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उत्तराखंड का भविष्य

महेश झा२२ अप्रैल २०१६

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड पर हाई कोर्ट के फैसले को बदल दिया है. ये करने का उसे अधिकार है क्योंकि वह संविधान की अंतिम रक्षक है. महेश झा का कहना है कि राज्य सरकारों को भंग किए जाने के अधिकार पर अंकुश जरूरी है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP

उत्तराखंड का राजनीतिक संकट भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों की रस्साकशी और एक दूसरे का सम्मान न करने के हठ का नतीजा है. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धा जायज है लेकिन वह लोकतांत्रिक नियमों पर आधारित होनी चाहिए. एक दूसरे को खत्म कर देने की जिद पर नहीं. संविधान ने जिन ताकतों पर देश और लोकतंत्र की रक्षा की जिम्मेदारी दी है, यदि वही नियमों का पालन नहीं करेंगे तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

राजनीतिज्ञों की जिम्मेदारी संविधान और कानून के राज्य में लोगों की आस्था बनाए रखना है. कोई भी सामान्य पर्यवेक्षक नहीं कह पाएगा कि उत्तराखंड में राजनीतिक दलों का व्यवहार इसके अनुरूप हुआ है. संसदीय लोकतंत्र का विकास 18वीं सदी में ब्रिटेन और स्वीडन में हुआ. पिछली दो शताब्दियों में उसे बहुत से देशों ने अपनाया है और सुदृढ़ बनाया है क्योंकि दुनिया के अलग अलग देशों के अनुभवों ने दिखाया है कि उससे बेहतर सिस्टम और शायद ही है. इस व्यवस्था की जड़ में लोक है जो संप्रभु है और अपना अधिकार खास अवधि के लिए चुने हुए प्रतिनिधियों को सौंपता है, जिनकी जिम्मेदारी कार्यपालिका पर नियंत्रण और कानून बनाना है.

लोकतांत्रिक व्यवस्था सत्ता के बंटवारे और कानून के राज्य के सिद्धांत पर आधारित है. कानून बनाने और सरकार पर नियंत्रण का अधिकार विधायिका का, कानून के पालन और प्रशासन चलाने का अधिकार कार्यपालिका का और न्यापालिका के पास कानून की संवैधानिकता और विधायिका तथा कार्यपालिका के फैसलों की समीक्षा का अधिकार. और इस पर अमल के लिए राज्य के तीनों ही स्तंभों को आपसी तालमेल के साथ काम करना होगा. उत्तराखंड का उदाहरण के बाद तीनों ही खुद से पूछ सकते हैं कि क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई है.

अब आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथों है. निश्चित तौर पर अतीत की घटनाओं पर गौर करते हुए ऐसा फैसला लिया जाएगा जो राजनीति को सम्मान दिलाए और लोगों द्वारा चुनी गई सार्वभौम राज्य सरकारों को विरोधी दल के नेतृत्व वाली केंद्र सरकारों के डर के साए से बचाए. लेकिन राज्य सरकारों में शामिल राजनीतिज्ञों को भी अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों का ख्याल रखना होगा. लोगों में यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि संविधान की रक्षा के लिए जिम्मेदार लोग ही उसकी रक्षा नहीं कर रहे हैं. ऐसे में आम लोगों की आस्था न संविधान में रहेगी और कानून में. उत्तराखंड का भविष्य देश के भविष्य से जुड़ा है.

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