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समाज

एक अमीर देश में गुलामों की जिंदगी जीते लोग

४ अप्रैल २०१९

दुनिया के सबसे अमीर और चमचमाते देशों में सिंगापुर की गिनती होती है. लेकिन वहां घरों में काम करने वाले बहुत से विदेशी कामगारों की जिंदगी उतनी ही अंधेरी और बदरंग है.

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Hausangestellte in Indonesien
तस्वीर: AFP/Getty Images/R. Gacad

हाल में सिंगापुर में काम करने वाली एक मेड का ऐसा मामला सामने आया जिसे एक तरह से आधुनिक गुलामी कहा जा सकता है. इस मामले ने सिंगापुर में काम करने वाले विदेशी कामगारों की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है कि उन्हें किन बुरे हालात में रहना पड़ता है. लेकिन उनकी तकलीफों पर शायद ही कभी ध्यान दिया जाता है.

एक घर में काम करने वाली म्यांमार की 31 साल की मोए मोए थान को सिर्फ ब्राउन शुगर के साथ चावल खाने की अनुमति थी. स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक जब उसने शिकायत की कि उसे ठीक से खाने को नहीं दिया जा रहा है तो उसके मालिकों ने उसे कीप की मदद से जबरदस्ती चावल और ब्राउन शुगर खिलाया. जब उसने उल्टी की, तो वापस उसे अपनी उल्टी खाने के लिए मजबूर किया गया. यही नहीं, बेतों से उसकी पिटाई की गई और सिर्फ अंडरवियर में रखा गया.

कहां कितना कमाती हैं नौकरानियां

यह मामला सिर्फ एक मिसाल है कि सिंगापुर में बतौर घरेलू नौकर काम करने वाले कई विदेशी कामगारों को किन हालात से गुजरना पड़ता है. थान का मामला प्रकाश में आने के बाद उसके मालिकों को तीन तीन साल की जेल हुई और उन्हें थान को 10 हजार डॉलर का हर्जाना भी देना पड़ा.

जब इन लोगों ने थान को नौकरी पर रखा था, तो दोनों लोग जमानत पर थे. उन्हें अपनी पिछली मेड का भी शोषण करने का दोषी करार दिया गया था. इन लोगों को दूसरी बार गिरफ्तार किया गया, लेकिन ऐसे बहुत से मामले हैं जो कभी प्रकाश में ही नहीं आ पाते.

2017 में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि सिंगापुर में घरों में काम करने वाले हर 10 में से छह लोगों को शोषण का शिकार होना पड़ता है. एक स्वतंत्र संस्थान 'रिसर्च अक्रॉस बॉर्डर्स' का यह अध्ययन कहता है कि शोषण कई तरह से किया जाता है जिसमें मौखिक रूप से धमकी देने और जरूरत से ज्यादा काम कराने से लेकर पीटना और खाना ना देना भी शामिल है. कई लोगों को तो यहां तक हिदायत दी जाती है कि वे कब टॉयलेट इस्तेमाल कर सकते हैं और कब नहीं.

यह अध्ययन व्यवस्थित तरीके से होने वाले शोषण की भयानक तस्वीर पेश करता है. बावजूद इसके पड़ोसी देशों से महिला और पुरूष बड़ी तादाद में नौकरी के लिए सिंगापुर आते हैं.

दुनिया में 4 करोड़ लोग अब भी गुलाम

होम नाम की एक संस्था ऐसे लोगों की मदद करती है जिन्हें सिंगापुर में शोषण झेलना पड़ा है. संस्था की कार्यकारी निदेशक शीना कंवर का कहना है, "हम म्यांमार, फिलीपींस या फिर इंडोनेशिया से आने वाले प्रवासी कामगारों की बात कर रहे हैं, जहां रोजगार के मौके ज्यादा अच्छे नहीं हैं. ज्यादातर प्रवासी पैसे कमाने यहां आते हैं ताकि अपने देश में रहने वाले परिवारों को पैसा भेज सकें. वे अकसर बेहतर जिंदगी के लिए जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं."

सिंगापुर में बहुत से कामगार रिक्रूटमेंट एजेंसियों को पैसा देकर नौकरी हासिल करते हैं. काम पर पहले छह या सात महीनों में यह पैसा उनके वेतन से काटा जाता है. कंवर कहती हैं, "यह एक तरह से शुरू से ही बंधुआ मजदूरी कराने जैसा होता है."

इसके अलावा सिंगापुर में घरेलू कामगारों को कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक अपने मालिकों के घर में ही रहना होता है. कंवर कहती हैं, "कोई नहीं जानता कि घर में दरवाजों के पीछे क्या होता है. इसलिए नजर रखना मुश्किल है कि नियमों का पालन हो रहा है या नहीं."

सिंगापुर में घरेलू कामगारों को रोजगार अधिनियम के तहत भी सुरक्षा नहीं मिलती है. उन्हें विदेशी कामगारों के लिए बने कानून के तहत रखा गया है. इसका मतलब है कि सिंगापुर में काम करने वाले ढाई लाख विदेशी घरेलू कामगारों के पास कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है. इन लोगों के वेतन, काम के घंटे और छुट्टी के दिन, सब कुछ उन्हें काम पर रखने वाले तय करते हैं. विदेशी कामगारों के लिए बने कानून में सिर्फ दिशानिर्देश हैं जो कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं.

इसीलिए होम संस्था का कहना है कि विदेशी घरेलू कामगारों को भी रोजगार अधिनियम में शामिल किया जाए ताकि उन्हें पूरी कानूनी सुरक्षा मिले. संस्था की प्रमुख शीना कंवर कहती हैं कि इन लोगों को काम दिलाने वाली एजेंसियों के लिए भी सख्त कानून बनाने की जरूरत है.

रिपोर्ट: एन-क्रिस्टीन हेर्बे/एके

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