ऐसी तरक्की, किस काम की?
चीन में तरक्की के नाम पर ऐसी होड़ छिड़ी की समाज बिखर सा गया. मां बाप पैसा कमाने शहर चले गए. बच्चे और रिश्ते पीछे छूट गए.
बुजुर्गों के सहारे
लुओ का परिवार दक्षिणपूर्वी चीन के अंशुन शहर के पास रहता है. उसके मां बाप पैसा कमाने शहर जा चुके हैं. लुओ और उसके तीन भाई बहन की जिम्मेदारी अब दादा पर है. गांव में रोजगार ही नहीं है, इसीलिए मां बाप को मजबूरन शहर जाना पड़ा.
मुश्किल हालात में जीव
लुओ का परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहता है. चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 5.5 करोड़ लोग अब भी बहुत कम पैसा कमाते हैं.
मुफ्त शिक्षा का सच
लुओ और उसके सारे भाई बहन स्कूल में मुफ्त में पढ़ाई करते हैं. लेकिन स्कूल की नीली और सफेद यूनिफॉर्म महंगी है. स्कूली बच्चों के लिए जरूरी चीजें भी महंगी हैं.
अधूरा छूटता होमवर्क
नन्हा लुओ स्कूल से मिला होमवर्क पूरा करने की बहुत कोशिश करता है. लेकिन कई बार मदद की जरूरत पड़ती है. कुछ समझ में न आए तो आस पास प्यार से समझाने वाला भी कोई नहीं.
उम्मीद पर सब कायम है
स्कूल के बाद बच्चों को रोजमर्रा का काम काज करना पड़ता है. खाना जुटाना और पानी भरना भी रोज के काम का हिस्सा है. मां बाप को उम्मीद है कि वो अपने बच्चों को कॉलेज भेज पाएंगे. लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के लिए बड़े शहर में रहना भी खर्चीला है.
सेकेंड क्लास कर्मचारी
होकोउ सिस्टम के तहत दूसरे शहरों में कुछ खास किस्म का काम करने वाले मां बाप अपने बच्चों को उस शहर में नहीं पढ़ा सकते हैं. चीन में हर तीसरा बच्चा 26 करोड़ प्रवासी कर्मचारी परिवार से आता है. लिहाजा हजारों बच्चे अकेले छूट जाते हैं.
प्रवासी बच्चों का स्कूल
दूसरे शहरों में काम करने वाले ऐसे लोगों के बच्चों के लिए अलग से स्कूल बनाने की कोशिशें भी हुईं, लेकिन सरकार ने उन्हें मान्यता नहीं दी. लेकिन कई जगहों पर गैर कानूनी रूप से ऐसे सुविधाएं बच्चों को दी जा रही है.
कोई विकल्प नहीं
कड़े नियमों और गांवों में रोजगार के मौके न होने की वजह से दूर दराज के गांवों में ऐसे कई बच्चे हैं जिन्हें मां बाप के बिना बचपन गुजारना पड़ता है.n.