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ऊंट का क्लोन दुबई में

१४ अप्रैल २००९

भेंड़ से लेकर कुत्ते बिल्ली, बंदर तक के क्लोन बनाए जा चुके हैं. अब बारी है ऊंट की.....

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टेनिस खिलाड़ी वीनस और सेरीना विलियम्स दुबई में ऊंट की सवारी का लुत्फ़ उठाते हुएतस्वीर: AP

दुबई में 8 अप्रैल को क्लोनिंग तकनीक से बने सबसे पहले ऊँट का जन्म हुआ. दुबई के मीडिया के मुताबिक उसका नाम है इंजाज़. वह एक कूबड़ वाली मादा है. वहां स्थित कैमल रिप्रोडक्शन सेंटर और जानवरों पर शोध करने वाली केन्द्रीय प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों की पाँच साल की कड़ी मेहनत के चलते यह संभव हुआ. कैमल रिप्रोडेक्शन सेंटर के वैज्ञानिक संचालक डॉ. लुलू स्किदमोर ने कहा कि इंजाज़ का जन्म संस्था के शोध कार्यक्रम में एक मील का पत्थर साबित होगा. इसके ज़रिए वह तेज़ दौड़ने वाले और खूब दूध देने वाले उच्च जाति के अपने ऊंटों के बहुमूल्य आनुवंशिक गुणों को सुरक्षित रख सकती है. इंजाज़, जिसके नाम का अर्थ अरबी में "उपलब्धि" होता है, 2005 में मांस के लिए मारे गए एक शक्तिशाली उंट का क्लोन है.

इससे पहले भी रिप्रोडक्टिव यानी प्रजनन संबंधी क्लोनिंग के ज़रिए कई तरह के जानवरों का जन्म हो चुका है. इसकी शुरूआत 1999 में स्कॉटलैंड के एडिनबरा शहर में हुई थी, जब दुनिया की सबसे पहली क्लोन्ड भेड़, डॉली, का जन्म हुआ था. लेकिन, डॉली वाला प्रयोग कुछ हद तक ही कामयाब हो पाया. 6 साल की उम्र में ही वात रोग और फ़ेंफ़ड़ों के कैंसर के चलते डॉली स्वर्ग सिधार गई.

Geklontes Schaf Dolly
दुनिया की सबसे पहली क्लोन्ड भेड़ के साथ उसका मेमना पॉलीतस्वीर: AP

डॉली के जन्म के चलते विज्ञान जगत में मानव क्लोनिंग के लेकर भी खासा विवाद छिड़ा था. कई वैज्ञानिक मानव क्लोनिंक की सम्भावनाओं को लेकर उत्साहित थे. लेकिन 200 बार परीक्षण करने के बाद ही कहीं जाकर डॉली का जन्म हुआ था. ऐसे में नैतिकता के दृष्टिकोण से सवाल उठा कि ऐसे प्रयोग क्या मानव जाति पर करना उचित है?

कैसे होती है क्लोनिंग

मोटे तौर पर कहा जाता है कि क्लोनिंग की प्रक्रिया में जिस किसी का भी क्लोन बनाना हो, उसके शरीर में से एक कोशिका निकाली जाती है. फ़िर उसमें से उसका न्यूक्लियस यानी केन्द्रक हटा दिया जाता है. उसके बाद गर्भ के लिए किसी मादा दाता का डिंब लिया जाता है. उसमें से सारी अनुवांशिक सामग्री हटाकर उसे खाली किया जाता है. फ़िर इस खाली डिंब में पूर्वकथित कोशिका का न्यूक्लियस डाला जाता है. इसके बाद कुछ रसायनों का इस्तेमाल कर या फ़िर हल्के से बिजली के झटके के द्वारा डिंब को विभाजन के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे गर्भ के लिए भ्रूण बनता है. इस भ्रूण को फ़िर सरोगेट, यानी किसी परायी माता के गर्भाशय में प्रतिरोपित किया जाता है.

Ian Wilmut - "Vater" von Klonschaf Dolly
डाली की क्लोनिंग करने वाले वैज्ञानिक इयन विल्नुटतस्वीर: AP

क्लोनिंग से हो सकता है रोगों का निवारण

क्लोनिंग का प्रयोग सिर्फ़ प्रजनन या वंश वृद्धि के लिए ही नहीं किया जाता है. इस का इस्तेमाल चिकित्सा के लिए भी किया जा सकता है. क्लोनिंग के ज़रिए नए ज़ंतुओं का ही नहीं बल्कि नई भ्रूणीय कोशिकाओं का भी निर्माण होता है, जिनमें स्टेम सेल कहलाने वाली ऐसी अविभेदित बहुमुखी कोशिकाएँ होती हैं, जो किसी भी अंग का रूप ले सकती हैं. इन कोशिकाओं का इस्तेमाल जले हुए लोगों के लिए नई त्वचा बनाने में, मरीज़ों में प्रतिरोपण लायक अंग बनाने में और रीढ़ की हड्डी की चोट वालों के लिए नई कोशिकाएं पैदा करने में किया जा सकता है.

रिपोर्ट- रति अग्निहोत्रि

संपादन- राम यादव