एलईडी की रोशनी से घट जाती है तारों की चमक!
एलईडी लाइट ऊर्जा की बड़ी बचत करती हैं. इनकी रोशनी ज्यादातर नीली और ठंडी होती है. इसका मतलब है कि शहरों के ऊपर का आकाश ज्यादा से ज्यादा चमकीला हो रहा है, और ऐसी स्थिति को लाइट पॉल्यूशन या फिर रोशनी प्रदूषण कहते हैं.
साफ आकाश
इस तरह का नजारा देखने के लिए ज्यादातर लोगों को काफी लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी. सभ्यता से दूर कहीं समंदर किनारे या फिर पहाड़ों में. जहां कहीं इंसान हैं वहां रोशनी के कृत्रिम स्रोत भी मौजूद हैं. ये आकाश को चमकादार बनाते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि सितारों की चमक फीकी पड़ जाती है. सितारे हल्के होते होते एक दिन नजरों से दूर हो जाते है.
सस्ती और चमकदार रोशनी वाली एलईडी
नये जमाने के लैम्प अब ज्यादा ऊर्जा की खपत नहीं करते. इसलिए अब लोग उनका जम कर इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है कि इसके कुछ दूसरे नतीजे भी होंगे. एलईडी की रोशनी में अक्सर कोल्ड ब्लू वेवलेंथ की रोशनी होती है. यह वे तरंगें हैं जो रोशनी के प्रदूषण को तेज करती हैं.
संरक्षित क्षेत्र में बिजली बंद
यूरोपीयन सदर्न ऑब्जर्वेटरी यानि ईएसओ चिली के विशेष संरक्षित क्षेत्र में हैं. यहां घरों के बाहर कृत्रिम रोशनी जलाने की मनाही है. ईएसओ इंसानी बस्तियों से काफी दूर है. हालांकि शहर के पास मौजूद वेधशालाओं यानि ऑबर्जर्वेटरी को प्रकाश के उत्सर्जन से जूझना पड़ता है. यही वजह है कि शहरों में रोशनी का प्रदूषण रोकने के लिए पीली गर्म रोशनी स्ट्रीट लाइट के रूप में इस्तेमाल की जाती है.
पहले...
जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज, द लाइबनित्स इंस्टीट्यूट और द यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर एंड बॉल्डर के रिसर्चरों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से मिले आंकड़ों और तस्वीरों का इस्तेमाल कर परिवर्तन को जानने की कोशिश की. यह नजारा 2010 में आईएसएस कैलगरी/कनाडा से लिया गया.
... और बाद में
वही नजारा 2015 में. कोई भी देख सकता है कि लाइटिंग सिस्टम ने पूरे शहर में क्या बदलाव कर दिया है. कुछ सड़क और जुड़ गये हैं. वैज्ञानिक जिस रेडियोमीटर का इस्तेमाल प्रकाश की तीव्रता नापने के लिए करते हैं, वह नीले स्पेक्ट्रम की रोशनी सही तरीके से नहीं बता पा रहा है. इसका मतलब है कि जितना पता चल पा रहा है, उससे कहीं ज्यादा तेज है रोशनी.
बढ़ती जा रही है रोशनी
यह उपकरण वीजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर है. इसका रिजॉल्यूसन 750 मीटर था. इसके आंकड़े बता रहे हैं कि कृत्रिम स्रोत से आ रही रोशनी की तीव्रता हर साल करीब 2.2 फीसदी की दर से बढ़ी है 2012 से 2016 के बीच.
रोशनी का अर्थव्यवस्था से क्या लेना?
दुनिया भर में रोशनी बढ़ने को मोटे तौर पर देशों के जीडीपी में इजाफे से जुड़ा माना जाता है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इन दोनों चीजों को बहुत तेजी से बढ़ते देखा जा सकता है.
रोशनी बदल देती है भीतरी घड़ी को
कृत्रिम रोशनी जानवरों और पेड़ पौधों की जिंदगी बदल देती है. शहरों में रहने वाले परिंदों के सोने का अभ्यास बदल गया है. कृत्रिम रोशनी में रहने वाले पौधों के विकास की अवधि बढ़ जाती है.
स्मार्ट लैम्प
सवाल अब भी कायम है, क्या शहरों में पूरी रात स्ट्रीट लाइट को जलाए रखने की जरूरत है? भले ही एलईडी बहुत ज्यादा बिजली खर्च नहीं करती लेकिन हमें उन्हें जब जरूरत ना हो तो बंद कर देना चाहिए. जो रोशनी हलचल से चालू हो जाए उसे विकल्प बनाया जा सकता है. आपात स्थिति के लिए थोड़ी कम चमकीली रोशनी भी चल सकती है.