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साहित्य

आना जेगर्स: द सेवंथ क्रॉस

सबीने कीजेलबाख
२ जनवरी २०१९

सात लोग एक यातना शिविर से भाग जाते हैं. छह पकड़े जाते हैं और उन्हें क्रॉस पर लटका दिया जाता है. एक क्रॉस खाली रह जाता है. आना जेगर्स की कहानी बताती है कि आतंक के वक्तों में एकजुटता कैसे बची रह सकती है.

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Anna Seghers Schriftstellerin
तस्वीर: picture-alliance/dpa

ये उपन्यास, नाजीवाद के दौर में आतंक और दमन के बारे में है- और ये मनुष्यता और एकजुटता का आह्वान भी है. ये अंतरराष्ट्रीय दर्जे का साहित्य है और जासूसी उपन्यास की तरह दमदार है. "द सेवंथ क्रॉस,” नाजी जर्मनी के दौर में जीवन का करुणामय और यथार्थपरक चित्रण है.

आना जेगर्स यहूदी कम्युनिस्ट थीं. वो वर्षों से फ्रांस में निर्वासन में रह रही थीं. उन्हीं दिनों उन्होंने "हिटलर के जर्मनी से नॉवल” लिखा था. वो किताब मेक्सिको में प्रकाशित होनी थी. नाजियों ने जब फ्रांस पर कब्जा कर लिया तो जेगर्स मेक्सिको ही भागी थीं.

आतंक की सामान्यता

"तीन साल से भी ज्यादा वक्त पहले जब पहली बार वेस्टहोफेन यातना शिविर बना था, जब बैरकें और दीवारें खड़ी की जा रही थीं, कंटीले तार बिछाए जा रहे थे और गार्डों की तैनाती की जा रही थी, गांववालों ने कैदियों के पहले जत्थे  को गुजरते हुए देखा था, उन पर अट्टहास और लातें बरसती थीं. और फिर रात में उन्होंने चीखें और ताने सुनीं. और तीन या चार मौकों पर जब गोलियां चलीं, हर किसी ने असहजता और चिंता महसूस की. गांव के लोगों ने ऐसे पड़ोसी मिलने के विचार पर अपने सीनों पर क्रॉस बनाए थे.”

उपन्यास का ये एक काल्पनिक यातना शिविर वेस्टहोफेन एक आवासीय इलाके के छोर पर स्थित है. जेगर्स ने उपन्यास को दक्षिण पश्चिमी जर्मनी में अपने परिचित फाल्स इलाके में रखा है, और वे वर्णन करती हैं कि इलाके के निवासी, कैदियों वाली जगह को कैसे फौरन "सामान्य” मानने लग जाते हैं. रवैया ऐसा है मानो "कोई इस हालात के बारे में कुछ नहीं कर सकता.”

Film Das siebte Kreuz nach Roman von Anna Seghers
आना जेगर्स के उपन्यास पर 1944 में अमेरिका में फिल्म बनीतस्वीर: Imago/United Archives

सात राजनीतिक कैदी इस यातना शिविर से भाग जाते हैं. इस तरह "द सेवंथ क्रॉस” शुरू होता है. छह कैदियों को फौरन पकड़ लिया जाता है और क्रूर कैंप कमांडर फारेनबैर्ग के आदेश पर उन्हें फांसी की सजा देने के लिए विशेष तौर पर बनाए गए क्रॉसों पर लटका दिया जाता है, ताकि कोई दोबारा ऐसी जुर्रत न करे.

केवल एक क्रॉस खाली बच जाता है. युवा कम्युनिस्ट गियॉर्ग हाइसलर भागने में सफल रहा है और अपने बीहड़ सफर में वो दोस्तों, समकालीनों और अजनबियों से मिलता है जो उसकी छिपने में मदद करते हैं और उसका समर्थन करते हैं और इस तरह अपनी जिंदगियों को भी जोखिम में डालते हैं. वे कोई प्रतिरोधी लड़ाके नहीं हैं, प्रतिबद्धता वाले महज साधारण लोग हैं. समर्थन और धोखे के बीच वे कैसे झूलते डगमगाते हैं, कैसे उनमें से कुछ डर के मारे सहायता से इंकार कर देते हैं और कैसे दूसरे और लोग ठीक इस डर को पराजित कर देते हैं, आना जेगर्स इन तमाम भावनाओं और अभिव्यक्तियों को पिरोती हुई, दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत से दो साल पहले 1937 के जर्मनी की विहंगम झांकी प्रस्तुत करती हैं.

