एक्सीडेंटल गाड़ियों से करोड़पति बने इराकी
२६ अप्रैल २०१९इराक में कुर्दिस्तान इलाके की राजधानी कहा जाने वाला इरबिल शहर. यहां एक सड़क पर मोटर मेकैनिकों की दर्जनों दुकानें हैं. इलाके का कार क्वॉर्टर कहा जाता है. यहीं 59 साल के कारही बकर भी एक गैराज के मालिक हैं. वह पुरानी विदेशी गाड़ियों के पुर्जे मंगवाते हैं. ऐसे स्पेयर पार्ट्स को वह "पैसा छापने वाली मशीन" कहते हैं.
पश्चिमी देशों में हादसे का शिकार होने वाली कारों के सही सलामत पुर्जे कंटेनरों में भर कर इराक पहुंचते हैं. करीब 200 कुर्द इस कारोबार में हैं और सभी बहुत अमीर हैं. कारही बकर कहते हैं, "अंधा मुनाफा है. अगर मेरे पास निवेश करने के लिए एक पार्टनर हो तो मैं पार्ट्स खरीदने यूरोप जाना चाहूंगा."
बकर 17 साल तक डेनमार्क में रहे. इस दौरान उन्होंने मर्सिडीज की कारों मरम्मत सीखी और उसमें महारथ हासिल की. अब इरबिल में किसी की भी पुरानी मर्सिडीज खराब होती हैं तो वह बकर के गैराज में पहुंचता है. लोग नए चाइनीज पुर्जे के बजाए पुराने जर्मन पार्ट्स की मांग करते हैं. बकर कहते हैं, जो कीमत बर्दाश्त नहीं कर सकते, सिर्फ वे ही नए और बहुत सस्ते चाइनीज पुर्जे खरीदते हैं, "सेकेंड हैंड पार्ट्स भी नए पुर्जों जितने ही अच्छे होते हैं और दाम भी आधा होता है. चीनी पुर्जे नए और असली पार्ट्स के मुताबिक 75 फीसदी सस्ते होते हैं."
इराकी कारों के दीवाने होते हैं. इराक में अगर कोई कार का खर्चा बर्दाश्त कर सकता है तो अमूमन उसके पास एक कार जरूर होगी. लेकिन समय समय पर सर्विसिंग जैसी चीजें बहुत प्रचलित नहीं हैं. कार मालिक रिपेयरिंग में बहुत ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना चाहते. इसी वजह से सेकेंड हैंड पार्ट्स का बाजार इसका कामयाब हुआ है.
गैराज मालिकों और डीलरों के पास हर तरह का पुर्जा मिल जाता है. बकर कहते हैं, "इंजन, ट्रांसमिशन, एसी-कंप्रेशर, एबीएस पार्ट्स, रेडिएटर, फ्रंट सस्पेंशन सिस्टम, बंपर, दरवाजे और हुड सब मिलता है."
उमेद अब्देलअजीज जापानी गाड़ी टोयोटा के उस्ताद माने जाते हैं. इराक में टोयोटा की गाड़ियां काफी मशहूर हैं. साल में एक या दो बार उमेद दुबई जाते हैं और वहां कनाडा और अमेरिका से आए टोयोटा का पार्ट्स खरीदते हैं, "हम पार्ट्स तब चुनते हैं, जब वे कार में लगे होते हैं. फिर हम उन्हें अलग करते हैं. अगर हमें कोई कार अच्छी कंडीशन में मिलती है तो हम उसे दो टुकड़ों में कटवाते हैं. फिर उन हिस्सों को हम यहां लाते हैं और अलग करते हैं."
कुछ लोगों के हाथ में सप्लाई चेन
उमेद और बकर तो इस कारोबार के बहुत छोटे खिलाड़ी हैं, उनके जैसे सैकड़ों मेकैनिक और गैराज मालिक यहां मौजूद हैं. पूरे कारोबार पर नियंत्रण रखने वाले कुछ चुनिंदा लोग हैं. उमेद कहते हैं, "तीन चौथाई कारोबार कुछ ही बड़ी मछलियों के हाथ में है, वे सामान से भरे हुए कंटेनर लाते हैं."
