1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ईरान में प्रतिबंधों की मार सबसे पहले दवाओं पर

३ अक्टूबर २०१८

ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंधों का असर दिखने लगा है. सीधे तौर पर ना हो कर भी यह कई चीजों पर भारी असर डाल रहा है और उनमें दवाएं भी शामिल हैं.

https://p.dw.com/p/35vUC
Iran Nasenoperation
तस्वीर: Reuters/R. Homavandi

अमेरिका ने जब से ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों का घेरा कसने का एलान किया है तेहरान में रहने वाले 36 साल के मसूद मीर की नींद उड़ गई है. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में उन्होंने कहा, "ईरान पर प्रतिबंधों की चर्चा फिर तेज हो गई है, मेरी जरूरी दवाएं फिर नहीं मिलेंगी." ईरान में थैलसेमिया से पीड़ित लोगों की एक बड़ी तादाद है. इन लोगों को ना सिर्फ इस बीमारी से बल्कि उन प्रतिबंधों के नतीजों से भी जूझना पड़ रहा है जिन्हें दोबारा लगाने का एलान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अगस्त में किया.

इन प्रतिबंधों के साथ ही ईरानी मुद्रा की कीमत घट जाती है, विदेशी दवाएं दुर्लभ हो जाती हैं और कीमतों में भारी इजाफा हो जाता है. मसूद मीर को स्विट्जरलैंड में बनी एंटी आयरन ओवरलोड दवा नियमित रूप से लेनी पड़ती है. सरकार ने इसका कोटा तय कर रखा है और अगर ज्यादा चाहिए तो बाजार में ऊंची कीमत दे कर खरीदनी पड़ेगी. मल्टीपल स्केलेरोसिस, कैंसर, दिल की बीमारी और यहां तक कि सामान्य एनस्थीसिया के लिए भी यही हाल है.

Iran Nasenoperation
तस्वीर: Reuters/R. Homavandi

संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने इस मामले में दखल दिया है और प्रतिबंधों को स्थगित करने के मामले में ईरान के पक्ष में फैसला सुनाया. हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में जजों ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि ईरान में "दवाइओं और चिकित्सा उपकरणों के साथ ही खाने पीने और कृषि उत्पादों" और विमान के पुर्जों के निर्यात पर अमेरिका को प्रतिबंध हटाने चाहिए. ईरान के आधिकारिक बयानों में इस बात को माना गया है कि देश में दवाओं की कमी है और सरकार का यह भी कहना है कि कई दवाओँ के आयात को अब सब्सिडी भी नहीं दी जाती.

संसद के स्वास्थ्य आयोग के सदस्य मोहम्मद नईण अमिनीफार्द ने अर्धसरकारी समाचार एजेंसी आईएसएनए को बताया, "फिलहाल हमारे पास 80 फार्मास्यूटिकल्स की कमी है. सरकार और इंश्योरेंस कंपनियों ने उन विदेशी दवाओँ के लिए समर्थन हटा लिया है जिनके घरेलू संस्करण मौजूद हैं इसकी वजह से मरीजों पर दबाव बढ़ गया है." ईरान अपने यहां इस्तेमाल होने वाली 96 फीसदी दवाएं खुद बनाता है लेकिन इसके लिए कच्चा माल का आधा से ज्यादा हिस्सा उसे आयात करना पड़ता है. एक तरफ बैंकिंग पर रोक और दूसरी तरफ ईरानी मुद्रा की गिरती कीमतों ने दवाओं के मामले में इसकी आत्मनिर्भरता को असंभव नहीं तो मुश्किल तो बना ही दिया है.

Iran Medizin Organisation
तस्वीर: lmo.ir

जिन परिवारों में स्वास्थ्य को लेकर दिक्कतें हैं उनके लिए प्रतिबंधों ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. इलेक्ट्रिक टेक्नीशियन अली की उम्र करीब 35 साल है उन्हें अस्पताल में भर्ती बेटे को देखने के लिए ज्यादा समय देने के कारण नौकरी से हटा दिया गया. इसके बाद उनकी अगली कंपनी दिवालिया हो गई और मौजूदा डच ईरानी कंपनी का कारोबार बंद हो गया है क्योंकि वे उपकरणों का आयात नहीं कर सकते. नतीजा कंपनी ने कर्मचारियों को पैसा देना बंद कर दिया है.

मध्य तेहरान में एक फार्मेसी के बाहर खड़े अली ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया,"वे मुझे दवाएं नहीं दे रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि इससे इंश्योरेंस में दिक्कत होगी. उन्होंने यह भी कहा कि अगर वो देंगे भी तो जरूरत से कम ही मिलेगी कोटे के कारण. अगर मेरे बेटे को एक दिन भी दवा नहीं मिली तो वो मर सकता है." एक फार्मासिस्ट ने बताया, "दवाओँ के स्थानीय संस्करण सस्ते तो हैं लेकिन उतने असरदार नही हैं, अगर प्रतिबंध जारी रहे तो हालात औऱ बिगड़ेंगे." बहुत से मरीज ऊंची कीमत नहीं दे सकते और ऐसे में स्थानीय दवाएं ही इस्तेमाल करते हैं.    

ईरान के लोग सोशल मीडिया पर कई लोगों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. इनमें प्रतिबंध के लिए अमेरिका, आर्थिक कुप्रबंध के लिए सरकार और ऊंची कीमतों के लिए फार्मा कंपनियां खासतौर से लोगों के निशाने पर हैं. सर्जन हामिदरेजा वाफायी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय बैंकों का ईरान के साथ काम करने से इनकार सबसे बड़ी चुनौती है. अमेरिका ने 2015 में ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से खुद को बाहर कर लिया है और साथ ही ईरान की अर्थव्यवस्था में कई चीजों को निशाना बनाते हुए प्रतिबंध लगा दिए हैं. अंतरराष्ट्रीय बैंकों की साझेदारी और डॉलर में लेन देन पर रोक इनमें प्रमुख हैं.

सर्जन हामिदरेजा वाफायी ने कहा, "जहां तक मैं जानता हूं ईरान के साथ दवाओं के कारोबार पर रोक के लिए कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. इसके बाद भी जब हम बैंकिंग के समझौते नहीं कर सकते तो एक तरह से अघोषित रूप से दवाओँ पर भी प्रतिबंध लग गया. सच्चाई यह है कि कोई भी कंपनी दवा नहीं बेचेगी." 2016 में इन्सुलिन बनाने वाली डेनमार्क की कंपनी नोवो नोर्डिस्क ने ईरान में 7 करोड़ यूरो के खर्च से प्लांट लगाने का एलान किया था लेकिन अब इसे रद्द कर दिया गया है. उम्मीद की गई कि इससे ईरान में बड़ी संख्या में मौजूद डायबिटिज के मरीजों को मदद मिलती. अब तो इस बारे में कोई बात करने वाला भी नहीं मिल रहा.

एनआर/एमजे (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी