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समाज

आलीशान कब्रों के कारण अब मौत भी अलग अलग

२९ अगस्त २०१९

गर्मागर्म चाय, वाईफाइ और नर्म सोफे... अभी स्थानीय चिड़ियों और छोटी छोटी लहरों वाली बांध का तो जिक्र ही नहीं हुआ. आलीशान कब्रगाह अमीरी और गरीबी की खाई को और गहरी कर रहे हैं, जिन्हें मौत भी नहीं भर पाती.

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Das slowakische Kernkraftwerk Mochovce in Okres Levice
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Klamar

दक्षिण अफ्रीका के सबसे बड़े शहर जोहानिसबर्ग में सोवेटो का मेमोरियल पार्क कब्रिस्तान यहां के उन पांच कब्रिस्तानों में है जो काल्ग्रो एम 3 नाम की कंपनी चलाती है. इस कंपनी का कारोबार जमीन और मकानों का है. कंपनी के पोर्टफोलियो में घर और रिटायरमेंट होम के अलावा आलीशान कब्रगाह भी हैं.

हालांकि इन्हें लेकर लोगों की राय बिल्कुल बंटी हुई है. कुछ लोग इसे निवेश का अच्छा विकल्प मानते हैं तो कुछ इसे कुलीन वर्ग की शान बताते हैं. दक्षिण अफ्रीका में जमीन और उसका मालिक, दोनों बहुत संवेदनशील और ऐसे मसले हैं जिन पर लगातार बहस होती रहती है. रंगभेद के खात्मे के 25 साल बीतने के बाद मौत के कारोबार ने लोगों की राय भी बांट दी है.

पिछले महीने अपने भाई को दफनाने वाले लॉरेंस पू कहते हैं, "हर कोई एक अच्छी विदाई का हकदार है. दुर्भाग्य से यह आपकी जेब पर निर्भर करता है." नारसेक मेमोरियल पार्क रेंज में एक परिवार की कब्रगाह के लिए जगह की कीमत 1600 डॉलर से लेकर 23,400 डॉलर तक है. इसमें आठ लोगों की कब्र बन सकती है और इसके साथ ही पौधों और बेंच के लिए भी कुछ जगह होती है. जबकि सरकारी कब्रगाह में आमतौर पर 200 डॉलर में कब्र बनाने की जगह मिल जाती है.

Urnengräber Urnengräberfeld auf dem Nordfriedhof in Oberhausen
तस्वीर: Imago/Werner Otto

इसके बाद इसमें कुछ सुविधाएं और विलासिताएं भी जोड़ी जाती हैं. जैसे कि मेमोरियल पार्क में दफनाने के लिए साफ सुथरी जगह और सुरक्षित जगह के अलावा शोक मनाने की जगह भी मिलती है. इस देश में अपराध बहुत है और यहां तक कि लोग कब्रगाह को भी नहीं बख्शते. शोक में डूबे परिवार अकसर लूटमार, कारों में चोरी और यहां तक कि कब्र खोद कर ताबूत निकालने तक की शिकायत करते हैं. इन ताबूतों को अनजान लोगों को बेच दिया जाता है. यहां जमीन का मसला भी बहुत बड़ा है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 10 फीसदी अमीर लोगों के पास देश की 71 फीसदी संपत्ति है. जबकि देश की केवल 7 फीसदी संपत्ति ही निचले तबके में आने वाले 60 फीसदी लोगों के पास है.  जीते जी और मरने के बाद भी लोगों के बीच असमानता बनी हुई है.

जोहानिसबर्ग में 32 सरकारी कब्रिस्तान हैं. इसके साथ मुट्ठी भर निजी कब्रिस्तान भी हैं. हर साल यहां करीब 14,000 लोगों को दफनाया जाता है. शहर प्रशासन का अनुमान है कि अगली आधी सदी के लिए उनके पास पर्याप्त जगह  है. आलीशान कब्रगाहों को कई बार लोग "आर्थिक भेदभाव" का नाम देते हैं.

