इंडोनेशिया के मकानों को क्यों खा गई जमीन
२ अक्टूबर २०१८इंडोनेशिया के भूकंप में 800 से ज्यादा लोगों की जान गई लेकिन इस आपदा में मकान इस तरह से ध्वस्त हुए हैं जैसे जमीन उन्हें खा गई हो या फिर सोख लिया हो. 700 से ज्यादा पक्के मकानों की पूरी की पूरी कॉलोनी जिस जमीन पर थी वह एक तरह से सफाचट नजर आ रही है. आखिर कैसे हुआ यह? भूकंप में मकान गिरते हैं लेकिन इस तरह...? वैज्ञानिक बता रहे हैं कि इसकी वजह मिट्टी का पिघलना है.
जब भूकंप के दौरान बहुत ज्यादा कंपन होता है तो गीली मिट्टी और कीचड़ में एक खास तरह का गुण आ जाता है जिसे मिट्टी का गलना या पिघलना कहते हैं. यह तब होता है जब भूकंप के कारण गीली मिट्टी पर दबाव बढ़ जाता है और उसके कणों का आपस में संपर्क छूटने लगता है और इसके बाद मिट्टी खासतौर से रेतीली मिट्टी तरल की तरह व्यवहार करने लगती है. सागर तटों पर मुट्ठी में रेत भर कर पानी में ले जाया जाए तो बिल्कुल ऐसा ही मसहूस होगा.
सुलावेसी में क्या हुआ
इंडोनेशिया की राष्ट्रीय आपदा बचाव एजेंसी ने बताया कि बालारोआ के पालू में भूकंप के कारण मिट्टी पिघलने से करीब 1700 घर ध्वस्त हो गए. उपग्रह से ली गई तस्वीरें बताती हैं कि पालू के हवाई अड्डे के दक्षिण में पेटोपबो के इलाके में एक बड़े शहरी क्षेत्र का हिस्सा जैसे सफाचट हो गया है. यहां कोई इमारत बाकी नहीं बची. इंडोनेशिया के नेशनल डिजास्टर एंड मिटिगेशन एजेंसी के प्रवक्ता सुतोपो पुरवो नुग्रोहो ने बताया, "जब भूकंप आया तो धरती के नीचे की सतह कीचड़ में बदल गई और ढीली हो गई. इतनी बड़ी मात्रा में कीचड़ ने पोटोबो के पूरे आवासीय परिसर को इस तरह से ध्वस्त कर दिया कि लगा कि इनमें से ज्यादातर को धरती ने जैसे सोख लिया है. हमारा अनुमान है कि वहां 744 इमारतें थीं."
कुछ अपुष्ट वीडियो में पेड़ों, इमारतों और यहां तक कि विशाल संचार टावरों को भूस्खलन में खिलौनों की तरह ध्वस्त होते देखा जा सकता है. हालांकि इन वीडियो की पुष्टि नहीं हो सकी है.
नई जमीन का संकट
मिट्टी का पिघलना आमतौर पर ऐसी जमीन पर होता है जो डूबते और उतराते रहते हों. समंदर और नदी के आस पास के इलाकों की जमीन में भी मिट्टी के पिघलने की आशंका होती है. क्योटो यूनिवर्सिटी के डिजास्टर प्रिवेंशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर तोशिकाता कोमाइ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "प्राकृतिक रूप से लंबे समय के दौर में बनी जमीन की तुलना में ऐसी जमीन जो कम समय में बनी हो, या फिर इंसानों ने बनाई हो वहां धरती के कण आपसी संपर्क जल्दी छोड़ देते हैं."
पूर्वी जापान के उरायासू शहर की ज्यादातर जमीन ऐसी ही है. 2011 में आए भयानक भूकंप के बाद यहां की 86 फीसदी जमीन पिघल गई थी और इस वजह से जमीन के भीतर बनी सीवेज तथा पानी और गैस की पाइपलाइनों को हुए नुकसान को दोबारा दुरुस्त करने में छह साल लग गए. इंडोनेशिया और पूरे एशिया में ऐसी कई जगहें हैं जहां मिट्टी के पिघलने की स्थिति बन सकती है.
भूकंप और मिट्टी के विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी का गलना बहुत आम है. जापान में 2011 के 9.0 की तीव्रता वाले भूकंप के दौरान भी यह हुआ था और हाल के सालों में कई बार दूसरे भूकंपों के दौरान भी. इसके अलावा ऐसा इंडोनेशियाई भूकंपों, न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में 2010 और 2011 के भूकंप और ग्रेट अलास्का के 1964 के भूकंप में भी हुआ था.
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)