इबोला को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल घोषित
१८ जुलाई २०१९इबोला एक उच्च संक्रामक वायरस है जिससे संक्रमित लोगों के मरने की संभावना 90 प्रतिशत तक होती है. बुखार, कमजोरी और दस्त जैसे लक्षणों वाली इस बीमारी का कांगो में प्रकोप देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे "अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल" घोषित करने का कदम उठाया है. कांगो में पिछले साल से लेकर अब तक इबोला के कारण 1,550 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. कांगो में सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी इबोला के दूसरे सबसे घातक प्रकोप को रोकने में विफल रहे हैं. सबसे पहले पड़ोसी देश युगांडा में इस वायरस का पता चला था. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान जारी कर कहा, "यह कदम संभावित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय खतरे को देखते हुए उठाया गया है. इसके प्रसार को रोकने के लिए गहन और समन्वित तरीके से काम करने की आवश्यकता है."
रोकथाम के प्रयास
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस (आईएफआरसी) और रेड क्रिसेंट सोसाइटीज ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस कदम से प्रभावित क्षेत्रों की मदद की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट होगा. आईएफआरसी ने कहा, "इससे पीड़ितों या उनके लिए काम कर रहे लोगों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है लेकिन हमें उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान इस ओर खिंचेगा." आपातकालीन टीमें भी इबोला के प्रकोप से निपटने में पर्याप्त सहायता नहीं कर पाई हैं. इसका कारण ये है कि यहां सुरक्षा की स्थिति काफी खराब है और उन्हें भी स्थानीय समुदायों का विरोध झेलना पड़ता है. कई बार तो सशस्त्र समूहों ने इबोला उपचार केंद्रों पर हमला भी किया है. उन्होंने प्रभावित लोगों का इलाज कर रहे डॉक्टरों पर काम रोकने का दबाव बनाया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कांगो के लोगों की यात्राओं पर प्रतिबंध नहीं लगाया है. संगठन ने कहा कि इससे स्थिति और खराब हो सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ट्रेडोस घेब्रेयासुस ने कहा, "संगठन ने यात्रा या व्यापार पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है. ऐसा करने से इबोला को रोकने के प्रयास में बाधा उत्पन्न हो सकती है. ऐसे प्रतिबंध की वजह से लोग अनौपचारिक और बिना निगरानी वाले क्षेत्र से सीमा पार करते हैं. इससे बीमारी के फैलने की संभावना बढ़ जाती है."
क्या है इबोला वायरस
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इबोला वायरस रोग (ईवीडी) को पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार के रूप में जाना जाता था. यह मनुष्यों के लिए घातक बीमारी है. इसका वायरस जंगली जानवरों से लोगों के बीच फैलता है. इसके बाद एक इंसान से दूसरे इंसान को फैलता है. इसे नियंत्रित करने के लिए सामुदायिक सहभागिता महत्वपूर्ण है. ठीक तरीके से नियंत्रण के लिए प्रभावित इलाके में बेहतर प्रबंधन, निगरानी, अच्छी प्रयोगशाला सेवाओं, शवों के सुरक्षित अंतिम संस्कार और सामाजिक गतिशीलता की जरूरत होती है.
इबोला से बचाव के लिए टीके विकसित किए जा रहे हैं. गिनी और कांगो में इबोला के प्रकोप को नियंत्रित करने में इनके इस्तेमाल से मदद भी मिली है. इबोला का लक्षण सामने आते ही शरीर में पानी की मात्रा संतुलित करने के साथ शुरूआती देखभाल से व्यक्ति की स्थिति में सुधार हो सकता है. वायरस को बेअसर करने के लिए कोई मान्यता प्राप्त उपचार नहीं है, लेकिन रक्त, इम्यूनोलॉजिकल और ड्रग थेरेपी की एक श्रृंखला विकसित की जा रही है.
हजारों लोगों की मौत
इबोला वायरस का पता पहली बार 1976 में दक्षिण सूडान और कांगो में चला था. बाद में इबोला नदी के पास एक गांव में यह सामने आया था, जहां से इस वायरस का नाम इबोला रखा गया. वायरस का पता चलने के बाद पहली बार बड़े पैमाने पर 2014-2016 पश्चिम अफ्रीका में इबोला का कहर बरपा था. यह गिनी से शुरू हुआ और जमीनी सीमा को पार करते हुए सिएरा लियोन और लाइबेरिया तक पहुंच गया था.
सिएरा लियोन में 14 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे और करीब 4,000 लोगों की मौत हुई थी. लाइबेरिया में 10 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे और 48 सौ से अधिक की मौत हुई थी. गिनी में करीब 3,800 लोग प्रभावित हुए थे और 2,500 से ज्यादा की मौत हुई थी. इसके बाद 2018-19 में पूर्वी कांगों में बड़े पैमाने पर लोग प्रभावित हुए.
रवि रंजन (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
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