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आधार पर बढ़ता असमंजस

प्रभाकर मणि तिवारी
२ मार्च २०१८

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने पूर्वोत्तर राज्य असम में भारी असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है. दरअसल, अदालत ने विभिन्न योजनाओं से आधार नंबर को जोड़ने की समय सीमा को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया है. यह मियाद 31 मार्च तक है.

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तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/R. Shukla

राज्य में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया जारी रहने की वजह से अब तक 90 फीसदी से ज्यादा आबादी का आधार कार्ड ही नहीं बन सका है. राज्य की 3.40 करोड़ की आबादी में से अब तक महज 7.1 फीसदी का ही आधार कार्ड बन सका है. असम के पड़ोसी मेघालय में भी अब तक आधार कार्ड लागू नहीं हो सका है. यहां सत्तारुढ़ कांग्रेस समेत विभिन्न संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. राज्य में 14.3 फीसदी आबादी के पास ही आधार कार्ड है.

मुश्किल में असम

अदालत के फैसले ने असम में विरोधाभासी परिस्थिति पैदा कर दी है. राज्य में लंबे अरसे से जारी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की कवायद जारी रहने की वजह से आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया ठप है. शुरुआती दौर में राज्य के गोलाघाट, नगांव व शोणितपुर जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर आधार कार्ड का कुछ काम हुआ था. लेकिन विभिन्न संगठनों की आपत्तियों की वजह से इसे रोक दिया गया. उन संगठनों की दलील थी कि फर्जी दस्तावेजों के सहारे आधार कार्ड बना कर अवैध रूप से राज्य में रहने वाले शरणार्थी भी असम की नागरिकता का दावा कर सकते हैं. इससे एनआरसी की पूरी कवायद ही बेमतलब हो जाएगी.

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तस्वीर: Reuters/A.Hazarika

बीते महीने के आखिरी सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली एक पांच-सदस्यीय खंडपीठ ने जरूरी सेवाओं से आधार कार्ड को जोड़ने की मियाद बढ़ाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया था. असम सरकार ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआडीएआई) के जरिए सुप्रीम कोर्ट को पहले ही बता दिया है कि वह 31 मार्च तक यह काम नहीं कर सकती. राज्य के संसदीय कार्य मंत्री चंद्र मोहन पटवारी कहते हैं, ‘सरकार पहले ही सुप्रीम कोर्ट को अपनी मजबूरी से अवगत करा चुकी है. इसलिए आधार कार्ड को लिंक करने की कवायद को लेकर आतंकित होने की जरूरत नहीं है.' यह मुद्दा असम विधानसभा में भी उठ चुका है. मंत्री ने विधानसभा में कहा कि आधार कार्ड बनने के बाद उसे बैंक खातों, मोबाइल फोन नंबरों और सरकारी योजनाओं से जोड़ दिया जाएगा.

दरअसल, राज्य में आधार कार्ड का काम दोबारा शुरू करने की तारीख तीन बार आगे बढ़ चुकी है. पहले यह काम बीते साल एक दिसंबर से होना था. उसके बाद पहले इसे जनवरी में शुरू करने की बात कही गई और फिर फरवरी के दूसरे सप्ताह में. अब सरकार ने 15 मार्च की नई तारीख तय की है. मंत्री चंद्र मोहन पटवारी कहते हैं, ‘सरकार ने आधार केंद्रों की स्थापना के लिए 1,241 जगहों की शिनाख्त की है. वहां आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया 15 मार्च से शुरू हो जाएगी.' वह बताते हैं कि यूआईडीएआई ने निजी एजंसियों के जरिए आधार कार्ड बनाने और वितरित करने की प्रक्रिया रद्द कर दी थी. इसी वजह से दिसंबर में काम शुरू नहीं हो सका. बाद में सरकारी एजंसियों के चयन और आधारभूत ढांचा तैयार करने में समय लग गया.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Jagadeesh

एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर की आधी रात को प्रकाशित हुआ था. लेकिन उसे अपडेट करने की कवायद वर्ष 2013 से ही शुरू हुई थी. नतीजतन आधार कार्ड का काम ठप रहा. मंत्री का कहना है कि एनआरसी और आधार कार्ड अलग-अलग चीजें हैं. आधार कार्ड के नियमों से साफ है कि इसे नागरिकता का सबूत नहीं माना जा सकता.

मेघालय में भी विवाद

असम के पड़ोसी मेघालय में भी आधार कार्ड का बड़े पैमाने पर विरोध होता रहा है. राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस भी इसे निजता का हनन करार देते हुए इसके खिलाफ मुखर रही है. यही वजह है यहां महज 14.2 फीसदी लोगों का ही आधार कार्ड बन सका है. बीते साल मेघालय पीपुल्स कमेटी ऑन आधार नाम के एक गैर-सरकारी संगठन ने आधार योजना से बाहर निकलने के लिए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया था. समिति ने 13 सौ हस्ताक्षर जुटाने का दावा किया था. मुख्यमंत्री मुकुल संगमा का दावा है कि राज्य में आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है. उन्होंने केंद्र सरकार पर इस मुद्दे पर भ्रम फैलाने का भी आरोप लगाया है. उन्होंने विधानसभा के शीतकालीन अधिवेशन के दौरान सदन में कहा था कि राज्य के लोगों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं बल्कि ऐच्छिक है.

राज्य के तृणमूल कांग्रेस नेता व दक्षिण तूरा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बर्नार्ड एन. मराक कहते हैं, "आधार के चलते राज्य के आदिवासी तबके के लोगों में भारी असंतोष है." उनका कहना है कि संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होने की वजह से राज्य में आधार जैसी पाबंदियां लागू नहीं होतीं.

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तस्वीर: Reuters/A.Hazarika

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खासकर असम व मेघालय के जो लोग राज्य के बाहर रह कर पढ़ाई या नौकरी करते हैं उनको भारी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है. इसकी वजह यह है कि 31 मार्च के भीतर तमाम बैंक खातों और दूसरी सेवाओँ को आधार से नहीं जोड़ने की स्थिति में उनके बैंक खातों से लेकर मोबाइल फोन और स्कालरशिप का भुगतान तक बंद हो सकता है. असम सरकार ने भरोसा दिया है कि वह केंद्र सरकार से बातचीत कर इस उलझन का कोई हल निकालेगी. पर्यवेक्षकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र भी इस मामले में ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में अगले महीने समस्या गंभीर होने का खतरा मंडराने लगी है.