इतिहास में आजः 21 अक्टूबर
२१ अक्टूबर २०१३भारतीय फिल्मों में प्रेम और रूमानियत की जो तस्वीर यश चोपड़ा ने बनाई उसका असर बहुत लंबे समय तक रहा और यह असर इतना गहरा था कि उससे बाहर निकलने में हिंदी सिनेमा को कई दशक लग गए. एक खास तबके के इर्द गिर्द घूमती कहानियों में नाटकीयता और भावनाओं का भरा पूरा संसार था. पांच दशक तक वो अपने अंदाज से शहरी युवा वर्ग को लुभाते रहे, उन्हें प्यार करना सिखाते रहे.
धूल का फूल से शुरू हो कर वक्त, दीवार, जंजीर, कभी कभी, सिलसिला जैसी फिल्मों के साथ उनका करियर खूब परवान चढ़ा. ऐसा भी नहीं कि वो सिर्फ प्यार की ही भाषा जानते थे एक्शन फिल्म दीवार के साथ उन्होंने अमिताभ बच्चन को बॉलीवुड में स्थापित कर दिया. इसके अलावा वक्त बना कर उन्होंने हिंदी फिल्मों को सिखाया कि टोकरी भर सितारों के साथ कैसे काम करें यानी मल्टीस्टारर फिल्में. बॉलीवुड में ऐसी कई लकीरें हैं जो यश चोपड़ा ने खींची.
हालांकि उसके बाद एक दौर ऐसा भी था जब उनकी फिल्में दर्शकों को नहीं खींच पा रही थीं. इस वक्त बॉलीवुड एक्शन फिल्मों के चंगुल में था और तब यश 1989 में चांदनी के साथ लोगों को प्यार मोहब्बत की दुनिया में वापस ले आए. इसके बाद उन्होंने लम्हे बनाई जो उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मानी जाती है. फिर तो जो उन्होंने वापसी की उसका नतीजा डर, दिल तो पागल है, वीर जारा जैसी फिल्मों के रूप में सामने आया.
स्क्रीनप्ले राइटर, निर्देशक और प्रोड्यूसर यश चोपड़ा जीवन के अंतिम सालों में भी खूब सक्रिय थे. यहां तक कि उनकी आखिरी फिल्म जब तक है जान उनकी मौत के बाद पर्दे पर उतरी.