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समाज

एग डोनेशन की मंडी बन चुका है आगरा

फैसल फरीद
२२ नवम्बर २०१८

ताज महल के लिए मशहूर आगरा में कई एग डोनेशन रैकेट चल रहे हैं. गरीब औरतें यहां अपने अंडाणु बेच कर पैसे कमाने आ रही हैं. ठोस कानून की कमी के चलते डॉक्टर यहां अपनी मनमर्जी कर रहे हैं.

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Schwangere Frau hält Ihren Bauch
तस्वीर: Imago/PhotoAlto/F. Cirou

लोग अकसर ताज महल देखने के लिए आगरा आते हैं. लेकिन उदयपुर की रहने वाली 28 साल की सरिता यहां घूमने फिरने के लिए नहीं, बल्कि कुछ पैसे कमाने के लिए आई थी. उसके साथ 21 और महिलाएं भी थीं, जिनकी उम्र तीस साल के आस पास थी.

आगरा पहुंच कर सरिता एक आईवीएफ सेंटर में भर्ती हुई और उसने अपने अंडाणु "दान" किए. आधिकारिक भाषा में इसे "एग डोनेशन" ही कहा जाता है, जबकि इसके बदले पैसे मिलते हैं. लेकिन सरिता को पूरी प्रक्रिया के बाद भी पैसे नहीं दिए गए और वह इसकी शिकायत करने पुलिस के पास गई. मामला आगे बढ़ा और आखिरकार आईवीएफ सेंटर को पैसे देने पड़े. दरअसल आगरा महिलाओं के अंडाणु खरीदने और बेचने की एक मंडी बन चुका है. यहां राजस्थान, महाराष्ट्र और बंगाल तक से महिलाएं लाई जाती हैं और उनसे अंडाणु खरीदे जाते हैं.

सरिता के तीन बच्चे हैं, जिन्हें वह अपनी मां के पास छोड़ कर आई है. पति पुताई का काम करता है. काम ना मिलने पर घर का खर्च नहीं चल पाता. ऐसे में जब सरिता को मोहल्ले की एक महिला से एग डोनेशन के बारे में पता चला, तो वह उसके साथ एजेंट से मिलने चली गई. लेकिन घर पर इस बारे में समझाना मुश्किल था. सरिता के पति को लगता था कि अंडाणु निकालने के लिए शारीरिक संबंध बनाना पड़ता है. जब एजेंट ने उसे तसल्ली दिलाई कि इसमें सिर्फ कुछ टेस्ट होते हैं और अस्पताल में ही सब हो जाता है, तब वह खुद ही अपनी पत्नी को आगरा लेकर आया.

आगरा में सरिता के साथ 21 औरतें और थीं. इनमें से पांच को आईवीएफ सेंटर में भर्ती कराया गया और केवल तीन महिलाओं से ही अंडाणु लिए गए. बाकी महिलाओं को किराया और 200-400 रुपये देकर वापस भेज दिया गया. आईवीएफ सेंटर में तीनों महिलाओं पर कई तरह के टेस्ट किए गए, जिसके बाद उनके अंडाणु लिए गए.

इस काम के लिए सरिता और अन्य महिलाओं को 35,000 रुपये का वादा किया गया था. लेकिन सेंटर ने यह कह कर पैसे देने से इंकार कर दिया कि वह सिर्फ एजेंट को जानते हैं और उसको पैसा दे दिया गया है. सरिता हिम्मत कर के पुलिस के पास पहुंची. बात आगे ना बढ़े, इसलिए सेंटर ने पैसे का भुगतान कर दिया. पुलिस के अनुसार कोई लिखा पढ़ी नहीं की गई.

मां बनने का सपना

गरीबी और मजबूरी

इस मामले ने एक बहुत मार्मिक पक्ष सामने ला कर खड़ा कर दिया है. सरिता अपनी मजबूरी के नाते आगरा आई. उसे कम समय में पैसा कमाने का यह सही तरीका लगा. लेकिन अपनी जान पहचान के लोगों को वह इस बारे में कुछ बता नहीं सकती थी. छिपते छिपाते, कुछ बहाने कर के वह पति के साथ आगरा पहुंची.