इन्हीं बड़ी मछलियों में से एक ओमर सैद अहमद हैं. देखने में उनका गैराज बड़ा साधारण सा है. उनसे जब हमने पूछा कि, "इस बात की कितनी संभावना है कि एक्सीडेंट के बाद नई मर्सिडीज पुर्जों की शक्ल में यहां पहुंचेगी?" सैद ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं कहूंगा कि करीब 100 फीसदी संभावना."
सैद के मुताबिक इराक में यह कारोबार 4 अरब डॉलर प्रतिवर्ष का है. इरबिल इसका केंद्र है. यहीं से बगदाद, मोसुल और बसरा जैसे बड़े शहरों को सप्लाई की जाती है. हर महीने सैद 10 लाख डॉलर की कीमत वाले कार पार्ट्स के दो कंटेनर मंगाते हैं. एक कंटेनर पर उन्हें करीब 30,000 डॉलर का मुनाफा होता है. सैद के मुताबिक इस्लामिक स्टेट के कब्जे से पहले वह हर महीने छह कंटेनर मंगवाते थे.
बातचीत के दौरान वह हमें अपने गोदाम में लेकर गए, जो करीबन खाली था. सैद के मुताबिक, "मैं सब कुछ तुरंत ही बेच देता हूं. कभी कभार तो माल सीधा बगदाद जाता है."
अमेरिकी कनेक्शन
सैद दावा करते हैं कि वह पूरे शहर में सबसे बढ़िया पार्ट्स बेचते हैं. उनका ज्यादातर माल अमेरिका और कनाडा से आता है. पहले वह यूरोप से भी माल मंगवाते थे. लेकिन खराब अनुभवों के बाद उन्होंने यूरोप से सामान मंगवाना बंद कर दिया. सैद कहते हैं, "जब मैं यूरोप से पार्ट्स इंपोर्ट कर रहा था तो मुझे वहां कोई भरोसेमंद कारोबारी नहीं मिला. वे इंजन भेजते थे, वो भी बिना इलेक्ट्रॉनिक्स के, जो किसी काम के नहीं होते थे. और जिन लोगों ने मुझे हमेशा ठगा वे कुर्द थे."
इसके बाद उन्होंने लंबा लेकिन भरोसेमंद रूट चुना. यूरोप से पार्ट्स जहां 20 दिन में पहुंच जाते थे, वहीं अमेरिका से डेढ़ महीने में खेप पहुंचती थी. लेकिन अमेरिका में सैद को एक भरोसेमंद अर्मेनियाई मुसलमान मिला. दोनों की पार्टनरशिप जम गई. सैद कहते हैं, "हम कभी नहीं मिले हैं, लेकिन कई बार उसके पास में 20 से 30 लाख डॉलर होते हैं. मैं उस पर पूरा भरोसा करता हूं."
सैद सिर्फ कारोबारी ही नहीं हैं. वह खुद भी कारों से शौकीन हैं. अब वह क्लासिकल कारों के पुर्जों का इंतजाम करने में लगे हैं. सीमा पर कड़े नियमों के चलते पुरानी कारें इराक में दाखिल नहीं हो पा रही हैं. लेकिन सैद को भरोसा है कि वह इराकी जुगाड़ के जरिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. बातचीत के अंत में हमें अपना बिजनेस कार्ड थमाते हैं और कहते हैं, "माजदा, ओपेल, बीएमडब्ल्यू, 1988 से 192 तक...शायद आप किसी यूरोपीय कंपनी को जानती हों, जो मेरे साथ काम करना चाहे." वह इस कारोबार में होने वाले अथाह मुनाफा का फिर से जिक्र करते हैं.