एकजुटता का आह्वान

"हम सबने महसूस किया कि बाहरी शक्तियां कितनी प्रचंडता और कितने भयानक ढंग से मनुष्य पर हमला कर सकती हैं, उसके अंतःस्थल तक पहुंच सकती हैं. लेकिन हमने ये भी महसूस किया था कि उस अंतःस्थल में कोई एक ऐसी चीज है जो अपराजेय और अलंघनीय है.”

किताब के ठीक आखिर में ये उद्धरण, उपन्यास का संदेश देता है. कोई ऐसी चीज जरूर है जो नाजी और अन्य निरंकुश सर्वाधिकारवादी सत्ताओं को शक्तिहीन बना देती है, और वो हैः एकजुटता. जब लोग एकजुट होते हैं, एक दूसरे का उत्तरदायित्व लेते हैं, और बड़ा जोखिम उठाकर अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी एक दूसरे की मदद करते हैं तो कितनी भी बुरी हुकूमत को हराया जा सकता है.

फौरन बेस्ट-सेलर

नाजियों के सत्ता में आते ही, आना जेगर्स को 1933 में जर्मनी छोड़ना पड़ा. उन्होंने जाख्सेनहाउजेन और दाखाऊ के यातना शिविरों में पूर्व कैदियों की दास्तानें पढ़ीं और फिर अपने इलाके में काल्पनिक वेस्टहोफेन का निर्माण किया. वहां लेखिका को नाजीवाद की बढ़ती लोकप्रियता और अपने दोस्तों, पड़ोसियों और सहकर्मियों की गिरफ्तारी पर स्थानीय लोगों की शुरुआती प्रतिक्रियाओं का अनुभव पहले ही हो गया था.

Weltfriedenskonferenz in Paris 1949 | Anna Seghers & Georg Lukács
हंगरी के लेखक जॉर्ज लुकाच के साथ 1949 में पेरिस के विश्व शांति सम्मेलन मेंतस्वीर: picture-alliance/dpa

"द सेवंथ क्रॉस” का लेखन 1939 में पूरा हुआ लेकिन मेक्सिको के प्रकाशक अल लीब्रो ने उसे 1942 में छापा था. ये जर्मन लेखकों और बुद्धिजीवियों के सहयोग से गठित एक प्रकाशन संस्थान था. साथ ही अमेरिका में ये किताब अंग्रेजी में प्रकाशित हुई. इस तरह लाखों पाठक पहले ही गियॉर्ग हाइसलर और यातना शिविर से उसके भाग जाने की कहानी से परिचित हो चुके थे. जर्मनी में किताब 1946 में ही आ पाई, उससे एक साल बाद जेगर्स निर्वासन से स्वदेश लौटीं.

पूर्वी जर्मनी के स्कूलों में उनकी किताब फौरन ही अनिवार्य पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गई. पश्चिम जर्मनी में विश्व साहित्य की प्रतिनिधि रचना के रूप में और दमन और आतंक के दौर में एकजुट रहने वालों के ‘स्मारक' के रूप में स्थापित होने में "द सेवंथ क्रॉस” को अपेक्षाकृत लंबा समय लग गया.

आना जेगर्सः द सेवंथ क्रॉस, न्यू यार्क रिव्यू बुक्स क्लासिक्स (जर्मन टाइटलः दस जीब्टेक्रॉयत्स, 1942)

आना जेगर्स (1900-1983) अपनी पीढ़ी की सबसे महत्त्वपूर्ण लेखिका थीं. उनकी पहली कहानी 28 साल की उम्र में छपी थी. पांच साल बाद जब नाजियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया, उन्हें जर्मनी छोड़ कर मेक्सिको निर्वासित होना पड़ा. इस अवधि के दौरान लिखे उपन्यासों, "द सेवंथ क्रॉस” और "ट्रांजिट”, से उन्हें विश्व प्रसिद्धि हासिल हुई. 1947 में वो जर्मनी लौटी और पूर्वी बर्लिन में बस गईं. पूर्वी और पश्चिम जर्मनी में कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया. वो 1952 से 1978 तक जीडीआर (जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य, पूर्वी जर्मनी) के लेखक संघ की अध्यक्ष रहीं.