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आर्थिक भंवर में फंसता भारत

१९ जून २०१२

भारत से निवेशकों का भरोसा उठ रहा है. फिच रेटिंग एजेंसी के मुताबिक भ्रष्टाचार और जरूरी आर्थिक सुधारों के अभाव के चलते भारत निवेशकों को मोहित नहीं कर पा रहा है. एजेंसी ने भारत की कर्ज रेटिंग घटाई.

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तस्वीर: AP

फिच रेटिंग एजेंसी ने भारत की रेटिंग ऋणात्मक कर दी है. अब तक भारत की कर्ज रेटिंग 'स्थिर' आंकी गई थी. फिच के मुताबिक भारत महंगाई और धीमे आर्थिक विकास की "बेहद अजीब सी स्थिति" का सामना कर रहा है. अर्थशास्त्र में यह डरावनी स्थिति कही जाती है. सामान्यतया बहुत तेज विकास दर के साथ महंगाई बनी रहती है. लेकिन भारत में ऐसा नहीं है. वह नौ साल बाद सबसे बुरी आर्थिक मंदी में फंसा दिख रहा है. पिछली तिमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर सिर्फ 5.3 फीसदी रही, जो 2003 के बाद सबसे कमजोर है.

सोमवार को फिच ने कहा, भारत में "भ्रष्टाचार और अपर्याप्त आर्थिक सुधार निवेश के माहौल के सामने ढांचागत चुनौती की तरह खड़े हैं."

फिच से पहले स्टैंडर्ड एंड पुअर्स नाम की एजेंसी भी भारत की रेटिंग गिरा चुकी है. दोनों एजेंसियों ने फिलहाल भारत को बीबीबी माइनस में रखा है. रेटिंग में बीबीबी माइनस निचले मध्यम दर्जे का आखिरी पायदान है. इसका मतलब है कि विषम या बदलती परिस्थितियों की वजह से संस्थान अपनी वित्तीय जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर सकेगा.

इसके नीचे बीबी प्लस आता है, जिसका अर्थ है कि संस्थान की नीतियों पर निवेश जगत का भरोसा न रहना. रेटिंग खराब होने से देश की प्रतिष्ठा को धक्का लगता है. निवेशक वहां जाने से कतराते हैं.

चीन और जापान के बाद भारत एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन बीते तीन चार सालों से भारत आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहा है. स्टैंडर्ड एंड पुउर्स तो चेतावनी दे चुका है कि ब्रिक देशों में सबसे पहले भारत की हालत खराब होगी. कर्ज रेटिंग एजेंसी के मुताबिक ब्राजील, रूस, चीन और भारत के संगठन में सबसे पहले निवेशकों का भरोसा भारत से ही उठेगा. रेटिंग एजेंसियों ने आगाह करते हुए कहा है कि भारत ने जल्द पर्याप्त कदम नहीं उठाए तो उसके आर्थिक विकास की हवा निकलनी तय है.

लेकिन अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री वाला देश आखिर क्या करे. सोमवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सारी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया. आरबीआई ने रेपो रेट को जस का तस आठ फीसदी रखा. नकद आरक्षी अनुपात यानी केश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) भी 4.75 फीसदी पर रखा गया है. रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को कर्ज देता है. उम्मीद की जा रही थी कि आर्थिक विकास को तेज करने के लिए आरबीआई रेपो रेट कम कर करेगा. इससे बैंक बाजार में ज्यादा पैसा डाल सकेंगे और आर्थिक पहिया तेजी से घूमने लगेगा. लेकिन महंगाई की वजह से आरबीआई ने रेपो रेट से कोई छेड़छाड़ नहीं की. केंद्रीय बैंक को आशंका है कि बाजार में ज्यादा पैसा आने से रुपये का दाम और नीचे गिरेगा और महंगाई बढ़ेगी. धीमे आर्थिक विकास में बढ़ती महंगाई घातक साबित होगी. ब्रिक देशों में अभी भारत में ही सबसे ज्यादा 7.55 फीसदी महंगाई है.

बीते कई हफ्तों से गोता लगा रहा भारतीय रुपया आरबीआई के फैसले के बाद और नीचे गिरा. रुपया एक डॉलर के मुकाबले 55.78 पर चला गया. लगातार गिरते रुपये की वजह से भारत के दवा उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है. निर्यात को भी इससे ज्यादा लाभ नहीं हो रहा है. कई उद्योग कच्चा माल विदेशों से खरीदते हैं, रुपये की कीमत गिरने से उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है.

इन चिंताओं के बीच इन दिनों भ्रष्टाचार, 35 लाख रुपये के टॉयलेट और राष्ट्रपति चुनाव सुर्खियों में हैं. मौजूदा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस वक्त राष्ट्रपति चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वित्त मंत्री के तौर पर प्रणब की पारी बहुत ही ज्यादा फीकी रही.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी, रॉयटर्स)

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन