इतिहास में आजः 27 मई
२७ मई २०२१19वीं सदी में तपेदिक या क्षयरोग (आम भाषा में टीबी) , हैजा (कॉलेरा), डिप्थीरिया और घाव के संक्रमण जैसी बीमारियां दुनिया भर में मौत का सबसे आम कारण थीं. अकेले जर्मनी में ही हर साल हजारों लोगों की मौत होती थी. इस दौरान चिकित्सक रॉबर्ट कॉख ने पाया कि इस तरह के रोग सूक्ष्म जीवों, बैक्टीरिया के कारण होते हैं. बर्लिन में उन्होंने और उनके सहयोगियों ने रोगाणुओं और संक्रमण पथों की पहचान करने में कामयाबी हासिल की. इस तरह उन्होंने इन लाइलाज माने जाने वाले रोगों के इलाज और रोकथाम के उपायों का रास्ता दिखाया.
रॉबर्ट कॉख का जन्म 11 दिसंबर 1843 को जर्मनी के क्लाउसथाल में एक खनिक परिवार में हुआ. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने गोएटिंगन विश्वविद्यालय में आगे की शिक्षा हासिल की. उन्होंने एक सेमेस्टर के लिए प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन किया और फिर अगले सेमेस्टर से चिकित्सा की पढ़ाई शुरू की. रॉबर्ट कॉख एंथ्रेक्स पर अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने इस घातक बीमारी के प्रेरक एजेंट बैसिलस एंथ्रेसीस नामक बैक्टीरिया की खोज की. 1905 में उन्हें टीबी रोग की जांच और उससे संबंधित खोजों के लिए फिजियोलॉजी और मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन 1982 से हर 24 मार्च को "विश्व क्षय रोग दिवस" मनाता है, जिस दिन कॉख ने टीबी के जीवाणु की खोज की थी.
कॉख ने 1891 में बर्लिन में संक्रामक रोगों के लिए "रॉयल प्रशियन संस्थान" की स्थापना की थी. प्रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेज में अपने टीबी अनुसंधान पर व्याख्यान देने के तीन दिन बाद 27 मई 1910 को कॉख का 66 वर्ष की आयु में जर्मनी के बाडेन-बाडेन में निधन हो गया. उनकी मृत्यु के बाद उनके सम्मान में रॉयल प्रशियन संस्थान का नाम बदलकर रॉबर्ट कॉख संस्थान कर दिया गया. रॉबर्ट कॉख की वैज्ञानिक विरासत, जिसमें 1,500 पत्र, पुरस्कार, प्रमाण पत्र, पांडुलिपियां, प्रकाशन, तस्वीरें और माइक्रोस्कोप स्लाइड शामिल हैं, यहां संरक्षित हैं.