एक टांग के बल पर दुनिया से टकराती चीनी बॉडी बिल्डर
गुई युना ने सात साल की उम्र में एक हादसे में अपनी दायीं टांग गंवा दी. उस हादसे को याद कर आज भी उनकी आंखें नम हो जाती हैं. लेकिन उन्होंने इस बात को अपने रास्ते में बाधा नहीं बनने दिया.
बुलंद इरादे
35 साल की गुई युना आज अवॉर्ड विनिंग बॉडी बिल्डर हैं. वह पैरालंपिक में भी हिस्सा ले चुकी हैं. इन दिनों चीन में वायरल हो रही उनकी कहानी हर किसी को प्रेरणा दे सकती है कि इरादे बुलंद हों तो हर बाधा दूर हो जाती है.
लंबी कूद से बॉडी बिल्डिंग
दिलचस्प बात यह है कि गुई ने 2004 के एथेंस पैरालंपिक में लॉन्ग जम्प प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था और सातवां स्थान हासिल किया. बॉडी बिल्डिंग उनके लिए नया क्षेत्र है. लेकिन अक्टूबर में हुई एक बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में उन्होंने पहला पुरस्कार जीता.
प्रेरणा
अपने फौलादी इरादों और सकारात्मक नजरिए के चलते गुई चीन में बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा हैं, खासकर ऐसे देश में जहां विकलांग लोगों को बोझ समझा जाता है. आज उन्हें टिकटॉक पर दो लाख लोग फॉलो करते हैं.
आत्मविश्वास
गुई कहती हैं, "मैं शायद पहले स्थान पर अपनी मसल्स और प्रोफेशनलिज्म की वजह से नहीं बल्कि अपने आत्मविश्वास और स्टेज पर आने की बहादुरी से आई हूं."
कड़वी यादें
हादसे वाले दिन की ज्यादा चीजें उन्हें याद नहीं हैं, लेकिन यह जरूर याद है कि टांग गंवाने के बाद स्कूल में कैसे उनका मजाक उड़ाया जाता था. कोई उन्हें लंगड़ी कहता था तो कोई तीन टांग वाली बिल्ली. और भी ना जाने क्या क्या कहा जाता था.
बहादुर दिल
वह बताती हैं कि बच्चों ने कई बार उन्हें कुर्सी से भी गिराया. तभी उन्होंने तय किया, "तुम मुझे परेशान कर सकते हो, लेकिन मैं इससे डरूंगी नहीं क्योंकि मेरा दिल बहुत बहादुर है." नानिंग शहर की रहने वाली गुई को उनकी मां ने ही पाला. पिता का निधन गुई के जन्म से पहले ही हो गया था.
बेदर्द दुनिया
खेल की दुनिया से 2017 में रिटायर होने के बाद गुई ने 20 कंपनियों में नौकरी के लिए आवेदन किया. लेकिन हर जगह से उनके हाथ निराशा लगी. वह कहती हैं, "कंपनियों को लगता था कि मेरी वजह से उनकी छवि खराब होगी."
मुश्किलो, तुम्हारा शुक्रिया
बहरहाल गुई ने हार नहीं मानी और फिर बॉडी बिल्डिंग की दुनिया में कदम रखा. शुरुआती रिजेक्शन के बाद अब वह एक होम डेकोर कंपनी में पार्टनर भी हैं. वह जिंदगी में मिली मुश्किलों का शुक्रिया अदा करती हैं क्योंकि इनकी वजह से ही तो उन्होंने लड़ना सीखा.