इतिहास में आजः 30 सितंबर
३० सितम्बर २०१३रूमी ने इस्लाम धर्म में सूफी विचारधारा को दुनिया भर में फैलाया. जिन्दगी को समझने के लिए बिलकुल अलग विचार रखने वाले रूमी भले ही फारसी में लिखते हों लेकिन उनकी पहचान दुनिया के दूसरे धर्मों में भी खूब हुई. 800 साल बीतने के बाद आज भी उनके कलाम काफी मशहूर हैं. मिसाल के तौर पर प्रेम और ईश्वर की व्याख्या करता उनका ये शेर,
"तुम्हारी रोशनी में ही तो मैंने प्यार सीखा,
तुम्हारी खूबसूरती में मैंने कविता सीखी.
तुम मेरे दिल के अंदर मचल रहे हो,
जहां कोई तुम्हें देखने वाला नहीं.
हां, मैं तुम्हें कभी कभी जरूर देखता हूं,
और वही तो मेरी प्रेरणा है."
रूमी के पिता बहाउद्दीन वलाद धर्मशास्त्री थे. 1219 में चंगेज खान की सेना ने जब चढ़ाई की तो रूमी के पिता ने हज पर जाने का फैसला किया और इस तरह अपने परिवार को चंगेज खान की सेना से बचा लिया.
सैयद बुरहानुद्दीन मुहक्कीक तिरमिधी ने रूमी को सूफी शैली के बारे में बताया. दोनों अलेप्पो और दमिश्क की यात्रा पर निकले जहां उन्होंने स्पेन से आए इब्न अरबी से मुलाकात की. इब्न अरबी उस वक्त के जाने माने सूफी संत थे. उन्होंने रूमी को काफी प्रभावित किया.
रूमी ने बहुत बड़े इलाके का दौरा किया और सूफी विचारधारा को फैलाया. उनके काम की वजह से उन्हें मौलाना का खिताब मिला. उन्होंने सूफियों के अद्भुत नृत्यकला समा की भी शुरुआत की. तुर्की के कोन्या शहर में आज भी हर साल समा नृत्य का सालाना जलसा होता है, जिसमें सफेद पोशाक में दरवेश नृत्य करते हैं.
"जहां खंडहर हों, वहीं तो खजाने की उम्मीद है." - रूमी.