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साहित्य

कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि

रवि रंजन
७ अक्टूबर २०१९

साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखने वाले प्रेमचंद की रचनाएं समाज की विरासत है. यह विरासत हिंदी साहित्य का मार्गदर्शन कर रही है.

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Der indische Schriftsteller Premchand ACHTUNG SCHLECHTE QUALITÄT
तस्वीर: public domain

"पूस की रात में हल्कू खेत किनारे सोया रहा और उसकी सारी फसल बर्बाद हो गई. फिर भी कर्ज में डूबा हल्कू इस बात से खुश था कि अब उसे इस कड़कड़ाती ठंड में खेत में नहीं सोना पड़ेगा. लेकिन इस वक्त उसकी पत्नी की आंख से निकल रहे आंसू समाज के अंतिम पायदान पर खड़े परिवार की मजबूरियां बयां कर रहे थे." यह कहानी है प्रेमचंद के 'पूस की रात' उपन्यास की. प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज का जीवंत चित्रण किया है. कहीं निजी अस्पताल में लुटता मरीज दिखाई देता है तो कहीं घर में एक महिला को दर्द से तड़पता छोड़ पेट की क्षुधा शांत करने के लिए घीसू और माधव हलक जलाने वाला गर्म आलू खा रहे होते हैं.

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था. उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गांव में हुआ था. बचपन में ही मां की छाया उनसे दूर हो गई. बड़ी बहन ने ही मां का प्यार दिया. जब उनकी भी शादी हो गई तो प्रेमचंद कहानी की दुनिया में रम गए. कहानी पढ़ने लगे और लिखने भी. करीब 16 साल की उम्र में उनकी शादी हुई लेकिन कुछ समय बाद दोनों का संबंध टूट गया. इसके बाद उन्होंने एक बाल विधवा शिवरानी देवी से शादी की. उन्होंने अपने जीवन में करीब 300 कहानियां और 14 बड़े उपन्यास लिखे. वर्ष 1935 में वे बीमार पड़े और 8 अक्टूबर 1936 को इस दुनिया से चले गए.

Indien Haus des Schriftstellers Munshi Premchand
तस्वीर: DW/S. Waheed

कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य में यथार्थवादी परंपरा की शुरुआत की थी. प्रेमचंद ने 'निर्मला' के माध्यम से एक मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों की जिंदगी में उतार-चढ़ाव को बखूबी दिखाया है. गोदान, गबन, सेवा सदन, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रय, प्रेमा, कायाकल्प, रंगभूमि, कर्मभूमि और मनोरमा जैसे उपन्यासों में समाज की झलक दिखाई पड़ती है. प्रेमचंद की एक रचना है 'बूढ़ी काकी'. भले ही इस रचना को कई दशक बीत गए लेकिन समाज वहीं का वहीं है. आज भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए लोग शादी-ब्याह में हजारों को खाना खिलाते हैं. लाखों रुपये खर्च करते हैं लेकिन घर के वृद्धों के साथ सही तरीके से व्यवहार नहीं करते हैं. यह कहानी समाज में कथित सामाजिकता के नाम पर मानवीय शून्यता को दिखाता है. शायद यही वजह थी कि शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कह कर संबोधित किया था.

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