आखिर क्या बदल देंगे नए लेबर कोड
संसद ने श्रमिकों से जुड़े तीन बिल पारित किए हैं. एक तरफ इन्हें श्रम सुधार कहा जा रहा है तो दूसरी तरफ आलोचना हो रही है कि ये श्रमिकों के कल्याण के खिलाफ हैं. आखिर ऐसा क्या बदल देंगे ये लेबर कोड?
तीन लेबर कोड
तीन श्रम संहिताएं पारित हुई हैं. ये हैं औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता.
नौकरी से निकालने की आजादी
पहले सिर्फ 100 से कम श्रमिकों वाले संस्थानों को किसी को नौकरी से निकालने से पहले या संस्थान को बंद करने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य नहीं था. अब इस अनिवार्यता से 300 तक श्रमिकों वाले संस्थानों को छूट दे दी गई है. यानी 300 श्रमिकों से काम लेने वाले संस्थान मनमाने तरीके से छंटनी कर सकेंगे.
मनमानी शर्तों का खतरा
पहले 100 या उससे ज्यादा श्रमिकों वाले संस्थानों में सेवा से संबंधित शर्तें भी सरकारी मानकों के अनुसार सरकार की अनुमति से तय करना अनिवार्य था. अब इस अनिवार्यता से भी 300 तक श्रमिकों वाले संस्थानों को छूट दे दी गई है.
विनियमन मुश्किल
अभी तक फैक्टरी की परिभाषा थी वो संयंत्र जहां 10 कर्मचारी हों और बिजली का इस्तेमाल होता हो या जहां 20 कर्मचारी हों और बिजली का इस्तेमाल नहीं होता हो. इन सीमाओं को बढ़ा कर 20 और 40 कर दिया गया है. इससे ऐसी इकाइयों की निगरानी नहीं होगी जिनका पहले फैक्टरीज अधिनियम के तहत नियमन होता था.
अनियमित मजदूरी को बढ़ावा
फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को अब फैक्टरियां सीधे नौकरी पर रख सकती हैं. ठेके पर श्रमिक रखने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट लेबर अधिनियम को ऐसे बदल दिया गया है कि सिर्फ 50 या उस से ज्यादा ठेके पर कर्मचारी रखने वाली कंपनियां ही इस कानून के तहत आएंगी. जानकारों के अनुसार इस से अनियमित मजदूरी को बढ़ावा मिलेगा.
हड़ताल की नई शर्तें
हड़ताल करने को और कठिन बना दिया गया है. पहले कानूनी रूप से हड़ताल करने के लिए अधिकतम दो सप्ताह से छह सप्ताह तक का नोटिस देना होता था. अब यूनियनों को हड़ताल पर जाने से पहले 60 दिनों तक का नोटिस देना होगा. अगर किसी भी पक्ष ने विवाद निपटारे की शुरुआत कर दी तो निपटारा होने तक हड़ताल नहीं की जा सकती.
समझौता भी कठिन
नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच विवाद होने पर उसी ट्रेड यूनियन को समझौते के लिए बातचीत का अधिकार होगा जिसके पास कम से कम 20 प्रतिशत कर्मचारियों की सदस्यता होगी. पहले यह 10 प्रतिशत था. कई स्थानों पर ऐसी कई यूनियनें हैं और उनमें से हर एक के लिए 20 प्रतिशत सदस्यता जुटाना मुश्किल है. ऐसे में किसी भी यूनियन को बातचीत का हक नहीं मिलेगा.
श्रम कानूनों से छूट आसान
राज्य सरकारों के लिए किसी भी संस्थान को किसी भी श्रम कानून के पालन से छूट देना आसान कर दिया गया है. पहले ऐसा करने से पहले राज्य सरकारों को इसकी आवश्यकता स्थापित करनी पड़ती थी.
असंगठित क्षेत्र अभी भी बाहर
कहा जा रहा है कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा के कदम उठाए गए हैं, जबकि यह कदम सिर्फ गिग इकॉनमी कर्मचारियों के लिए उठाए गए हैं, जो पूरे असंगठित क्षेत्र में दो प्रतिशत से भी कम हैं.
परिभाषाओं में बदलाव
नियोक्ता, कर्मचारी, श्रमिक और ठेकेदार जैसे शब्दों की परिभाषाओं को बदला गया है. लेकिन श्रम संगठनों का आरोप है कि मुख्य नियोक्ता की कामगारों के प्रति जवाबदेही को कम करने के लिए इन परिभाषाओं को अस्पष्ट रखा गया है.
प्रवासी श्रमिकों का नुकसान
अभी तक प्रवासी श्रमिकों को नौकरी मिलते ही काम संभाल लेने तक वेतन और यात्रा का खर्च मिलता था. वो अब नहीं मिलेगा. पहले की तरह कार्य स्थल के पास उनके अस्थायी निवास की व्यवस्था करने का नियम भी हटा दिया गया है.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore