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आधा एकड़ जमीन से होगी बेरोजगारी खत्म

६ दिसम्बर २०१८

किसानों को अच्छे दाम दिलाने वाली कॉफी की खेती के लिए युगांडा के युवाओं को आधा एकड़ जमीन भी नसीब नहीं. ईयू का एक प्रोजेक्ट इसे बदलने की कोशिश कर रहा है.

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Fairtrade-Kaffeeanbau in Uganda
तस्वीर: ACPCU

युगांडा के कई ग्रामीण युवाओं और महिलाओं की तरह, क्रिस्टीन कयाकुंडा को भी और जमीन की जरूरत है. अभी उनके पति और उनके पास 1.5 एकड़ की जमीन है जिसमे से कुछ विरासत में मिली है, कुछ खरीदी हुई है और कुछ उधार ली हुई है.  मगर ये काफी नहीं है.

23 साल की क्रिस्टीन कयाकुंडा कहती हैं, "मेरे बच्चे अब आलू, कसावा और बीन खाते हैं, जो कि देश के सबसे गरीब लोग खाते हैं." ये सब कयाकुंडा अपने खेत के एक तिहाई हिस्से में उगाती हैं. वे अपने परिवार के साथ देश के दक्षिण पश्चिम में बसे एक छोटे से गांव क्यामपुंगु में रहती हैं.

बाकी का खेत कॉफी पैदा करने के लिये है. कॉफी उगाना पछले कुछ सालों में बहुत फायदेमंद हो गया है, इसलिए ज्यादा जमीन का सीधा मतलब है ज्यादा कमाई. अपने जीवन पर इस अतिरिक्त कमाई का असर बताते हुए कयाकुंडा कहती हैं, "मेरे छह और दो साल के बच्चे ब्रेड, दूध के साथ चीनी और अंडे भी खा सकेंगे." 

उनके जिले में इसी साल की शुरुआत में एक प्रोजेक्ट शुरु किया गया है, जिससे कयाकुंडा जैसे और भी युवा लोगों को मदद मिलेगी जो जमीन पाने की कोशिश कर रहे हैं. बाकी के लोगों की तरह कयाकुंडा को भी आशा है यूरोपीय संघ की ओर से चलाए जा रहे प्रोजेक्ट की से उनके परिवार को और अधिक जमीन मिल जाएगी और इससे उनके जीवन में सुधार होगा.

ऐसा ही हाल मोटरसाइकिल टैक्सी चलाने वाले मुकासा जोसेफ का है. उन्होंने पांच साल तक कॉफी उगाई लेकिन फिर बहुत कम जमीन होने के कारण कमाई काफी नहीं हो पाई. उनकी आशा है कि अगर उन्हें ज्यादा जमीन मिल जाए तो वे उस पर उगाई कॉफी की कमाई से एक टैक्सी खरीद पाएंगे. इस तरह वे एक मोटरसाइकिल टैक्सी ड्राइवर से टैक्सी ड्राइवर की तरक्की कर जाएंगे. 

एक गैर सरकारी संगठन 'फार्म अफ्रीका' के संचार अधिकारी सैम विनी बताते हैं कि उन्होंने लोगों को भर्ती करके उनकी ट्रेनिंग शुरु कर दी है और इसके साथ ही समुदायों से बात करना भी. फार्म अफ्रीका का लक्ष्य है करीब 3,600 युवाओं को कॉफी की खेती से जोड़ा जाए. उनकी योजना ऐसी है कि जमीन के मालिकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वे युवा लोगों को अपनी जमीन पर कॉफी उगाने दें. प्रोजेक्ट संचालक अमोदोई विन्सेंट का कहना है, "हम वर्कशॉप की मदद से समुदायों को साथ लाएंगे और उनसे ऐसे करार करेंगे जिससे वे युवाओं को अपनी जमीन पर कॉफी की बीन लगाने दें."

कृषि, पशु उद्योग और मछली पालन मंत्रालय में किसानों के संगठन विशेषज्ञ फ्रेड्रिक मुहंगजी कहते हैं, "खेती में सब कुछ जमीन से जुड़ा है और बहुत से मां बाप अपने बच्चों को कॉफी उगाने के लिये जमीन नही देना चाहते हैं." इसका कारण यह है कि कॉफी उगाने में दो साल से ज्यादा वक्त लगता है और इसलिए यह लंबे समय का निवेश है. यही कारण है कि कई लोग यहां कॉफी उगाने को बुजुर्गों का काम मानते हैं. और इसीलिये जब सरकार की ओर से मुफ्त कॉफी के बीज बांटे जाते हैं, तो युवा लोग इन्हें लेने से हिचकिचाते हैं.

इस प्रोजेक्ट से बेरोजगारी को कम करने में मदद मिलने की भी उम्मीद है. 2014 की जनगणना के हिसाब से युगांडा की 3.76 करोड़ आबादी में से करीब 78 प्रतिशत की उम्र 30 साल से कम है. यूगांडा ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स का कहना है कि बेरोजगारी की परिभाषा के तहत, साल 2015 में 16 से 30 साल की उम्र के करीब 16.4 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे.

एक स्थानीय समूह 'किगेजी कॉफी डेवलपमेंट अकादमी' के प्रमुख जोशुआ रुकुंडो का कहना है कि अगर एक बेरोजगार आदमी को कॉफी उगाने के लिए आधा एकड़ जमीन भी मिल जाए, तो इससे वह अपनी जीविका चला सकता है और बेरोजगारी के अभिशाप से आजाद हो सकता है.

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)