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कट जाएंगे 100 साल पुराने 2,500 पेड़

चारु कार्तिकेय
७ जनवरी २०२१

दिल्ली-देहरादून राज्यमार्ग को और चौड़ा करने के लिए दो अभयारण्यों को छेड़ा जाएगा और 2500 पेड़ काट दिए जाएंगे. संरक्षणकर्ता इसकी अनुमति दिए जाने से निराश हैं.

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Indien | Nandhaur Wildlife Sanctuary in Uttarakhand
तस्वीर: Hridayesh Joshi

नैशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ ने गणेशपुर-देहरादून सड़क को बनाए जाने की अनुमति दिए जाने से पर्यावरण प्रेमी निराश हैं. राष्ट्रीय राज्य-मार्ग 72ए के नाम से भी जाने जाने वाली इस सड़क को बनाने के लिए दो अभयारण्यों के एक बड़े इलाके को साफ करना होगा. ये सड़क मूल रूप से दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे का विस्तार होगी. एक्सप्रेस वे का लगभग 20 किलोमीटर का हिस्सा राजाजी बाघ रिजर्व और शिवालिक हाथी रिजर्व के बीच से हो कर गुजरेगा.

राजाजी लगभग 1,075 वर्ग किलोमीटर में फैला बाघों का रिजर्व है जिसमें कम से कम 18 बाघ, एशियाई हाथी, तेंदुआ, स्लॉथ भालू जैसे कम से कम 50 पशुओं की प्रजातियां, 300 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां और कई तरह के पेड़-पौधे पाए जाते हैं. लेकिन अगर यह सड़क बानी तो उत्तराखंड को राजाजी के अंदर के करीब 10 हेक्टेयर में फैले जंगलों और 2,500 पेड़ों से हाथ धोना पड़ेगा.

इनमें से अधिकतर पेड़ अंग्रेजों के जमाने में लगाए गए साल के पेड़ हैं जो कई तरह के पक्षियों और छोटे पशुओं के घर हैं. इस सड़क के लिए उत्तर प्रदेश को भी शिवालिक हाथी रिजर्व के अंदर 47 हेक्टेयर में फैले जंगलों को गंवाना पड़ेगा. शिवालिक एशियाई हाथियों के लिए 5,000 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा इलाके में फैला रिजर्व है. जानकारों का कहना है कि नई सड़क बनने से यात्रा में बस 10 मिनट की बचत होगी और सिर्फ इतनी सी बचत के लिए 2,500 पेड़ों को काट देना कहां तक तर्कसंगत है.

Indien Uttarakhand Naturkatastrophen
उत्तराखंड की 2013 की त्रासदी में 5,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे.तस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/Indo Tibetan Border Police Force

पहले ही उत्तराखंड में महत्वाकांक्षी चार धाम सड़क परियोजना और जॉली ग्रांट हवाई अड्डा परियोजना के लिए कई हजार पेड़ काट जाने हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि उत्तराखंड पहले ही पेड़ों और पहाड़ों को काटे जाने का खामियाजा भुगत रहा है. पहाड़ी इलाकों में पेड़ों के कटने से मिट्टी कमजोर हो जाती है और भू-स्खलन का खतरा बढ़ जाता है. 2013 की त्रासदी में 5,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे जिसके लिए भारी बारिश के साथ साथ अनियंत्रत निर्माण गतिविधियों के लिए पेड़ों और पहाड़ों को काटने को भी जिम्मेदार ठहराया गया था.

पेड़ काटने से इलाके का मौसम भी खुश्क हो जाता है और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है. लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि ऐसा लगता है कि सरकारें 2013 की त्रासदी से कोई सबक नहीं ले रही हैं. अब देखना होगा कि इस परियोजना का क्या होता है और 100 साल पुराने ये पेड़ बच पाते हैं या नहीं.

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