आगरा के व्यवसायी ने 21 कैदियों को दिलाई जेल से आजादी
१६ अगस्त २०१९अपराध की सजा काट चुके 21 कैदियों के पास अदालत की ओर से लगाए गए जुर्माने की राशि अदा करने के पैसे नहीं थे, जिसकी वजह से वे सजा पूरी होने के बाद जेल में ही बंद थे. आगरा के व्यवसायी राजेश सहगल ने स्वतंत्रता दिवस पर इन कैदियों की करीब पौने दो लाख रुपये की जुर्माने की राशि खुद अदा की और इन्हें जेल की कोठरियों से आजादी दिलाई.
आगरा जिला जेल के अधीक्षक शशिकांत मिश्रा कहते हैं, "हमने कई संस्थाओं, प्रतिष्ठित लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से इस संबंध में अपील की थी. कई लोगों ने इसके लिए पेशकश की लेकिन राजेश सहगल ने इन 21 कैदियों का जुर्माना अकेले ही अदा करने का फैसला किया. हमने पहले भी इस तरह की अपील की है और कई लोग इसके लिए आगे आए हैं. ये वो कैदी हैं जो अपनी सजा तो काट चुके हैं लेकिन जुर्माने की राशि अदा करने में सक्षम नहीं थे.”
जेल अधीक्षक के मुताबिक इनमें से ज्यादातर कैदी रेलवे में चोरी जैसी छिटपुट घटनाओं में जेल में बंद थे. लगभग सभी कैदी ऐसे हैं जिन्होंने पहली बार कोई अपराध किया था और उन्होंने आगे से इस तरह के आपराधिक कृत्य ना करने का वादा भी किया है.
जेल अधिकारियों के मुताबिक, ये सभी कैदी 18 से पैंतीस साल की उम्र के हैं और अलग अलग तरह के अपराधों में इन्हें सजा मिली थी. शशिकांत मिश्र ने राजेश सहगल का आभार जताते हुए कहा कि उनकी वजह से ये कैदी अपने घर-परिवार वालों के साथ स्वतंत्रता दिवस और रक्षा बंधन का त्योहार मना सके हैं.
जेल अधीक्षक शशिकांत मिश्र ने बताया कि इस तरह की अपील वो लोग अक्सर करते हैं और इसके लिए समाज के कई लोग आगे आ चुके हैं. शशिकांत मिश्र के मुताबिक, इस पहल के चलते इस तरह के अब तक करीब ढाई सौ कैदी रिहा किए जा चुके हैं.
पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को राज्य सरकारें अक्सर ऐसे कैदियों को रिहा करने का फैसला करती हैं जिनका जेल के भीतर आचरण अच्छा रहता है. यूपी में इस बार भी इस तरह के 73 कैदियों को विभिन्न जेलों से रिहा किया गया. लेकिन आगरा जिला जेल की इस पहल को काफी सराहनीय कहा जा सकता है कि जो कि लोगों को ऐसे सामाजिक कृत्य के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
आगरा में एक्सपोर्ट का बिजनेस करने वाले राजेश सहगल का कहना है कि उन्हें इन कैदियों के बारे में जेल अधीक्षक से ही पता चला, उसके बाद उन्होंने इनका जुर्माना भरने का फैसला किया. सहगल कहते हैं, "कैदियों ने जो अपराध किया था, उसका उन्हें दंड मिला. उन्होंने सजा भी काट ली, इसलिए अब उनकी सहायता करना हमारा फर्ज बनता है.”
जेल अधिकारी अक्सर इस तरह की पहल करते हैं और लोग ऐसे कैदियों की मदद के लिए आगे आते हैं. अभी पिछले महीने भी आगरा के एक व्यवसायी ने अपने जन्म दिन के मौके पर कुछ कैदियों की रिहाई के लिए जुर्माने की राशि अदा की थी.
73 वर्षीय मोतीलाल यादव ने अपने जन्मदिन पर जेल के 17 कैदियों की रिहाई कराकर अपना जन्म दिन मनाया था. ये सभी ऐसे कैदी थे जो पैसे न होने के कारण अपनी जमानत नहीं करा पा रहे थे.
मोतीलाल यादव बताते हैं कि उन्हें ये खयाल अखबार पढ़कर आया जिसमें किसी व्यापारी ने अपने जन्म दिन पर कैदियों को कुछ बर्तन बांटे थे. मोतीलाल कहते हैं कि जब उन्होंने कैदियों की रिहाई में मदद के बारे में पता किया तो उन्हें इस योजना का पता लगा.
जेल अधीक्षक शशिकांत मिश्रा बताते हैं कि मोतीलाल यादव ने 35 हजार रुपए जुर्माने की राशि देकर ऐसे कैदियों की जमानत कराई है जो आर्थिक रुप से अपनी जमानत कराने में सक्षम नहीं थे. यही नहीं, मोतीलाल ने दूर-दराज के आठ कैदियों को खाना खाने और किराए के लिए पैसे भी दिए ताकि उन्हें भूखा न रहना पड़े.
भारत की जेलों की हालत बहुत खराब है, देश की ज्यादातर जेलों में क्षमता से कई-कई गुना ज्यादा कैदी रह रहे हैं.भारत के कैदियों के बारे में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमनराइट्स वॉच की एक रिपोर्ट बताती है जमानत मिलने में देरी और लंबी सुनवाई के साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे कैदी भारत की जेलों में बंद हैं जो जुर्माने की रकम अदा करने की स्थिति में नहीं हैं या फिर अपनी जमानत का खर्च नहीं उठा सकते.
एक अनुमान है कि भारत की जेलों में बंद ऐसे कैदी जिनकी सुनवाई शुरू नहीं हुई है उनमें 71 फीसदी बिल्कुल कम पढ़े लिखे या निरक्षर हैं ऐसे में उन्हें यह भी नहीं पता कि अपनी रिहाई के लिए वो क्या कदम उठा सकते हैं. कानून में बदलाव कर कई तरह से कैदियों के लिए सुधार की कोशिशें हुई हैं लेकिन उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं है.
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