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शिक्षा

ऑनलाइन पढ़ाई की मुश्किलों से ऐसे निपट रहा है पूर्वोत्तर

प्रभाकर मणि तिवारी
४ सितम्बर २०२०

छह महीने से ज्यादा से जारी कोरोना लॉकडाउन में इंटरनेट, कंप्यूटर और स्मार्ट फोनों की कमी की वजह से देहाती इलाकों के छात्र ऑनलाइन क्लास से वंचित हैं. पूर्वोत्तर के तीन-चार राज्य इस मामले में दूसरों के लिए मिसाल बन रहे हैं.

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Indien Tripura | Unterricht im freien
तस्वीर: DW/P. Tewari

ऑनलाइन क्लास न हुई तो क्या, सिक्किम में स्कूल घरों तक पहुंच रहा है. वहां शिक्षक अपने घर या बच्चों के गांव में जाकर एक साथ कई बच्चों को पढ़ा रहे हैं. वहीं त्रिपुरा ने भी 'नेबरहूड क्लास' यानी पड़ोस की कक्षा नामक एक योजना शुरू की थी. इनमें बच्चों को खुले में पढ़ाया जा रहा था. हालांकि राज्य में संक्रमण बढ़ने की वजह से फिलहाल इन कक्षाओं को कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया है, लेकिन यह योजना बेहद कामयाब व दूरदर्शी है. राज्य में करीब एक लाख बच्चे इन कक्षाओं में पढ़ रहे थे. सरकार ने इसे शीघ्र दोबारा शुरू करने की बात कही है.

पूर्वोत्तर के एक अन्य राज्य नागालैंड में इंटरनेट की समस्या को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग ग्रामीण इलाकों के बच्चों में पेन ड्राइव बांट रहा है. इनमें पूरा पाठ्यक्रम, होम वर्क और दूसरी चीजों पहले से लोड हैं. वर्ष 2018 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पूर्वोत्तर राज्यों में महज 35 प्रतिशत आबादी की ही इंटरनेट तक पहुंच है. इलाके के करीब 8,600 गांवों तक अब तक इंटरनेट नहीं पहुंच सका है. उसके बाद बीते दो साल में भी हालत में खास बदलाव नहीं आया है. असम में स्थिति कुछ बेहतर जरूर है, लेकिन बाकी राज्यों की स्थिति एक जैसी है. दूरसंचार विभाग के वर्ष 2019 के आंकड़ों के मुताबिक पूर्वोत्तर में इंटरनेट के करीब 61 लाख उपभोक्ता थे यानी प्रति सौ में से महज 2.75 लोगों तक ही इसकी पहुंच थी.

Indien Tripura | Unterricht im freien
छात्रों के करीब पहुंचा स्कूलतस्वीर: DW/P. Tewari

त्रिपुरा की पहल

राज्य में लंबे लॉकडाउन की वजह से स्कूलों के बंद होने के कारण बच्चों के भविष्य का ध्यान रखते हुए त्रिपुरा सरकार ने इस मामले में पहल की थी. दरअसल सरकार ने उससे पहले स्कूली बच्चों में 'एकटू खेलो एकटू पढ़ो' यानी थोड़ा खेलो, थोड़ा पढ़ो योजना के तहत एक सर्वेक्षण किया था. इससे पता चला कि राज्य के सभी आठ जिलों में 3.22 लाख में से करीब 94 हजार यानी 29 प्रतिशत स्कूली बच्चों के पास कोई फोन ही नहीं है. उसके बाद शिक्षा विभाग ने नेबरहूड क्लास योजना शुरू की. इसके तहत सुदूर इलाकों में पांच-पांच बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए खुले में पढ़ाया जाता था.

शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ बताते हैं, "बीते मार्च से ही स्कूलों के बंद होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई काफी प्रभावित हो रही थी. साथ ही सर्वेक्षण से यह बात सामने आई कि 29 प्रतिशत बच्चों के पास कोई फोन ही नहीं है. ऐसे में वह ऑनलाइन शिक्षा हासिल नहीं कर सकते थे. इसलिए 18 अगस्त से पड़ोस की कक्षा शुरू की गई थी. राज्य में संक्रमण बढ़ने की वजह हमने एहतियात के तौर पर उनको फिलहाल बंद कर दिया है. लेकिन जल्दी ही इसे दोबारा शुरू किया जाएगा.” यह कक्षा किसी छात्र या शिक्षक के घर के पास लगती थी. मंत्री बताते हैं, "ऑनलाइन तरीके से पढ़ाई फिलहाल जारी है.”

