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समाज

असम विधानसभा चुनावों में चाय बागान मजदूर बने मुद्दा

प्रभाकर मणि तिवारी
१७ मार्च २०२१

चुनाव के पहले हर सरकार चाय बागान मजदूरों की जेब में कुछ पैसा डालती रही है, लेकिन इस बार अदालत बीच में आ गई है क्योंकि बागान के मालिक नहीं चाहते कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन बढ़े.

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TEA GARDEN WORKERS IN A TEA ESTATE OF ASSAM
तस्वीर: DW/Prabhakar Tiwari

पूर्वोत्तर राज्य असम में विधानसभा चुनावों से पहले बीते महीने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने चाय बागान मजदूरों की पुरानी मांग को हरी झंडी दिखाते हुए उनकी न्यूनतम दैनिक मजदूरी मौजूदा 167 रुपए से बढ़ा कर 217 रुपए प्रतिदिन करने का फैसला किया था. लेकिन चाय संगठन इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) और राज्य के 90 फीसदी बागानों का मालिकाना हक रखने वाली चाय कंपनियों की याचिका पर गौहाटी हाईकोर्ट ने फिलहाल सरकार के उस फैसले पर रोक लगा दी है. हालांकि अदालत ने कहा है कि बागान मालिक चाहें तो इस मामले का निपटारा नहीं होने तक मजदूरों को ज्यादा मजदूरी दे सकते हैं. इस मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी जब राज्य में चुनाव हो चुके होंगे.

चाय मजदूरों का वेतन बढ़ाने की होड़

दरअसल राज्य में खासकर चुनाव के मौके पर चाय मजदूरों की अहमियत काफी बढ़ जाती है. यही वजह है कि चुनावों से पहले बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक तमाम दल इनको लुभाने की जोरदार कवायद कर रहे हैं. इसी रणनीति के तहत बीते महीने सरकार ने दैनिक मजदूरी 50 रुपए बढ़ाने का फैसला किया था. उससे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में राज्य में एक चुनावी रैली के दौरान वादा किया था कि राज्य में उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर चाय बागान मजदूरों की रोजाना की मजदूरी को बढ़ा कर 365 रुपये कर दिया जाएगा.

Indien Teeplantage Tee Pflücker Pflückerinnen Assam
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

उसके बाद ही सरकार ने मजदूरी बढ़ाने का फैसला किया. उसके बाद इसी महीने असम दौरे पर पहुंची कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी चाय मजदूरों के साथ बागान में पत्ती तोड़ते और उनके साथ नाचते हुए नजर आईं थी. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीती छह फरवरी को चाय बागीचा धन पुरस्कार मेला योजना के तहत राज्य के तमाम आठ लाख मजदूरों को तीन-तीन हजार रुपए दिए थे. असम सरकार ने वर्ष 2017-18 में यह योजना शुरू की थी. उसके तहत दो वर्षों तक इन मजदूरों को ढाई-ढाई हजार रुपए उनके बैंक खातों में दिए गए थे. इस साल उसी को बढ़ा कर तीन हजार किया गया है.

चुनावों में चाय मजदूरों की अहमियत

असम में 27 मार्च से तीन चरणों में होने वाले चुनाव में राज्य के 856 चाय बागानों में काम करने वाले 10 लाख चाय मजदूर सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं. देश के सालाना चाय उत्पादन में असम का हिस्सा करीब 52 फीसदी है. वहीं, राज्य विधानसभा की कुल 126 सीटों में से लगभग 40 सीटों पर इन मजदूरों और उनके परिवारों की भूमिका निर्णायक होती है. इसे ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने उनकी मजदूरी बढ़ाने का फैसला किया था.

चाय कंपनियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने बीते सप्ताह राज्य सरकार से आईटीए और चाय कंपनियों के खिलाफ तब तक कोई भी कठोर कार्रवाई न करने को कहा था जब तक कि वेतन वृद्धि पर राज्य श्रम विभाग की अधिसूचना को चुनौती देने वाले मामले का निपटारा नहीं होता है. हाई कोर्ट ने आईटीए की इस दलील को भी स्वीकार कर लिया कि वेतन बढ़ोतरी अवैध थी क्योंकि इसके लिए किसी समिति या उप-समिति का गठन नहीं किया गया था. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 की प्रासंगिक धाराओं के तहत ऐसा करना जरूरी था.

Indien Teeplantage Tee Pflücker Pflückerinnen Assam
तस्वीर: DIPTENDU DUTTA/AFP/Getty Images

सत्ताधारी बीजेपी को कांग्रेस की चुनौती

बीजेपी को चुनौती देने वाली कांग्रेस ने इस बार बदरुद्दीन अजमल की पार्टी आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) समेत सात दलों के साथ समझौता किया है. पार्टी ने हाल ही में पांच गारंटी की घोषणा करते हुए सत्ता में आने पर उसे पूरा करने का वादा किया है. उसने कहा है कि चाय मजदूरों की दैनिक मजदूरी मौजूदा 167 रुपये से बढ़ाकर 365 रुपये कर दी जाएगी. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले असम में चाय मजदूरों की दैनिक मजदूरी को बढ़ाकर 350 रुपए तक करने का वादा किया था.

इस बीच, ऑल असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एटीटीएसए) ने 22 मार्च को सभी चाय बागानों को बंद करने की अपील की है. एसोसिएशन के अध्यक्ष धीरज ग्वाला आरोप लगाते हैं कि राज्य में सत्ता संभालने वाली तमाम सरकारें चाय मजदूरों की समस्याओं का समाधान करने में नाकाम रही हैं. वह बताते हैं, "चुनाव से पहले हम लोगों को बताएंगे कि किस तरह से भाजपा, पिछली असम गण परिषद और कांग्रेस सरकारों ने चाय मजदूरों के साथ अन्याय किया है.” राजनीतिक विश्लेषक हीरेन गोहाईं कहते हैं, "राज्य के चाय मजदूरों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है और उनको उचित वेतन और दूसरे फायदों से वंचित रखा गया है. हर चुनाव से पहले राजनीतिक दल उनके वेतन और दूसरी सुविधाओं को बढ़ाने का वादा करते हैं. लेकिन चुनावों के बाद वे चुप्पी साध लेते हैं.”

 

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