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आतंकी हमले से खतरनाक कैंसर

Anwar Jamal Ashraf२१ जनवरी २०१४

पाकिस्तानः ऐसा देश, जहां आतंकवाद से ज्यादा महिलाएं स्तन कैंसर की वजह से मरती हैं. जागरूकता और वर्जना का ऐसा आलम कि इस बारे में बताते हुए "स्तन" भी नहीं बोल सकते.

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तस्वीर: picture alliance/CHROMORANGE

ऐसे में उपाय क्या है, विश्वविद्यालयों में जब इस बारे में बताया जाता है, तो कहना पड़ता है, "महिलाओं का कैंसर." पाकिस्तान में हर नौवीं महिला को स्तन कैंसर होता है और स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने वाली संस्था पिंकरिबेन के मुताबिक यह एशिया में सबसे ज्यादा है. पाकिस्तान सहित दक्षिण एशिया में स्तन को सीधा सेक्स से जोड़ कर देखा जाता है और महिलाएं अक्सर बीमारी के बारे में बात करने या डॉक्टर के पास जाने से कतराती हैं.

लेकिन अब प्रमुख नेता फहमीदा मिर्जा सहित कुछ अहम महिलाएं स्तन कैंसर से उबरने में कामयाब रही हैं और इसके बाद उन्होंने इसके प्रति लोगों को जागरूक करने का फैसला किया है, "इसमें शर्म की कोई बात नहीं है. किसी भी महिला को इस वजह से नहीं मरना चाहिए कि वह इस बारे में बात नहीं कर सकती." कोई भी राष्ट्रीय आंकड़ा नहीं है कि पाकिस्तान में कितनी महिलाएं इसकी शिकार होती हैं लेकिन इस पर नजर रखने वाली गैर सरकारी संस्थाओं का कहना है कि हर साल करीब 40,000 पाकिस्तानी महिलाएं स्तन कैंसर की वजह से जान गंवा बैठती हैं. यह अमेरिका के बराबर की संख्या है लेकिन पाकिस्तान की आबादी अमेरिका से आधी है.

वर्जना में फंसा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी शहजाद आलम का कहना है कि पाकिस्तान में किसी तरह की स्वास्थ्य सेवा नहीं है और अब ज्यादा युवा महिलाओं को यह बीमारी हो रही है. उनका कहना है कि इस तरह इस समस्या का हल पाना मुश्किल दिखता है, "यह महिलाओं को मारने वाला सबसे खतरनाक कैंसर है."

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स्तन कैंसर पर जागरूकता की कमीतस्वीर: DW-TV

पाकिस्तानी महिलाओं को इस बारे में बहुत कम जानकारी है. रावलपिंडी जनरल अस्पताल के एक सर्वे में जब 600 महिलाओं से इस बारे में पूछा गया तो 70 फीसदी कुछ भी बताने में नाकाम रहीं, करीब 88 फीसदी को स्तन जांच के बारे में कुछ पता नहीं था और 68 प्रतिशत को यह नहीं पता था कि स्तन में अगर गांठ पड़ जाए, तो वह कितना खतरनाक हो सकता है.

पाकिस्तान में पिंकरिबन के प्रमुख उमर आफताब का कहना है, "अगर महिलाओं को स्तन कैंसर हो जाता है, तो वे इस बारे में अपने घर में भी बात नहीं करती हैं." वे लोग जब यूनिवर्सिटी में इसके प्रति जागरूकता फैलाने की बात कर रहे थे, तो वे "स्तन" भी नहीं कह पा रहे थे. आफताब का कहना है कि वे ऐसी वर्जनाओं को तोड़ना चाहते हैं.

नाम नहीं बताऊंगी

इन्हीं वर्जनाओं की वजह से महिलाओं का इलाज नहीं हो पाता है क्योंकि उन्हें मर्ज के बारे में समझ ही नहीं है. इस्लामाबाद में जब स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता कार्यक्रम चल रहा था, तो औरतों से कहा गया कि कमरे से सभी मर्दों को बाहर चले जाना चाहिए. एक छात्रा बड़ी मुश्किल से इस पर बात करने को राजी हुई लेकिन नाम नहीं बताया. उसका कहना है, "हमें इस बारे में खुल कर बात करने में काफी वक्त लगेगा."

दूसरी समस्या पाकिस्तान की बदहाल स्वास्थ्य सेवा है, जहां पैसों और आधुनिक मशीनों की कमी है. इस्लामाबाद की शिफा इंटरनेशनल अस्पताल में कैंसर स्पेशलिस्ट सायरा हसन का कहना है कि ज्यादातर अस्पतालों में स्क्रीनिंग की सुविधा भी नहीं है. कई मरीज तो ऐसी हैं कि इस बारे में पता चलने के बाद वे डॉक्टर की बजाय नीम हकीम के चक्कर में पड़ जाती हैं. पाकिस्तान जैसे विकासशील देशों में स्तन कैंसर की वजह से महिलाओं की जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है क्योंकि उन्हें इस बारे में बहुत देर से पता चलता है. हसन का कहना है कि इसकी कई वजहें हैं और सबसे खतरनाक सांस्कृतिक वर्जना है. कैंसर से लड़ाई लड़ चुकी कराची में आर्ट गैलरी चलाने वाली समीरा राजा का कहना है कि इसे बदलने की जरूरत है, "आपको यह जान कर हैरानी होगी कि महिलाएं किस तरह इसकी जानकारी छिपाती रहती हैं." उनका कहना है कि औरतें अपने पतियों से भी इस बारे में चर्चा नहीं कर पाती हैं.

कैसे हो बदलाव

जहां तक अमेरिका का सवाल है, वहां महिलाएं, खास तौर पर सेलिब्रिटी खुल कर इस बारे में बात करती हैं. अब मिर्जा जैसी औरतों के सामने आने पर चीजें बदल रही हैं, "मेरे ऊपर काम का बहुत बड़ा दबाव था. लेकिन लोग समझ रहे थे कि मैं इससे भाग रही हूं." उनका कहना है कि जब उनके जानने वालों को पता चला कि उन्हें कैंसर है तो लोग सन्न रह गए क्योंकि पाकिस्तान जैसे समाज में माना जाता है कि कैंसर का मतलब मौत का फरमान है. लेकिन अपने इलाज के दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया और जब उनकी कीमोथेरेपी हो रही थी, तो उन्होंने दोबारा चुनाव लड़ा और जीत गईं.

अब संसद में वह महिलाओं के स्वास्थ्य का मुद्दा उठाती हैं. अब वे ऐसा प्रस्ताव लाने की कोशिश कर रही हैं कि औरतों के लिए स्तन कैंसर की सालाना जांच कराना जरूरी हो जाएगा. इसके अलावा बच्चियों को स्कूल में भी इसकी जांच करानी होगी.

एजेए/एमजी (एपी)

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