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एचआईवी को हराने वाले पहले व्यक्ति का निधन

१ अक्टूबर २०२०

एचआईवी संक्रमण को हराकर उससे ठीक होने वाले दुनिया के पहले व्यक्ति का निधन हो गया है. अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की घोषणा के अनुसार टिमोथी रे ब्राउन ने कैंसर से एक लंबी लड़ाई लड़ी लेकिन अंत में वो हार गए.

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Timothy Ray Brown gestorben
तस्वीर: Manuel Valdes/AP/picture-alliance

ब्राउन को "बर्लिन पेशेंट" के नाम से जाना जाता था. एक दशक से भी ज्यादा पहले जब उन्होंने घातक एड्स बीमारी फैलाने वाले एचआईवी को हराया था तब वो दुनिया भर में उस बीमारी से पीड़ित लाखों लोगों के लिए उम्मीद का एक प्रतीक बन गए थे. वो एक बार कैंसर को भी हरा चुके थे, लेकिन वो फिर वापस आ गया. पिछले कई महीनों से ब्राउन का अमेरिका के कैलिफोर्निया के पाम स्प्रिंग्स स्थित उनके घर पर इस वापस लौटे ल्यूकेमिया का इलाज चल रहा था.

अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी (आईएएस) की अध्यक्ष अदीबा कमरुलजमां ने कहा, "अपने सभी सदस्यों की तरफ से आईएएस टिमोथी के निधन पर उनके पार्टनर टिम, उनके परिवार और उनके दोस्तों के प्रति संवेदना व्यक्त करती है." उन्होंने यह भी कहा, "हम टिमोथी और उनके डॉक्टर गेरो हटर के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने वैज्ञानिकों के लिए यह तलाशने के लिए रास्ते खोले कि एड्स का इलाज संभव है."

ब्राउन को 1995 में एचआईवी से संक्रमित पाया गया था जब वो बर्लिन में पढ़ाई कर रहे थे. उसके एक दशक बाद उनको ल्यूकेमिया हो गया था, जो एक तरह का कैंसर होता है जो खून और हड्डियों के मज्जे या बोन मेरो को प्रभावित करता है. उनके ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन में उनके डॉक्टर ने एक ऐसे डोनर से स्टेम सेल प्रतिरोपण का इस्तेमाल किया था जिसे एक दुर्लभ जेनेटिक म्युटेशन था.

Timothy Ray Brown
मई 2011 की एक तस्वीर में ब्राउन अपने कुत्ते जैक के साथ.तस्वीर: dapd

उस म्युटेशन की वजह से उस डोनर के पास एचआईवी से बचाव की प्राकृतिक रूप से क्षमता थी. डॉक्टर को उम्मीद थी कि इस दुर्लभ म्युटेशन की वजह से ब्राउन की दोनों बीमारियां ठीक जाएंगी. प्रतिरोपण के दो दर्दनाक और खतरनाक दौरों के बाद उन्हें सफलता मिली. 2008 में ब्राउन को दोनों ही बीमारियां से मुक्त घोषित कर दिया गया. शुरुआत में उनकी पहचान गुप्त रखने के लिए उन्हें एक सम्मेलन के दौरान "द बर्लिन पेशेंट" का नाम दिया गया.

दो सालों बाद उन्होंने खुद अपनी चुप्पी तोड़ने का फैसला लिया और फिर धीरे धीरे वो एक पब्लिक फिगर बन गए. वो अपने तजुर्बे पर भाषण और साक्षात्कार देने लगे और उन्होंने अपने एक प्रतिष्ठान की भी शुरुआत की. एएफपी को उन्होंने 2012 में बताया था, "मैं इस बात का जीता जागता प्रमाण हूं कि एड्स का इलाज हो सकता है. एचआईवी से ठीक हो जाना एक बहुत ही बढ़िया एहसास है."

ब्राउन के ठीक होने के 10 सालों बाद, "लंदन पेशेंट" के नाम से जाने वाले एक दूसरे एचआईवी के मरीज के बारे में सामने आया कि ठीक उसी तरह के प्रतिरोपण के 19 महीनों बाद उसे फिर से कैंसर हो गया था. एडम कॉस्टिलेयो नामक वो मरीज आज एचआईवी से मुक्त है. अगस्त में खबर आई कि कैलिफोर्निया में एक महिला है जो कि बिना किसी एंटी-रेट्रोवायरल इलाज के एचआईवी से ठीक हो गई. माना जाता है कि वो मज्जे के जोखिम भरे प्रतिरोपण को कराए बिना ठीक होने वाली पहली व्यक्ति हैं. 

आईएएस की अगली अध्यक्ष नामित हो चुकीं शैरन लेविन ने ब्राउन की एचआईवी के इलाज को लेकर एक "चैंपियन और समर्थक" के रूप में सराहना की. उन्होंने कहा, "वैज्ञानिक समुदाय को उम्मीद है कि एक दिन हम एचआईवी का एक ऐसा इलाज खोज कर ब्राउन की विरासत को सम्मान देंगे, जो सुरक्षित, सस्ती और सबके लिए उपलब्ध होगी."

सीके/एए (एएफपी)

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