होमवर्क और नोट्स की होम डिलिवरी

नागालैंड

त्रिपुरा के पड़ोसी नागालैंड ने भी दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए एक नई योजना शुरू की है. नेटवर्क की समस्या की वजह से ग्रामीण इलाकों में स्थित सरकारी स्कूलों के जो छात्र ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, सरकार की ओर से उनको पेन ड्राइव बांटा जा रहा है. उसमें पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी तमाम जरूरी चीजें पहले से डाली गई हैं. राज्य के प्रमुख निदेशक (स्कूली शिक्षा) शानावास सी. बताते हैं, "दीमापुर और कोहिमा जैसे शहरी इलाकों में रहने वाले बच्चे तो ऑनलाइन पढ़ाई में सक्षम हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की समस्या है. इसलिए हमने पेन ड्राइव के जरिए ऐसे छात्रों में नोट्स और वर्कशीट बांटने का निर्देश दिया है.” सरकार ने अब इस योजना को निजी स्कूलों के लिए भी खोल दिया है. लेकिन उनको इसके लिए पेन ड्राइव की क्षमता के मुताबिक साढ़े तीन सौ साढ़े आठ सौ रुपए तक की कीमत चुकानी पड़ेगी.

कोहिमा में शुहूरी छात्र संघ के अध्यक्ष लुका झिमोमी कहते हैं, "ग्रामीण इलाकों के छात्रों को भारी दिक्कत हो रही है. उनके पास इंटरनेट नहीं है. ऐसे में शिक्षकों से नोट्स मिलने में परेशानी हो रही थी. लेकिन अब पेन ड्राइव से उनका जीवन कुछ आसान हो जाएगा.” मेघालय में भी इंटरनेट की पहुंच बेहद कम होने की वजह से छात्रों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के घर-घर नोट्स और पढाई से संबंधित सामग्री पहुंचा रहा है. इसके लिए शिक्षकों की मदद ली जा रही है. वेस्ट खासी हिल्स के उपायुक्त टी. लिंगवा कहते हैं, "राज्य में ज्यादातर स्थानों पर दुर्गम पहाड़ियों की वजह से मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है. इसलिए हम एक-दूसरे के जरिए छात्रों को पाठ्य सामग्री मुहैया करा रहे हैं.”

Indien Gangtok | Abteilung für Bildung
सिक्किम का शिक्षा विभागतस्वीर: Govt of Sikkim

सिक्किम में घर पहुंचा स्कूल

पश्चिम बंगाल से सटे सिक्किम में तो शिक्षकों की पहल और सरकार के समर्थन से स्कूली छात्रों के घर तक पहुंचने लगे हैं. इसके तहत एक शिक्षक आस-पास के पांच-छह बच्चों को उनके या अपने घर पढ़ाता है. इसे होमस्कूलिंग प्रोग्राम कहा जा रहा है. पूर्वी सिक्किम के टाडोंग स्थित लुमसे हाई स्कूल में पढ़ाने वाली इंद्र कला शर्मा फिलहाल इलाके के छह छात्रों को अपने घर के बरामदे में पढ़ाती हैं. हालांकि सरकार ने लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सिक्किम एडुटेक नामक एक ऐप लांच किया था, लेकिन गरीब घरों या फिर ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चे खराब मोबाइल नेटवर्क की वजह से इसका फायदा नहीं उठा पा रहे थे. ऐसे छात्रों के लिए होमस्कूलिंग प्रोग्राम वरदान साबित हो रही है. सिक्किम के 765 सरकारी स्कूलों में 1.18 लाख छात्र हैं. बीते जून में शिक्षा विभाग की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि सेकेंडरी स्कूलों में पढ़ने वाले 50 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं.

शिक्षा विभाग के प्रभारी अतिरिक्त मुख्य सचिव जी.पी.उपाध्याय बताते हैं, "सरकार ने होमस्कूलिंग योजना के लिए 10 हजार सरकारी शिक्षकों की सूची तैयार की है.” पूर्वी सिक्किम के पोसाकी सरकारी प्राथमिक स्कूल के शिक्षक अमृत ठाकुरी बताते हैं, "मैं इलाके के 46 छात्रों को अलग-अलग समय पर पढ़ाता हूं. इनको पांच से 10 तक के समूह में बुलाया जाता है. कक्षाएं पंचायत भवन या खुले में लगती हैं. खुले में पढ़ाना कोविड-19 के लिहाज से सुरक्षित है.” शिक्षाविदों ने पूर्वोत्तर में इस पहल की सराहना की है और देश के बाकी हिस्सों में भी इस मॉडल को अपनाने की वकालत की है. शिक्षाविद् पवित्र गोस्वामी कहते हैं, "पूर्वोत्तर में राज्य सरकारें सीमित संसधानों के बावजूद कोविड-19 के दौर में शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय काम कर रही हैं. इससे छात्रों की पढ़ाई बर्बाद होने से बच जाएगी. दूसरे इलाकों में भी ऐसे माडलों को लागू किया जाना चाहिए.”

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