1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ओडीशा में महिलाओं का चिपको आंदोलन

प्रभाकर मणि तिवारी
१९ नवम्बर २०१८

एकता में ताकत वाली कहावत यूं तो बहुत पुरानी है. लेकिन ओडीशा के ढेंकानाल जिले के 13 गांवों की आदिवासी महिलाओं ने एक बार फिर इसे सच साबित कर दिखाया है.

https://p.dw.com/p/38U5m
Symbolbild Baum Lady Liberty
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Kaufhold

इलाके में पेड़ों को कटने से रोकने के लिए इन महिलाओं के चिपको आंदोलन की वजह से नवीन पटनायक सरकार को अपना फैसला बदलने पर मजबूर होना पड़ा है. सरकार ने एक बीयर बॉटलिंग संयंत्र को जमीन देने के लिए झिंकारगड़ी जंगल में पेड़ों की कटाई का आदेश दिया था. लेकिन इलाके के 13 गांवों की महिलाओं ने सत्तर के दशक के चिपको आंदोलन को साकार करते हुए सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

अंततः सरकार ने फिलहाल पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है. जानकारों का कहना है कि संभवतः मुख्यमंत्री को अंधेरे में रख कर स्थानीय प्रशासन ने पेड़ों की कटाई का फैसला किया था.

आखिर क्या है मामला?

नवीन पटनायक सरकार ने कोलकाता के एक कारोबारी समूह को बीयर फैक्टरी के बॉटलिंग प्लांट के लिए इलाके में 12 एकड़ जमीन लीज पर दी थी. इस परियोजना पर 102 करोड़ की लागत आनी थी. लेकिन उस जमीन में से पांच एकड़ पर साल के पेड़ लगे थे. लीज की शर्तों के मुताबिक सरकार ने जिला प्रशासन को साल के पेड़ों को काटने का आदेश दिया था.

दिलचस्प बात यह है कि पटनायक ने खुद ही सात नवंबर को वीडियो कांफ्रेंसिग के जरिए उक्त परियोजना का शिलान्यास किया था. इसका निर्माण कार्य आठ नवंबर को ही शुरू होना था. लेकिन पेड़ों की कटाई की खबर फैलते ही बलरामपुर इलाके के 13 गांवों की महिलाएं मौके पर पहुंच गईं. वह तमाम पेड़ों से चिपक गईं. नतीजतन पेड़ काटने के लिए मौके पर पहुंचे लोगों को कामयाबी नहीं मिली.

एक सप्ताह से जारी इस आंदोलन के बाद शनिवार को पुलिस व सुरक्षा बलों ने पेड़ों से चिपकी महिलाओं को जबरन मौके से हटाया. शनिवार को गांव वालों व सुरक्षा बलों के बीच हुई झड़पों के बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने रविवार को जिले में पेड़ों की कटाई तत्काल रोकने का निर्देश देते हुए राजस्व आयुक्त से इस मामले की जांच करने को कहा है.

बलरामपुर की एक महिला झिरना कहती हैं, "हम चार दशकों से भी ज्यादा समय से इस जंगल की हिफाजत करते आ रहे हैं. यह जंगल हमारी मेहनत का नतीजा है. हम इसे कैसे कटने दे सकते हैं?" उनका कहना है कि चाहे उनकी जान चली जाए लेकिन इस जंगल को कटने नहीं देंगी. अब सरकारी फैसले के बाद इलाके के लोगों ने राहत की सांस ली है. लेकिन उनके मन में अब भी संदेह है.

चिपको आंदोलन की अगुवाई करने वालों में से एक सुशांत ढाला कहते हैं, "जब तक इस परियोजना को बंद करने या कहीं और शिफ्ट करने का फैसला नहीं होता, हम चुप नहीं बैठेंगे." वह बताते हैं कि इस जंगल में विभिन्न प्रजाति के साढ़े नौ से ज्यादा बड़े पेड़ हैं.

जंगल की कटाई के निरोध में गांव वालों ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में एक याचिका दायर की थी. इस मामले की सुनवाई 20 नवंबर को होनी थी. लेकिन उससे पहले ही जिला प्रशासन ने पेड़ों की कटाई का फैसला कर लिया. तो क्या इस मामले में मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा गया था?

इस सवाल पर स्थानीय बीजेपी विधायक प्रदीप पुरोहित कहते हैं, "कुछ पेड़ काटे जा चुके हैं और सरकारी फैसले का विरोध करने वाली महिलाओं के खिलाफ मामले दर्ज हो चुके हैं. अब जांच की क्या तुक है?" दूसरी ओर, विधानसभा में विपक्ष के नेता नरसिंह मिश्र कहते हैं, "केंद्र की अनुमति के बिना पेड़ नहीं काटे जा सकते. लेकिन प्रशासन ने यहां गैर-कानूनी रूप से कई पेड़ काट दिए हैं."

जंगल की सुरक्षा

इलाके के तमाम गांवों के लोग दशकों से इस जंगल की सुरक्षा करते रहे हैं. लगभग हर घर से रोजाना कोई न कोई व्यक्ति यह देखने के लिए मौके पर जाता है कि कहीं लकड़ी माफिया चोरी-छिपे पेड़ तो नहीं काट रहा है. इलाके की एक महिला शांता साहू कहती हैं, "हमारे घर के पुरुष तीन पीढ़ियों से ऐसा कर रहे हैं. यह जंगल हमारे परिवार की तरह अजीज है. हम किसी भी कीमत पर इसे कटने नहीं दे सकते."

बलरामपुर की तमाम महिलाओं का कहना है कि यह जंगल ही उनका जीवन है. झिंकारगड़ी जंगल लगभग छह सौ एकड़ में फैला है. कुछ साल पहले उद्योगों के लिए लैंड बैंक बनाने के मकसद से राज्य सरकार ने विभिन्न हिस्सों में फैली अतिरिक्त जमीन की पहचान कर उनका वर्गीकरण बदलने का फैसला किया था.

बलरामपुर के लोगों ने उसी समय इसका विरोध किया था. लेकिन प्रशासन ने इस पर खास ध्यान नहीं दिया. बलरामपुर ग्राम्य परिचालन परिषद (बीजीपीपी) के सचिव सुशांत कुमार ढाला कहते हैं, "हम किसी कीमत पर सरकार को जंगल नहीं काटने देंगे." परिषद ने बीते साल इस मामले में ओडीशा हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की थी. उस पर अदालत ने सरकार से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है.

इस मामले में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में गांव वालों के वकील शंकर पाणि कहते हैं, "केंद्र की अनुमति के बिना जगंल की जमीन का दूसरे मद में इस्तेमाल वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 की धारा दो के प्रावधानों का उल्लंघन है." इलाके की महिलाओं का कहना है कि कानूनी लड़ाई का नतीजा चाहे जो हो, वे अपने जीते-जी पेड़ों को नहीं कटने देंगी. पहले दौर में जीत की वजह से इन महिलाओं के हौसले काफी बुलंद हैं. एक महिला चतुरी साहू कहती हैं, "हम इस लड़ाई को आखिर तक ले जाएंगे."

हामबाखर जंगल में सैकड़ों साल पुराने पेड़ कटेंगे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें