम्मत और संरक्षण का काम शुरू किया गया है. कुछ को शहर की सीमा से बाहर निकाल अन्यत्र ले जाया जा रहा है. कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी कहते हैं, "हमने कुछ कब्रगाहों की मरम्मत और रखरखाव का काम शुरू किया है. कुछ को बाहरी इलाकों में ले जाया जा रहा है. लेकिन कुछ मजार ऐसे हैं जिनकी जगह बदलना संभव नहीं है." इतिहासकार माइती कहते हैं, "महानगर के बीचोबीच बने इन कब्रिस्तानों में कोलकाता का अतीत और गौरवशाली इतिहास अब तक जीवित है. इनके संरक्षण की दिशा में ठोस प्रयास जरूरी हैं."