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आधार तलाशते राहुल गांधी

२० जनवरी २०१३

परिवार की विरासत ने राहुल गांधी को पार्टी में दूसरे नंबर का नेता तो बना दिया लेकिन उनके सामने खुद अपनी जमीन तैयार करने की चुनौती है. राजीव व इंदिरा जैसे नामों में निजी करिश्मा भी दिखता था, राहुल में वह बात नहीं.

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तस्वीर: dapd

देश की करीब सवा अरब की आबादी का दो तिहाई हिस्सा 35 साल से कम उम्र का है लेकिन देश चलाने वाले नेताओं की उम्र रिटायरमेंट पार कर चुकी है. प्रधानमंत्री 80 साल के और दूसरे वरिष्ठ मंत्री भी 70 के लपेटे में. महंगाई, भ्रष्टाचार और सामाजिक बदलाव की चुनौतियों से जूझती पार्टी को ऐसे में एक युवा चेहरे की जरूरत थी और कांग्रेस अध्यक्ष के पुत्र राहुल गांधी के अलावा किसी और नाम पर एकराय बन ही नहीं सकती थी.

42 साल के राहुल गांधी इस बात को तो जानते हैं और इसलिए पार्टी में दूसरा नंबर यानी उपाध्यक्ष बनने के बाद कहा, "हमें दोबारा सोचना होगा और अपने देश के तंत्र को बदलना होगा." राहुल का दावा है कि आठ साल तक राजनीति करने के बाद वह ऐसी जगह पहुंच गए हैं, जहां से वह चीजों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. लेकिन निजी तौर पर उनकी विकसित समझ हकीकत में परिलक्षित नहीं होती. राहुल ने जहां जहां हाथ डाला है, पार्टी को नुकसान झेलनी पड़ा है. पंजाब, उत्तर प्रदेश और गुजरात के चुनाव इसके मिसाल हैं.

नेहरू गांधी परिवार का इतिहास भारत की राजनीति पर सबसे सशक्त है और इस परिवार के किसी भी शख्स के लिए राजनीति का सफर आसान है. लेकिन इससे पहले इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने इस परिवार के होने के बावजूद अपनी राजनीतिक समझ और करिश्मे भी दिखाए थे. इंदिरा भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री होने के साथ साथ देश की आर्थिक विकास की धुरी समझी जाती थीं. उनकी मजबूत शख्सियत की वजह से बड़े देशों ने कभी उनसे बैर नहीं लिया.

Indien Kongresspartei Rahul Gandhi und Sonia Gandhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इंदिरा के बेटे और राहुल के पिता राजीव गांधी ने सिर्फ 38 साल की उम्र में राजनीति शुरू की और एशियाई खेलों की आयोजन समिति में उन्होंने काफी नाम कमाया. सिर्फ 42 की उम्र में जब वह प्रधानमंत्री बने तो उनका राजनीतिक करियर चार साल का भी नहीं था. लेकिन राजीव के करिश्मे ने उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्रियों की जमात में शामिल कर दिया. देश के अंतरराष्ट्रीय शक्ति बनने और आर्थिक उदारीकरण की राजीव की दूरदृष्टि ने भारत को नया रूप दे दिया. राहुल उम्र के उस पड़ाव को पार कर चुके हैं और आठ साल राजनीति कर चुके हैं, फिर भी उनकी राजनीतिक समझ पर सवाल उठते रहते हैं. बड़े मुद्दों पर सामने आकर चुनौती झेलने की जगह वह बैकग्राउंड में रहना पसंद करते हैं. हालांकि उनका खुद का कहना है, "कांग्रेस पार्टी मेरी जिंदगी है." राहुल का कहना है कि उनके पास "जो कुछ है, सबके साथ" लोगों के लिए खड़े हैं.

हालांकि वह खुद अब तक यह साबित नहीं कर पाए हैं कि उनके पास राजनीतिक तौर पर "क्या" है, जिसे वह जनता को देंगे. उन्होंने कभी मंत्री पद नहीं संभाला है और लोकसभा में उनकी इंट्री पारिवारिक सुरक्षित सीट से होती आई है. राहुल गांधी का राजनीतिक कद बढ़ाने का मकसद सीधे तौर पर अगले साल का आम चुनाव है, जिसमें पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी.

Indien Delhi Nationalist Congress Party Singh Rahul Gandhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दो बार प्रधानमंत्री रह चुके मनमोहन सिंह ने 80 का पड़ाव पार कर लिया है और उन्हें तीसरा मौका जनता और पार्टी दोनों ही नहीं देना चाहेगी. सोनिया गांधी 66 साल की हो चुकी हैं और हाल के दिनों में उनकी सेहत बहुत खराब रही है. वह पहले ही प्रधानमंत्री पद ठुकरा चुकी हैं, लिहाजा वह भी इस रेस से बाहर हैं. ऐसे में पार्टी के अंदर किसी की इतनी हिम्मत नहीं कि वह राहुल गांधी के नाम का विरोध करे.

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में राहुल के अलावा बेहतर राजनीतिक समझ के नेताओं की कमी है. पी चिदंबरम के नाम की बार बार चर्चा होने के बाद भी उन्हें इस मोर्चे पर हाशिये में कर दिया जाता है. हालांकि चिदंबरम ने वित्त और गृह मंत्री के तौर पर शानदार प्रदर्शन किया है. जानकारों का कहना है कि "नदी में रहकर मगर से बैर" कोई नहीं लेना चाहता. राजनीतिक विश्लेषक प्रंजॉय गुहा ठाकुरता का कहना है, "कांग्रेस खुद को महान पुरानी पार्टी की जगह ब्रांड न्यू पार्टी बनाना चाहती है लेकिन अभी यह तय होना बाकी है कि उसे इसमें कामयाबी मिलती है या नहीं."

एजेए/ओएसजे (एएफपी)

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