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साहित्य

एरिष केस्टनरः गोईंग टू द डॉग्स

आयगुल चिमचियोग्लू
१८ दिसम्बर २०१८

यह एक मादक किताब है जिसे पढ़कर लगता है कि आप बर्लिन के अंधेरों और उदासियों में भटक रहे हों. नाजियों के सत्ता में आने से ठीक पहले प्रकाशित अपने उपन्यास को एरिष कैस्टनर ने अपनी आंखों से जलते हुए देखा था.

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Schrifsteller Erich Kästner
तस्वीर: picture-alliance/dpa

10 मई, 1933 को बर्लिन के स्टेट ऑपेरा चौराहे के अंधेरे, लपटों की दरिया में जगमगा उठे थे. नाजियों ने अवांछित लेखकों की किताबें आग के हवाले कर दी थीं. इनमें कुर्ट तुखोल्स्की, हाइनरिष मान, और एरिष कैस्टनर की कृतियां भी थीं. कैस्टनर का उपन्यास, "गोइंग टू द डॉग्स”, नाजियों को विशेष तौर पर नागवार था. वे मानते थे कि वो उपन्यास "निकृष्ट भड़काऊ साहित्य” का साक्षात उदाहरण था.

लपटों में घिरी किताबें

अपने सहकर्मियों से अलग, कैस्टनर 1933 के बाद भी जर्मनी में बने रहे. प्रकाशन पर पाबंदी और गेस्टापो (नाजी पुलिस) के लगातार उत्पीड़न के बावजूद वो अपना काम करते रह सके. छद्मनाम के साथ उन्होंने नाजियों की मनोरंजन-प्रधान फ्लॉप फिल्मों के लिए ऐसी पटकथाएं लिखी थीं जिनमें कोई जोखिम नहीं था.

अगर उनका उपन्यास "गोइंग टू द डॉग्स” अपने मूल रूप में छप जाता तो उनकी शामत ही आ जाती. 1930 में जो प्रकाशित हुआ था वो मूल पाठ का बहुत हल्का संस्करण था.

मूल उपन्यास ज्यादा उग्र, और ज्यादा ठोस है. लेखक की और प्रकाशक की प्रतिष्ठा की हिफाजत के लिए, कैस्टनर के चिंतित संपादक ने पाठ को संपादित करने के लिए कहा था. लेखक बेमन से राजी हुए. यहां तक कि उनकी प्रिय किताब का शीर्षक भी "द वॉक टू द डॉग्स” से बदलकर  जर्मन में "फाबियान” कर दिया गया.

सेक्स, कामना, और मदहोशी

ये कहानी बर्लिन के रात्रि-जीवन में एक मुखर भटकाव में खुलती है. 1920 का दशक खत्म हुआ है. एक बेरोजगार कॉपीराइटर, डॉ जैकब फाबियान, शोरोगुल से भरे मदहोश वातावरण का लेखाजोखा दर्ज करता है. वेश्यालयों की दुनिया में ये एक द्रुत, आकस्मिक सेक्स, समलैंगिक प्रेम, इंतजार और आत्महत्या के बारे में है, और कलाकारों के स्टूडियो और गैरकानूनी पबों के बारे में भी. बर्लिन की इस विध्वंसक आधुनिकता में हर एक व्यक्ति एक दूसरे को ठगता है और हर कोई बुरा है. ये ज्वालामुखी के मुहाने पर नृत्य सरीखा है, दूसरे विश्व युद्ध की तबाही करीब है.

Deutschland Nazi-Bücherverbrennung  (1933)
नाजियों ने 1933 में सार्वजनिक रूप से किताबें जलाईंतस्वीर: picture-alliance/AP Photo

"जहां तक ये विशाल शहर ईंट और गारे का बना है, व्यावहारिक रूप से ये पुराने जैसा ही है. लेकिन जहां तक इसके निवासियों की बात है, तो ये बिल्कुल पागलखाने से मिलता जुलता है. पूरब में अपराध का बसेरा है, मध्य में मक्कारी, उत्तर में गरीबी और पश्चिम में पाप और कम्पास की हर नोक पर तबाही का डेरा है.”

जेहन में धंसी कैंची

उपन्यास में जिस किसी को भी कुछ हासिल करना है, उसे अपनी देह किसी को सौंपनी होगी. हर कोई जानता है कि उनका पार्टनर उन्हें किसी और की खातिर धक्का मारकर निकल जाएगा.

हालांकि बर्लिन की नाइटलाइफ पर फाबियान के छापे वैसे ही हैं जैसे संशोधित संस्करण में, लेकिन मूल पाठ कहीं ज्यादा मुखर और तीखा है. यौन करतूतों के विशद् वर्णनों जैसे "रखैल को डेस्क पर” उछाल देना या "रबड़ के शिश्न” जैसे उल्लेखों को हटा दिया गया है.

यहां तक कि राजनीतिक रूप से सवालिया टिप्पणियां भी सेल्फ-सेंसरशिप की शिकार हो गईं. मिसाल के लिए, कैस्टनर को वो दृश्य पूरी तरह से निकालना पड़ा जिसमें फाबियान अपने दोस्त लाबुडे के साथ एक शानदार बस यात्रा पर है जहां दोनों दोस्त, स्तब्ध जनता के समक्ष ब्रांडेनबुर्ग गेट जैसे  राष्ट्रीय स्मारकों का मजाक उड़ाते हैं. इन अंशों के हटने के बाद, पहला प्रकाशित संस्करण, ज्यादा हानिकारक नहीं लगता है.

शुक्र है 2013 में जर्मन भाषा में नया संपादित अंश, अपने मूल शीर्षक, "डेर गांग फुअर डी हुंडे” के साथ रिलीज हुआ और इसकी बदौलत कैस्टनर के महानगरीय उपन्यास को ठीक वैसे ही समझने का मौका मिल पाया जैसा लेखक ने मूल रूप से उसे बुना था. आज इसे पढ़कर ये हमेशा की तरह मौजूं लगता है. फाबियान ने जिस तरह से एक पीढ़ी के भयों को अभिव्यक्त किया था, अनिश्चित कार्य स्थितियों के बीच परिवार शुरू करने के बारे में, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना कि उस समय 1930 के दशक में.

एरिष कैस्टनरः "गोइंग टू द डॉग्स”, न्यू यार्क रिव्यू बुक्स क्लासिक्स (जर्मन शीर्षकः "फाबियान” और "डेर गांग फुअर डी हुंडे”), 1931, 2013

एरिष कैस्टनर का जन्म ड्रेसडेन में 1899 में हुआ था, उनका निधन म्यूनिख में 1974 में हुआ जहां वो दूसरे विश्व युद्ध के बाद बर्लिन छोड़कर रह रहे थे. उनकी बाल-पुस्तकें और युवाओं के लिए उपन्यास जैसे एमिल और जासूस (एमिल ऐंड द डिटेक्टिव्स, 1929), आन्ना लाउजी और ऐंटन (आन्ना लाउजी ऐंड ऐंटन), लॉटी और लीजा (लॉटी ऐंड लीजा) या उड़ती हुई कक्षा (द फ्लाइंग क्लासरूम) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं और आज भी व्यापक रूप से पढ़े जाते हैं. उनकी कविताएं जर्मनी की सांस्कृतिक विरासत से जुड़ती हैं. कैस्टनर दशकों तक पश्चिमी जर्मनी में पेन(PEN) केंद्र के अध्यक्ष रहे.