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कानून और न्याय

एनकाउंटर में हुई मौत पर कोर्ट का पुलिस पर एफआईआर का आदेश

समीरात्मज मिश्र
२६ फ़रवरी २०२१

लखनऊ में एनकाउंटर के एक मामले में सीजेएम की अदालत ने पुलिसकर्मियों पर हत्या की धाराओं में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं.

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सांकेतिक चित्रतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

लखनऊ में करीब दस दिन पहले हुए एनकाउंटर में गिरधारी विश्वकर्मा नाम के एक अभियुक्त की मौत हो गई थी. कोर्ट ने लखनऊ के डीसीपी संजीव सुमन, विभूति खंड थाने के इंस्पेक्टर चंद्रशेखर सिंह और अन्य संबंधित अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने यह फैसला सर्वजीत सिंह नाम के एक वकील की याचिका पर दिया है.

गिरधारी विश्वकर्मा लखनऊ में ही पिछले महीने हुए अजीत सिंह की हत्या के मुख्य अभियुक्त थे और पुलिस रिमांड के दौरान मुठभेड़ में उनकी उसी जगह मौत हो गई जहां अजीत सिंह की हत्या हुई थी. गिरधारी के परिजनों ने इस एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए अदालत में चुनौती दी गई थी.

वकील सर्वजीत सिंह की ओर से इस मामले में हुई मौत को लेकर न्यायिक कार्रवाई में कोर्ट में झूठे तथ्य देने और कमिश्नर डीके ठाकुर, डीसीपी संजीव सुमन, एसीपी प्रवीण मालिक और थानाध्यक्ष विभूतिखंड चंद्रशेखर सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग वाली अर्जी आजमगढ़ कोर्ट में दी गई थी. इस पर सुनवाई करते हुए जिला न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा ने मामले की सुनवाई के लिए सीजेएम से रिपोर्ट तलब की थी.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीजेएम 24 फरवरी की शाम तक रिपोर्ट देकर बताएं कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार एनकाउंटर में कौन से हथियार प्रयोग किए गए. इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि अभियुक्तों ने जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया. पुलिस ने इस मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से एफआईआर तक नहीं दर्ज की थी.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह विवेचना का विषय है कि पुलिस टीम की ओर से इस मुठभेड़ में अपनी आत्मरक्षा के तहत गिरधारी की मौत हो गई या फिर पुलिस ने आत्मरक्षा के दायरे से बाहर जाकर कोई काम किया है. याचिका में आरोप लगे थे कि पुलिस अभिरक्षा के दौरान थाना विभूतिखंड के प्रभारी निरीक्षक चंद्रशेखर सिंह एवं संबंधित पुलिस अधिकारी ने पूर्व नियोजित और षडयंत्र के तहत 14 फरवरी की रात निर्मम तरीके से हत्या कर दी और हत्या के जुर्म से बचने के लिए कुछ झूठे सरकारी दस्तावेज तैयार किए गए.

अदालत का कहना था कि गिरधारी के पुलिस हिरासत से भागने से संबंधित तो दो प्राथमिकी पुलिस ने दर्ज कर रखी हैं लेकिन उनकी मृत्यु कैसे हुई, इस बारे में कोई एफआईआर नहीं दर्ज की गई है, जबकि ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है.

फर्जी एनकाउंटर की लिस्ट लंबी

उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों में हिरासत में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें अभियुक्त की मृत्यु हुई या फिर वह गंभीर रूप से घायल हुआ और ऐसे ज्यादातर मामले संदेह के घेरे में आए. जुलाई में कानपुर के चर्चित बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे की मौत भी कुछ इसी तरह हुई थी और उस पर भी सवाल उठे जिसकी जांच भी हो रही है.

अक्तूबर 2019 में झांसी में ऐसी ही एक मौत ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं और जिसमें पुष्पेंद्र यादव नाम के एक युवक की मौत हो गई थी. परिजनों ने पुलिस पर हत्या का आरोप लगाया था. परिजनों का दावा था कि रिश्वत देने के लिए मना करने पर उसे मार दिया गया. लखनऊ में ही जहां युवक-युवती के एक साथ घूमने के मामले में पुलिस वालों ने विवेक तिवारी नाम के एक शख्स को एनकाउंटर में मार गिराया था, वहीं नोएडा में एक जिम के संचालक को एक पुलिस वाले ने कथित तौर पर रंजिश के तहत मार दिया था और बाद में उसे एनकाउंटर दिखा दिया था. जांच में एनकाउंटर फर्जी निकला और पुलिसकर्मी निलंबित हुआ.

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद पुलिस एनकाउंटर की संख्या बढ़ी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसकी तारीफ करते हैं और कहते हैं कि इसीलिए अपराधी राज्य की सीमा से बाहर चले गए हैं. हालांकि अपराध के आंकड़ों में कमी फिर भी नहीं दिख रही है. योगी सरकार के तीन साल में एनकाउंटर में 112 मौतें हुईं और इन सभी मौतों पर सवाल उठते रहे हैं. वहीं यदि पिछली सरकार में देखें तो अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार के अंतिम तीन साल में किसी भी साल एनकाउंटर का आंकड़ा दहाई में भी नहीं पहुंचा.

दिलचस्प बात यह भी है कि यूपी में जहां पुलिस एनकाउंटर में मौत के मामले बढ़े हैं, वहीं पूरे देश में ऐसे मामलों की संख्या में कमी आई है. 6 जनवरी 2019 को गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने राज्यसभा में बताया कि 2018 में भारत में 22 फेक एनकाउंटर हुए जिनमें इनमें 17 यानी 77 फीसद से भी ज्यादा उत्तरप्रदेश में हुए. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि भारत में साल 2000 से साल 2018 के बीच 1804 फेक एनकाउंटर हुए जिनमें 811 फेक एनकाउंटर यानी 45 फीसद अकेले उत्तरप्रदेश में हुए.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार आने से पहले देश में सबसे ज्यादा एनकाउंटर असम, मेघालय, छत्तीसगढ़ और झारखंड में होते थे लेकिन अब यूपी में इन राज्यों से भी ज्यादा एनकाउंटर होने लगे.

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