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असम और गोवा में रिश्वत कांड की जांच

२१ जुलाई २०१५

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दागी नेताओं के इस्तीफे की मांग करते हुए विपक्षी सांसदों ने संसद की कार्यवाही में बाधा डाली तो एक अमेरिकी कंपनी के घूसखोरी वाले मामले में गोवा और असम की सरकारों ने जांच के आदेश दिए हैं.

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तस्वीर: AP

अमेरिकी निर्माण प्रबंधन कंपनी लुइस बर्गर इंटरनेशनल ने कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए भारत सहित विदेशों में रिश्वत देने की बात मान ली है और मामला सलटाने के लिए 1.71 करोड़ डॉलर का आपराधिक जुर्माना देना स्वीकार कर लिया है. अभियोजन अधिकारियों के अनुसार कंपनी के प्रतिनिधियों ने भारत, इंडोनेशिया, वियतनाम और कुवैत में ठेका हासिल करने के लिए 1998 से 2010 के बीच 39 लाख डॉलर की रिश्वत देने की बात मानी है. अमेरिकी कानून विभाग के अनुसार अवैध भुगतानों को कमिटमेंट फीस, काउंटरपार्ट पर डिम्स और थर्ड पार्टी पेमेंट कहकर छुपाया गया था. अदालती दस्तावेजों में कोई नाम नहीं लिया गया है.

अमेरिकी अदालत के दस्तावेजों के अनुसार भारत में गोवा और गुवाहाटी में जल विकास परियोजनाओं का ठेका पाने के लिए करीब 6 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई. विपक्ष की आलोचना के बाद असम के कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने अंतरराष्ट्रीय रिश्वतखोरी कांड में जांच के आदेश दिए हैं. एक आईएएस अधिकारी द्वारा मामले की जांच के आदेश देने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि जरूरत पड़ने पर सीबीआी से जांच कराई जा सकती है. लुइस बर्गर को 2009 में गुवाहाटी जलापूर्ति परियोजना की कंसल्टेंसी का ठेका मिला था. यह परियोजना 2016 तक पूरी होगी.

उधर गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परसेकर ने मामले की पुलिस जांच के आदेश दिए हैं लेकिन कहा है कि वे भ्रष्टाचार कांड की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश करेंगे. पुलिस ने कहा है कि वह संबंधित दस्तावेज इकट्ठा करने में लगी है. घटना के समय गोवा के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस पार्टी के दिगंबर कामत ने परियोजना को अनुमति देने में अपने किसी मंत्री के हस्तक्षेप से इंकार किया है.

उधर संसद के मॉनसून सत्र में विपक्ष सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरेन में लगी है. कांग्रेस पार्टी के सांसदों ने राज्य सभा में सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और अध्यक्ष को कार्यवाही रोकने पर मजबूर कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष से सरकार के साथ सहयोग करने की मांग की और कहा, "हम देश को आगे ले जाना चाहते हैं. मुझे उम्मीद है कि संसद देश की आकांक्षाओं का सम्मान करेगी." सरकार की सबसे बड़ी चुनौती आजादी के बाद पहली बार करों में सुधार लाने की है. अगर यह बिल पास हो जाता है तो इससे निवेशकों को आश्वास्त किया जा सकेगा, जो आर्थिक सुधारों की धीमी गति से असंतुष्ट हैं.

एमजे/आईबी (रॉयटर्स, पीटीआई)