आईएस पर फैसले के बदले मोल तोल
९ अक्टूबर २०१४अमेरिका के उपराष्ट्रपति जो बाइडेन इस बात के लिए जाने जाते हैं कि वे अपने शब्द सोच समझकर नहीं चुनते. इसकी वजह से वे कभी कभी मुश्किल में फंस जाते हैं. ऐसा ही पिछले दिनों हुआ जब उन्होंने अमेरिकी छात्रों को संबोधित करते हुए इस्लामिक स्टेट के खिलाफ संघर्ष में अमेरिका के साथियों पर चुटकी ली. उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि अमेरिका की मुख्य समस्या उसके साथी हैं, जिसमें तुर्की भी है. तुर्की ने लंबे समय तक आईएस का समर्थन किया है. यह बात तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एरदोवान को इतनी बुरी लगी कि बाइडेन को उनसे माफी मांगनी पड़ी.
वैसे बाइडेन ने सिर्फ सच कहा था. उन्होंने अपनी बात सिर्फ इसलिए वापस ली कि वे तुर्की के साथ तनावपूर्ण रिश्तों को और नहीं बिगाड़ना चाहते थे. वॉशिंगटन को अभी तक उम्मीद है कि नाटो में उसका साथी अपनी नीति बदलेगा और आखिरकार आतंकवादियों के खिलाफ संघर्ष में कुर्दों की मदद करेगा. लेकिन अंकारा झिझक रहा है. तुर्की की सरकार राष्ट्रपति ओबामा पर दबाव डाल रही है. कहा जा रहा है कि पहले ओबामा को सीरिया के राष्ट्रपति असद के खिलाफ लड़ाई फिर से शुरू करनी चाहिए तब तुर्की इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लेगा.
ब्लैकमेलिंग का जवाब
अंकारा की विदेशनीति हाट के नियमों पर चल रही है. लेकिन ओबामा मोल तोल नहीं करने दे रहे, और ब्लैकमेल तो कतई नहीं. नतीजा यह हुआ है कि तुर्की कोबानी में आईएस के खिलाफ संघर्ष में कुर्दों की मदद नहीं कर रहा है. वह उन तक कुमुक भी पहुंचने नहीं दे रहा और इसके साथ शहर में नरसंहार का जोखिम ले रहा है. अंकारा के लिए राष्ट्रपति असद मुख्य विरोधी हैं. इसके विपरीत अमेरिका पहले इस्लामिक स्टेट के खिलाफ संघर्ष पर ध्यान देना चाहता है. अंत में दोनों अपनी हत्यारी नीति जारी रख सकते हैं, आतंकी आईएस और राष्ट्रपति असद.
यदि कोबानी का पतन होता है, तो ओबामा के लिए और मुश्किल खड़ी हो जाएगी. सबसे पहले विपक्षी रिपब्लिकन से, जो अमेरिका में होने वाले संसदीय चुनावों से चार हफ्ते पहले ओबामा की पश्चिम एशिया नीति की आलोचना कर रहे हैं. इसमें आश्चर्य नहीं. विपक्ष हर कहीं सरकार की गलतियों का राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है. आश्चर्य यह है कि अब राष्ट्रपति के राजनैतिक साथी भी उनसे किनारा करने लगे हैं. इनमें पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और रक्षा मंत्री लियोन पनेटा भी हैं. वे राष्ट्रपति पर ढुलमुल होने का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि सीरिया में नरमपंथी विपक्ष को हथियारों से लैस नहीं करना गलती थी. वे मानकर चल रहे हैं कि सीरिया में ऐसा विपक्ष है जबकि राष्ट्रपति ने कुछ समय पहले इस पर सवाल उठाया था.
दूसरा वियतनाम नहीं
सच क्या है इसका जवाब अमेरिकी मतदाताओं के पास भी नहीं है. उन्हें तो एक बार फिर वॉशिंगटन के बुरी तरह बंटे राजनीतिक वर्ग पर गुस्सा है. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी राजधानी के राजनीतिज्ञ एक साथ चलने को तैयार नहीं दिखते.
आने वाले चुनावों में राष्ट्रपति की डेमोक्रैटिक पार्टी की हार भी हो जाए तो ओबामा के अपनी मौजूदा विदेशनीति को बदलने के आसार नहीं हैं. वे अपनी थल सेना को सीरिया या इराक नहीं भेजेंगे. वे किसी भी हाल में पूर्व राष्ट्रपति जॉनसन की गलती नहीं दोहराना चाहते, जिन्होंने धीरे धीरे अमेरिका को वियतनाम युद्ध में फंसने दिया था. उसके नतीजे घातक थे.