अब सरिता की कमर में अकसर दर्द रहता है. ठीक वजह तो वह नहीं जानती, बस इतना पता है कि पीठ में कुछ इंजेक्शन लगाए गए थे. सरिता की ही तरह आगरा आने वाली अन्य महिलाओं को भी एग डोनेशन की प्रक्रिया के बारे में बहुत ही कम जानकारी होती है. वे बस इतना जानती हैं कि अपना अंडा देना है. यह काम कैसे होगा, इसमें क्या कानूनी पक्ष हैं, उनके क्या अधिकार हैं, इस बारे में उन्हें कोई खास जानकारी नहीं होती. कोई नहीं जानता कि अंडे का क्या होगा, उसे किसे बेचा जाएगा या फिर उनका बच्चा किसके पास जाएगा.

कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिनके लिए यह पहला मौका नहीं है. सरोगेट मां बनने की तुलना में उन्हें यह काम आसान लगता है. अपना अंडा दिया, पैसे लिए और लौट गए. इन औरतों में समान बात यह है कि ये सब समाज के निचले तबके से हैं. सब, गरीबी और मजबूरी के चलते यह काम कर रही हैं. सरिता का कहना है कि जरूरत पड़ने पर वह शायद फिर से अपना अंडा दान करे. अगली बार कोई और एजेंट होगा, कोई और सेंटर होगा.

बॉलीवुड में सरोगेट बच्चों का ट्रेंड

एग डोनेशन का "धंधा"

आईवीएफ यानी इनविट्रो फर्टिलाइजेशन के जरिए अंडाणु और शुक्राणु को प्रयोगशाला में फर्टिलाइज किया जाता है. इसे टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है. लखनऊ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलम सिंह बताती हैं कि आईवीएफ के लिए एग डोनेशन का रैकेट चल रहा है, "डोनर, एजेंट, सेंटर, सब पैसा लेते हैं. हारमोंस के इंजेकशन लगा कर महिला के ज्यादा एग बनवाए जाते हैं. लगातार हारमोंस के इंजेकशन देने से आगे चलकर महिला को परेशानी आ सकती है."

डॉक्टर सिंह का कहना है कि अखबारों में विज्ञापन दे कर निःसंतान दंपतियों को आकर्षित किया जाता है. लेकिन अकसर उन्हें इस बारे में अंधेरे में रखा जाता है कि महिलाएं मां कैसे बनेंगी, "इन सेंटर के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि वहां इलाज कराएं और बच्चा हो जाएगा. अकसर उन्हें बताया ही नहीं जाता कि महिला के यूटेरस में जो एम्ब्रियो डाला गया है, उसमें एग किसी और का है. जाहिर है कि अगर एग दूसरी महिला का है, तो बच्चे के जेनेटिक गुण अलग होंगे, भले ही बच्चा किसी की भी कोख में पले."

आगरा के ही एक डॉक्टर ने अपनी पहचान जाहिर ना करने की शर्त पर बताया कि इस काम के लिए दूसरे प्रदेश से महिलाओं को इसीलिए बुलाया जाता है ताकि दंपति का उनसे संपर्क न हो सके. डोनर के एग निकाल कर उन्हें फ्रीज कर लिया जाता है. हर डोनर को 35-40 हजार और एजेंट को 5-10 हजार रुपये और साथ ही रहने और आने जाने का खर्च दिया जाता है. डोनर महिला को अस्पताल में पांच दिन के लिए भर्ती रहना पड़ता है. युवा महिलाओं को तवज्जो दी जाती है क्योंकि उनके एग के फर्टिलाइज होने की संभावना ज्यादा रहती है.

कुछ मामलों में जहां दंपतियों को प्रक्रिया की जानकारी होती है, वे अपनी प्रेफरेंस भी बताते हैं. गोरे और सुंदर बच्चे की चाह में वैसी ही डोनर महिला की मांग की जाती है. यही वजह है कि खूबसूरत दिखने वाली महिलाओं के रेट ज्यादा रहते हैं.

देश में एग डोनेशन से जुड़े ठोस कानून की कमी भी इसको बढ़ावा दे रही है. डॉक्टर सिंह बताती हैं कि 2010 से रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी बिल संसद में पेंडिंग है लेकिन अब तक इस पर ठीक से बहस नहीं हुई है. इस प्रस्तावित बिल के अनुसार डॉक्टरों के मानव भ्रूण बेचने और किसी भी संस्था द्वारा भ्रूण बेचे जाने पर प्रतिबंध होगा. इस बिल में किसी एजेंट को बीच में लाने पर भी सख्त मनाही है. लेकिन जब तक बिल कानून की शक्ल नहीं लेता और कानून बनने के बाद भी, जब तक उसका ठीक से पालन नहीं होगा, तब तक तो लगता है कि आगरा की यह मंडी यूं ही चलती रहेगी. 

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