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असम में स्वास्थ्य बीमा योजना की पहल

प्रभाकर मणि तिवारी
२६ दिसम्बर २०१६

असम सरकार ने खस्ताहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए नई स्वास्थ्य बीमा की पहल की है. लेकिन देश में अपने तरह के इस पहला स्वास्थ्य बीमा का लाभ कम आय वाले परिवारों को ही मिलेगा.

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Polio-Betroffene im St. Stephen Krankenhaus in Delhi
तस्वीर: Anindito Mukherjee

असम सरकार ने सालाना पांच लाख रुपए से कम आय वाले परिवारों के लिए एक नई स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की है जिसके तहत गंभीर बीमारियों के लिए दो लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज संभव होगा. यह किसी भी राज्य की ओर से शुरू की गई अपने किस्म की पहली योजना है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 92वें जन्मदिन के मौके पर शुरू की गई इस अटल-अमृत अभियान स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में राज्य के लाखों चाय बागान मजदूर भी शामिल होंगे. इस योजना पर 200 करोड़ की लागत आएगी. लेकिन विपक्ष को इसमें राजनीति की बू आ रही है.

योजना

वैसे तो राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सर्वानंद सोनोवाल सरकार ने बीती मई में सत्ता में आने के बाद ही स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार और गरीबों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य बीमा योजना का एलान किया था. लेकिन अब जाकर उसका औपचारिक एलान किया जा सका है. मुख्यमंत्री सोनोवाल ने इस योजना की शुरूआत करते हुए कहा, "स्वास्थ्य सुधार मेरी सरकार की प्राथमिकताओं में रहा है और अब इस योजना के जरिए राज्य के तमाम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा सकेंगी." स्वास्थ्य मंत्री हिमंत विश्वशर्मा ने दावा किया कि यह किसी भी राज्य सरकार की ओर से शुरू की गई अपने किस्म की पहली योजना है.

गरीबी रेखा से नीचे और ऊपर रहने वाले तमाम परिवारों को इस योजना के दायरे में शामिल किया जाएगा. शर्त यही है कि उनकी सालाना आय पांच लाख रुपए से कम होना चाहिए. इसके तहत कैंसर, किडनी, लीवर और दिल की बीमारियों समेत 437 रोगों का मुफ्त इलाज हो सकेगा. यह योजना पूरी तरह कैशलेस होगी. इसके तहत परिवार के तमाम सदस्यों को एक हेल्थ कार्ड दिया जाएगा. वह उसके जरिए कहीं भी दो लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त करा सकते हैं. इस योजना के क्रियान्वयन के लिए स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक अलग सोसायटी का गठन किया जाएगा.

Indien Luftverschmutzung Junge mit Maske
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta

बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं

पिछड़े राज्यों की श्रेणी में शुमार असम में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. राज्य में 15 साल तक कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार के दौरान इस क्षेत्र में कोई खास प्रगति नहीं हुई. खासकर ग्रामीण इलाकों में अब भी डाक्टरों व नर्सों का भारी अभाव है. ज्यादातर इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं लेकिन उनमें दवाओं और दूसरी आधारभूत सुविधाओं की भारी कमी है. राज्य में डाक्टरों व नर्सों के कई पद खाली पड़े हैं. 25 से 30 हजार की आबादी के लिए जब स्वास्थ्य केंद्र में महज एक ही डाक्टर हो तो उससे बेहतर स्वास्थ्य सेवा पाने की उम्मीद बेमानी ही है. ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्रों में एंबुलेंस जैसी सुविधा तक मौजूद नहीं है. राज्य की पूर्व तरुण गोगोई सरकार ने विभिन्न केंद्रीय स्वास्थ्य योजनाएं लागू जरूर की थीं लेकिन जमीनी स्तर पर उनको अमली जामा नहीं पहनाया जा सका.

कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में शुरू की गई एक योजना के तहत प्रावधान था कि 14 साल से कम उम्र के किसी बच्चे को दिल की बीमारी होने की स्थिति में बड़े शहरों में इलाज और आने-जाने का पूरा खर्च सरकार उठाएगी बशर्ते उसके परिवार की सालाना आय छह लाख रुपए से कम हो. लेकिन इस योजना का लाभ गिने-चुने लोगों को ही मिल सका. इस योजना का लाभ नहीं मिल पाने की वजह से एक दंपति ने दिल की बीमारी से पीड़ित अपनी दस महीने की बच्ची के साथ ब्रह्मपुत्र में कूद कर जान दे दी थी. उस घटना ने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थीं. इस योजना के नाकाम होने की वजह थी आम लोगों में इसकी जानकारी का अभाव और जमीनी स्तर पर इसे लागू करने में अफसरों की उदासीनता. यह दोनों समस्याएं अब भी जस की तस हैं.

पूर्वोत्तर इलाके के इस सबसे बड़े राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं और आधारभूत ढांचे के अभाव की वजह से ही राज्य के समर्थ मरीज छोटी-मोटी बीमारियों की स्थिति में भी दिल्ली, कोलकाता या दक्षिण भारतीय शहरों का रुख करते हैं.

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तस्वीर: DW/Prabhakar

आलोचना

राज्य के लाखों चाय बागान मजदूरों को इस बीमा योजना के दायरे में शामिल करना एक बेहतर पहल जरूर है. लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बीमा योजना शुरू करने से पहले सरकार को बागान इलाकों में आधारभूत ढांचा मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए था. ट्रेड यूनियन नेता परमेश्वर बोरा कहते हैं, "यह एक अच्छी पहल है. लेकिन बागान इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं काफी बदहाल हैं. सरकार को पहले उसे दुरुस्त करने पर ध्यान देना चाहिए था." वह कहते हैं कि बीमा होने के बावजूद आसपास इलाज की समुचित सुविधा नहीं होने की वजह से समस्या तो जस की तस ही रहेगी.

विपक्ष ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है. इसके साथ ही स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी इसकी कामयाबी पर सवाल उठाए हैं. विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इसे नई बोतल में पुरानी शराब बताया है. कांग्रेस सरकार ने पहले ही ऐसी कई योजनाएं शुरू की थीं. उन सबको समेट कर एक नया नाम दे दिया गया है. विपक्ष का कहना है कि इस योजना के नाम में अटल होने से साफ है कि सरकार और सत्तारुढ़ बीजेपी का मकसद इसका सियासी फायदा उठाना है. अगले साल इलाके के कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं. खासकर मणिपुर में तो बीजेपी सत्ता में आने का सपना देख रही है. तब इस योजना को चुनाव प्रचार के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.

दूसरी ओर, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी कोई बीमा योजना शुरू करने से पहले सरकार को इस क्षेत्र में आधारभूत ढांचे में सुधार, डाक्टरों और नर्सों की कमी दूर करने और दूर-दराज के इलाकों में बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं की पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित करना चाहिए था. राज्य के ट्रैक रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए विशेषज्ञों को उक्त योजना के जमीनी स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू होने पर भी संदेह है.