हालांकि काल्गारो एम3 के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विकुल लाटेगन इससे इनकार करते हैं. उनका कहना है, "यह कुलीन लोगों की जगह नहीं है. दक्षिण अफ्रीका के लोग अंतिम संस्कार की पॉलिसी में निवेश करते हैं जिसमें यह सारे खर्चे शामिल होते हैं." लाटेगन का कहना है कि उनकी कंपनी दक्षिण अफ्रीका के अलग अलग धर्मों, रंगों और आर्थिक स्तर के लोगों को दफनाती है और एक बहुत जरूरी सेवा दे रही है. लाटेगन ने ध्यान दिलाया कि जमीन का पैसा बाद में भी बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के दिया जा सकता है. लाटेगन ने कहा, "सरकारी कब्रिस्तानों में तो आने वाले लोग बिल्कुल डरे होते हैं कि कहीं कोई उनके साथ बलात्कार या लूटमार ना कर दे."

दक्षिण अफ्रीका के 1.89 करोड़ लोगों के पास फ्यूनरल इंश्योरेंस यानी अंतिम संस्कार बीमा है. एक औसत अंतिम संस्कार में बलि के लिए गाय, फीस, पत्थर के साथ ही कुछ और चीजों की जरूरत होती है. कुल मिलाकर इन पर करीब 1700 डॉलर का खर्चा आता है. देश में बेरोजगारी की दर करीब 29 फीसदी है. बावजूद इसके दक्षिण अफ्रीका के लोग एक साल की आमदनी अंतिम संस्कार पर खर्च कर देते हैं.

हर साल मरने वालों में करीब एक चौथाई लोगों के पास इंश्योरेंस होता है जबकि एक चौथाई लोगों को यह खर्च उठाने के लिए कर्ज लेना पड़ता है. लाटेगन ने बताया कि ऐसे भी अंतिम संस्कार होते हैं जिनमें 10-15 हजार लोग शामिल होते हैं.

हालांकि अगर सरकारी कब्रिस्तान में जाएं तो नजारा बिल्कुल अलग होता है. एक महिला ने बताया कि 2018 में सोविटो के एक कब्रिस्तान में जो कि मेमोरियल पार्क से महज 15 मिनट की दूरी पर है, उनकी दादी मां को दफनाया गया था. वे लोग उन्हें दादा की कब्र के पास ही दफनाना चाहते थे, लेकिन वहां जगह नहीं थी. तो फिर तय हुआ कि दादा की कब्र को खोद कर उन के साथ ही दादी को भी दफना दिया जाए. हालांकि उस दिन बहुत बारिश हो रही थी और उन्हें कहा गया कि अपनी दादी को उन्हें दूसरी कब्र में दफनाना होगा. छह महीने बाद इस परिवार ने दादी की कब्र फिर खोदी और फिर उसे उस कब्रिस्तान में ले आए जहां वे रखना चाहते हैं. इन सबके पीछे पूरा खर्च आया 1750 यूरो जिसकी इस परिवार ने उम्मीद नहीं की थी.

मेमोरियल पार्क में आने वाले लोगों का सुरक्षा गार्ड स्वागत करते हैं. वे आपको अंदर ले जाएंगे और बैठने के लिए जगह के साथ ही चाय भी पेश की जाती है. वहीं आप सरकारी कब्रिस्तान में जाएं तो पेपर स्प्रे ले कर जाना पड़ता है क्योंकि कोई ठिकाना नहीं कि कब कहां से  कोई हमला कर दे.

देश में मेमोरियल पार्क जैसे कब्रिस्तानों की आमदनी बीते एक साल में ही करीब 66 फीसदी बढ़ गई है. बहुत से लोग चाहते हैं कि सरकार को कब्रिस्तानों की व्यवस्था भी ठीक करनी चाहिए ताकि कोई किसी भी वर्ग से आए उसे अपने करीबियों का सम्मान से शोक मनाने की सुविधा मिल सके.

एनआर/एके (रॉयटर्स)

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