एक ट्रांसजेंडर बनीं जर्मनी की अगली टॉपमॉडल
एक ट्रांसजेंडर, एक शरणार्थी, एक सुडौल मॉडल - जर्मनी की सबसे लोकप्रिय सौंदर्य प्रतियोगिता का स्वरूप बदलता जा रहा है. प्रतियोगिता के आयोजक शायद यह संदेश देना चाह रहे हैं कि असली सुंदरता ऊपरी नहीं बल्कि अंदरूनी होती है.
मिलिए विजेता ऐलेक्स से
जर्मनी के कोलोन की रहनी वालीं ऐलेक्स मरिया पीटर सौंदर्य प्रतियोगिता "जर्मनीज नेक्स्ट टॉप मॉडल" के इतिहास में उसे जीतने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला बन गई हैं. जीत के बाद 23 वर्षीय ऐलेक्स ने कहा, "अलग होने के बारे में जितना हम अपने आप से स्वीकार करते हैं, वो उससे ज्यादा सामान्य है."
सुंदरता का समावेशी अवतार
"समावेश" अब एक वैश्विक नारा है और इस कार्यक्रम ने इसे अपने लोगों में एक '*' जोड़ कर शामिल किया. '*' कई लिंग आधारित भूमिकाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक चिन्ह है. ऐसी महिलाएं जो अलग होने की वजह से पहले अधिकारहीन थीं वो अब इस प्रतियोगिता से जुड़ सकती हैं. शरणार्थी, सुडौल महिलाएं और ट्रांसजेंडर - सब को यहां स्पॉटलाइट में एक मौका मिला.
सुडौल और सुंदर
यूक्रेन में पैदा हुई 21 वर्षीय डाशा पांच साल की उम्र से जर्मनी में रह रही हैं. उनका वजन 85 किलो है और वो कहती हैं कि सारी जिंदगी उन्हें लोग परेशान करते रहे और इसी वजह से वो सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि एक अहम संदेश देना चाहती थीं. आत्मविश्वास से भरी डाशा कहती हैं, "मैं एक आदर्श स्थापित करना चाहती हूं और जिन्हें सताया जाता है उनकी मदद करना चाहती हूं."
सपनों का पूरा होना
2015 में, सूलीन अपने परिवार के साथ अपने देश सीरिया से भाग कर तुर्की होते हुए जर्मनी आ गई थीं. जींस की एक कंपनी के लिए मॉडलिंग करते वक्त 20 वर्षीय सूलीन की आंखें भर आई थीं. वो अब एक मॉडल हैं और उन्होंने इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया है. वो कहती हैं, "मैं वो लड़की हूं जो अपने सपनों को पूरा नहीं कर पा रही थी. अब मैं यहां हूं और अपने सपने को जी रही हूं."
कद की भी समस्या
पांच फीट छह इंच लंबी रोमिना को आप "छोटी" तो नहीं कहेंगे, लेकिन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पांच फुट सात इंच का कद अनिवार्य होता है. प्रतियोगिता के लिए प्राकृतिक रूप से ही सुंदर होने के बावजूद रोमिना काइली जेनर जैसे सितारों की नकल करती थीं. उन्होंने अपने होंठों में बोटॉक्स के इंजेक्शन तक लगवाए थे. अब वो ऐसी लड़कियों की मदद करना चाहती हैं जो बिना सोचे समझे सोशल मीडिया के ट्रेंड के पीछे भागती हैं.
शरीर के रंग के परे
सारा नूरू के माता-पिता एथियोपिया से यूरोप आए थे. वो कहती हैं कि वो बवेरिया के एर्डिंग नगर के एक अस्पताल में पैदा होने वाली पहली अश्वेत बच्ची थीं. वो 2009 में इस प्रतियोगिता को जीतने वाली पहली अश्वेत मॉडल बनीं. उन्होंने उसके बाद एक लंबा सफर तय किया और आज वो अपने माता-पिता के मूल देश में विकास की परियोजनाओं से जुड़ी हुई हैं.
मॉडलों का सर्कस?
यह प्रतियोगिता 2006 से चल रही है और तब से सुप्रसिद्ध जर्मन सुपरमॉडल हाइडी क्लूम इसकी होस्ट हैं. कई सालों तक इसके मंच पर अधिकतर श्वेत, पतली और लंबी टांगों वाली लंबी महिलाओं को जगह दी जाती थी. ट्रांसजेंडर, कम साइज की और सुडौल महिलाओं की यहां कोई जगह नहीं थी.
अंदरूनी सुंदरता
इस प्रतियोगिता के जर्मनी में कई प्रशंसक हैं. खास कर युवा लड़कियां तो कार्यक्रम और उसके मॉडलों को अपना आदर्श मानती हैं. लेकिन आलोचक कहते हैं कि किशोरावस्था में अक्सर लड़कियां इस कार्यक्रम में दुबली और अस्वस्थ मॉडलों की नकल करती हैं जिससे यह संदेश जाता है कि सुंदरता शिक्षा से ज्यादा जरूरी है. इस साल भी महिलावादियों ने कार्यक्रम में "महिलाओं के शरीरों के कामुकीकरण" का विरोध किया. (सुजैन कॉर्ड्स)