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हिंदी फिल्म जगत से भी निकल रहे हैं विरोध के स्वर

चारु कार्तिकेय
८ जनवरी २०२०

भारत में नए कानूनों को लेकर लगातार चल रहे विरोध प्रदर्शनों में अब हिंदी फिल्म जगत की जानी मानी हस्तियां भी शामिल हो गईं हैं. क्या कारण है इसका?

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Indien Proteste gegen neues Staatsangehörigkeitsrecht in Mumbai
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

भारत में नागरिकता कानून के खिलाफ लगातार चल रहे विरोध प्रदर्शनों को हिंदी फिल्म उद्योग की जानी मानी हस्तियों का समर्थन मिलने से विरोध का स्वर और ऊंचा हो गया है. समर्थन देने वाले फिल्मी जगत के इन नामों में कुछ तो ऐसे हैं जो लंबे समय से अलग अलग मुद्दों पर मुखर रहे हैं, लेकिन कई ऐसे हैं जिन्होंने पहली बार मुंह खोला है. 

इसके पहले, पिछले कई सालों में कई बार देखा गया कि जब भी फिल्म जगत में किसी ने देश के हालात की आलोचना की, तो वह अकेला ही रह गया और उसके समर्थन में उसी के उद्योग के उसके साथी भी सामने नहीं आये. सितंबर 2015 में दादरी में मोहम्मद अखलाक के मारे जाने के बाद असहिष्णुता को लेकर जो पर बहस छिड़ी थी उसमें लेखकों और साहित्यकारों के अलावा फिल्म जगत के कुछ लोगों ने भी विरोध में अपने सरकारी पुरस्कार वापस किये थे. इनमें शामिल थे कुंदन शाह, दिबाकर बनर्जी और सईद मिर्जा जैसे फिल्म निर्माता. 

फिर कुछ ही सप्ताह बाद फिल्म जगत के दो सबसे बड़े अभिनेता शाहरुख खान और आमिर खान ने कहा कि उन्हें भी देश में असहिष्णुता के माहौल पर चिंता होती है. आमिर खान ने यह भी कहा कि उनकी पत्नी उनसे चर्चा कर रही थीं कि क्या उन्हें देश छोड़ देना चाहिए? दोनों अभिनेताओं को सरकार के समर्थकों की तरफ से इतनी आलोचना झेलनी पड़ी कि दोनों ने अपने अपने शब्द वापस ले लिए और उसके बाद वे खामोश ही हो गए. उस समय उनका साथ किसी और ने नहीं दिया और उसके बाद उन दोनों ने फिर कभी किसी सामाजिक या राजनीतिक मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया.

Hochzeit Indien Isha Ambani Anand Piramal
तस्वीर: AFP/Getty Images/S. Jaiswal

लेकिन इस बार विरोध प्रदर्शनों में फिल्म जगत बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहा है. एक तरफ अभिनेत्री स्वरा भास्कर और निदेशक अविनाश दास जैसे लोग हैं जो पिछले कई महीनों से राजनीतिक बहस में बेझिझक शामिल होते रहे हैं. दूसरी तरफ हैं फिल्म जगत के वे लोग जिन्हें पहली बार, या एक अरसे बाद, और काफी आक्रामक रूप से राजनीतिक बयान देते देखा जा रहा है. इनमें शामिल हैं अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, अनुभव सिन्हा, हंसल मेहता जैसे निर्माता -निर्देशक और दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, सोनम कपूर, तापसी पन्नू, दिया मिर्जा, सोनाक्षी सिन्हा जैसी अभिनेत्रियां. 

इनमें से कई नागरिकता कानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों से प्रेरित हो कर आए तो कई पांच जनवरी को जेएनयू में तोड़-फोड़ और छात्रों के साथ मार पीट देख कर छात्रों के समर्थन में आगे आये. स्वरा भास्कर और फरहान अख्तर जैसे ऐक्टरों ने तो 19 दिसंबर को मुंबई के आजाद मैदान में नागरिकता कानून के खिलाफ आयोजित प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया था. जेएनयू हमले के बाद छह जनवरी को मुंबई में एक और प्रदर्शन का आयोजन हुआ जिसमे फिल्म जगत की कई हस्तियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

मंगलवार की शाम जेएनयू के छात्रों के लिए विशेष रही क्योंकि उनके साथ एकजुटता का भाव दर्शाने उनके बीच बॉलीवुड की सबसे बड़ी अभिनेत्रियों से एक, दीपिका पादुकोण पहुंचीं.

  

जेएनयू में दीपिका शांत ही रहीं. वहां जाने से पहले उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि जेएनयू में जो हुआ उस से उन्हें दर्द महसूस हुआ. उन्होंने कहा, "मुझे दर्द इसलिए हो रहा है क्योंकि मैं उम्मीद करती हूं कि ये नया "नॉर्मल" न बन जाए. ये डरावना है और दुखी करने वाला भी."

विशाल भारद्वाज ने भी दिसंबर में एक साक्षात्कार में नागरिकता कानून के विषय में बोलते हुए कहा था, "मौजूदा परिदृश्य डरावना है क्योंकि लोगों को धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है. ये वो भारत नहीं है जिसमें मैं बड़ा हुआ."

  

अनुराग कश्यप उन लोगों में से हैं जिन्हें सरकार की आलोचना करने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. मई 2019 में इंस्टाग्राम पर किसी ने उनकी बेटी का बलात्कार करने की धमकी दी थी और उन्हें चुप रहने को कहा था. अगस्त में कश्यप ने कहा कि उनके माता-पिता को भी धमकी भरे फोन आये और इसके बाद उन्होंने अपना ट्विटर अकाउंट ही निष्क्रिय कर दिया.

पर अब वह ट्विटर पर वापस आ गए हैं और फिर से राजनीतिक बहस में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. उन्होंने आठ जनवरी को एक साक्षात्कार में कहा कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के विद्यार्थियों पर पुलिस के हमले के बाद वे ट्विटर पर वापस आ गए क्योंकि और कई ऐसे लोग चुप रहे, जिनसे उन्हें बोलने की उम्मीद थी. कश्यप ने कहा कि वे और उनके साथी जो विरोध कर रहे हैं वो किसी राजनीतिक पार्टी के साथ नहीं हैं, वो बस डर के साये में जीने से थक गए हैं. 

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